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अर्जुन
लगा। बृहत् ने उसे समझा कर स्वयं युद्ध करने का निश्चय किया, तथा शमीवृक्ष पर के आयुध ले कर उत्तर को अपना परिचय दिया। चमावान युद्ध करते गौओं को पुनः प्राप्त करते समय, इसने कर्ण को भगा कर उसके भाई को जान से मारा। इसके उपलक्ष में, अर्जुन को उपहार रूप में उत्तरा को देने का विचार विराट ने प्रकट किया, परंतु अर्जुन ने उसका स्वीकार अभिमन्यु के लिये किया ( म. वि. ६७ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
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कृष्णलहाय्य भारतीय युद्ध की तैय्यारी जब बालू थी, तब दुर्योधन कृष्ण की सहायता प्राप्त करने के लिये द्वारका गया। अर्जुन भी वहीं उपस्थित हुआ। दुर्योधन | खराने की ओर बैठा, तथा अर्जुन नम्रता से पैरों की ओर बैठा। उठते ही प्रथम अर्जुन दिखा। उसी प्रकार यह दुर्योधन से छोटा भी था, अतएव कृष्ण ने प्रथम अर्जुन को माँग प्रस्तुत करने को कहा। देश कोटि गोपालों की नारायण नामक सेना तथा निःशस्त्र स्वयं ऐसा विभाजन कर जो चाहिये उसे मांगने की सूचना कृष्ण ने की। तत्र अर्जुन ने कृष्ण को मांग लिया। अपनी ओर हजारों सैनिक आये, इस बात पर दुर्योधन संतुष्ट हुआ (म. उ. ७ ) कृष्ण जत्र पांडवो के मध्यस्थ कार्य के लिये गया, तब अर्जुन ने कहा कि, उसे जो योग्य प्रतीत हो वही वह तय करे ( म. ३.७६ ) |
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भारतीययुद्ध - युद्ध के आरंभ में ही, अर्जुन को युद्ध का परिणाम दिखाई देने लगा था। यह सोचने लगा कि, वह स्वयं किसी अविचारी कृत्य में प्रवृत्त हो गया है । इस विचार के कारण, यह युद्ध से निवृत्त होने लगा । परंतु कृष्ण ने इसे कर्तव्यच्युत होने से परावृत्त किया। यही भगवद्गीता है (म. भी. २३.४० ) । युद्ध के प्रारंभ में ही भीमार्जुन युद्ध प्रारंभ हुआ। तीसरे दिन ऐसा प्रतीत होने लगा कि, भीष्म पांडवों को बिल्कुल नही बचने देंगे । परंतु कृष्ण ने प्रतिज्ञा तोड़ कर हाथ में चक्र दिया, तथा अर्जुन ने भी जोर लगाया। तीसरे दिन के अंत में कौरवों का इसने काफी नुकसान किया।
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अर्जुन
रख कर, अर्जुन अगर मुझ से लड़े तो मेरा वध हो सकता है। क्यों कि, अभद्र ध्वजयुक्त तथा एकबार स्त्री रहनेवाले शिखंडी के समान लोगों पर अपने नियमानुसार भीष्म शस्त्र नही चलाते थे।
नववे दिन, अर्जुन या द्रोणाचार्य के साथ युद्ध हुआ । भीष्म के साथ भी जोरदार युद्ध हुआ । संध्या होने के कारण युद्ध रोका गया, परंतु भीष्म के सामने किसी की शक्ति काम नही आती थी, इससे सब निराश हो गये। धर्मराज एवं कृष्ण ने विचार किया कि, वे भीष्म को ही पूछें, कि उसका वध किस प्रकार किया जा सकता है। भीष्म ने भी सरल स्वभाव से कहा कि, शिखंडी को आगे
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भीष्मवध - दसवे दिन, शिखंड़ी को भीष्म के सामने छोड़ कर, अर्जुन ने कौरव सेना को विल्कुल त्रस्त कर डाला। कौरवों ने पांडवों को रोकने का अंतिम प्रयत्न किया, परंतु सफलता हाथ न लगी । अर्जुन ने शिखंडी के आड़ में रह कर, हजारों वाण भीष्म पर बरसाये तथा भीष्म को नीचे गिरा दिया हजारों बाण जिसके शरीर में भिदे है, ऐसा भीष्म जब वीरोचित शय्या पर विश्रांति कर रहा था, राम उसकी गर्दन नीचे लटकने लगी अतएव उसने तकिया मांगा। कईयों ने उसे नरम तयेा दिये, परंतु अर्जुन ने वीरशय्या के लिये उचित तीन बांका तकिया तैयार कर के उसे प्रसन्न किया। उसी प्रकार भीष्म के पानी मांगने पर सबने पानी खा दिया। परंतु उसका स्वीकार न कर अर्जुन ने भूमि में बाग मार कर उत्पन्न किये जल का स्वीकार भीष्म ने किया (म.भी. ११६) ।
इसके सिवा, युद्ध में शत्रुओं को मारेंगे अथवा मरेंगे, ऐसी प्रतिज्ञा कर के बाहर आये हुए त्रिगर्त देश का राजा सत्यरथ, सत्यवर्मा, सत्यव्रत, सत्येषु तथा सत्यंकर्मा तथा प्रस्थलाधिपति सुशर्मा, तथा मावेल्लक, लालित्थ तथा मद्रक आदि अन्य राजाओ को अर्जुन ने परलोक दर्शाया (म.हो. १६ . १३३२:३९ ) । तदनंतर अर्जुन ने हाथी की क. । सहायता से लड़नेवाले भगदत्त को मार डाला । भगदत्त ने एक बार अर्जुन पर प्राणघातक अंकुश फेका, परंतु कृष्ण ने बीच में आ कर उसे अपनी छाती पर लिया तथा अर्जुन को बचाया ( म. हो. २८ ) ।
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जयद्रथवध -- जयद्रथ ने अभिमन्यु को मृत्यु के बाद खाथ मारने के कारण, अर्जुन ने प्रतिशश की कि दूसरे दिन सूर्यास्त के पहले मैं उसकी हत्या करूंगा। रात्रि में शंकर ने इसके स्वप्न में आ कर इसको धीरज बंधा कर पुनः पाशुपतास दिया ( म. द्रो. ५७)। अर्जुन में वीरश्री का संचार हुआ तथा इसने दुःशासन दुर्योधनादि का कई बार पराभव किया। कर्ण को भगाया। अंबष्ट, श्रुतायुस् तथा अश्रुतायु का वध किया ( म. द्रो. ६८ ) । इस प्रकार तुमुलयुद्धप्रसंग में, सूर्यास्त होने के पहले ही अर्जुन ने जयद्रथ का शिरच्छेद किया ( म. द्रो. १२१ ) ।
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कर्णवध-- तदुपरांत, कर्ण के द्वारा धर्मराज का पराभव होने के कारण, धर्म के मन में कर्ण के प्रति अत्यंत द्वेष
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