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भृगु प्रजापति
प्राचीन चरित्रकोश
भृगु वारुणि
देवों की परीक्षा--एक बार स्वायंभुव मनु ने एक यज्ञ | भागवत, विष्णुपुराण तथा महाभारत में भी इसके किया, जिसमें यह विवाद खड़ा हुआ कि, ब्रह्मा विष्णु | परिवार के बारे में सूचना प्राप्त होती है (भा. ४.१. तथा महेश में कौन श्रेष्ठा है ? भृगु उस में था, अतएव । | ४५, विष्णु. १.१०.१-५; म. आ.६०.४८; कवि तथा इस बात का पता लगाने का काम इसे सौंपा गया। भृगु | उशनस् देखिये) सर्वप्रथम कैलाश पर्वत पर शंकरजी के यहाँ गया । वहाँ भृगु 'वारुणि'--ब्रह्मा के आठ मानस पुत्रों में से पर नंदी ने इसे अन्दर जाने के लिए रोका, कारण कि वहाँ
| एक, जिससे आगे चल कर ब्राह्मण कुलों का निर्माण हुआ। शंकर-पार्वती क्रीड़ा में निमग्न थे। इसप्रकार के अपमान एवं ब्रह्मा के आठ मानस पुत्र इस प्रकार हैं:--भृग, अंगिरस् , उपेक्षा को यह सहन न कर सका, और क्रोधावेश में मरीचि, अत्रि, वसिष्ठ, पुलस्त्य, पुलह एवं ऋतु (वायु. शंकर को शाप दिया, 'तुम्हारे शरीर का आकार लिंग रूप | ९.६८-६९)। 'पितामह' ब्रह्मा से उत्पन्न होने के में माना जायेगा, तथा तुम्हारे उपर चढ़ाये हुये जल को कारण, इन सभी ऋषियों को 'पैतामहर्षि' सामुहिक नाम ले कर कोई भी व्यक्ति तीर्थ रूप में पान न करेगा। प्राप्त हैं। यह अग्नि की ज्वाला से उत्पन्न हुआ, अतः
इसके उपरांत यह ब्रह्मा के पास गया, वहाँ ब्रह्मा ने | इसका नाम 'भृगु' पड़ा (म. अनु. ८५.१०६)। न इसको नमस्कार ही किया, और न इसका उचित सम्मान ___ जन्म-महाभारत एवं पुराणों के अनुसार, ब्रह्मा के कर उत्थापन ही दिया। इससे क्रोधित होकर इसने शाप द्वारा किये गये यज्ञ से भृगु सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ, एवं शिव दिया, 'तुम्हारा पूजन कोई न करेगा।
ने वरुण का रूप धारण कर इसे पुत्र रूप में धारण किया। अंत में यह विष्णु के पास गया। विष्णु उस समय
इसलिए इसे 'वारुणि' उपाधि प्राप्त हुयी (म. आ. ५. सो रहे थे। यह दो देवताओं से रुष्ट ही था। क्रोध में
२१६%; अनु. १३२.३६, ब्रह्मांड. ३.२.३८)। कई . आकर भृगु ने विष्णुके सीने पर कस कर एक लात मारी।
पुराणों के अनुसार, ब्राममानस पुत्रों में से कवि नामक विष्णु की नींद टूटी तथा उन्होंने इसे नमस्कार कर पूछा,
एक और पुत्र का निर्देश प्राप्त है, उसे भी वरुणरूपधारी
शिव ने पुत्र रूप में स्वीकार किया, जिसके कारण कवि 'आप के घरों को तो चोट नहीं लगी?'| विष्णु की यह
को भी भृगु का भाई कहा जाता है। शालीनता देखकर भृगु प्रसन्न हुआ, तथा इसने विष्णु को
| ब्राह्मण ग्रन्थों में भी इसे 'वारुणि भृग' कहा गया है। सर्वश्रेष्ठ देवता की पदवी प्रदान की ( पध्न. उ. २५५)। भृगु के द्वारा किये गये लात के प्रहार को श्रीविष्णु ने
किन्तु वहाँ इसे प्रजापति का पुत्र कहा गया है, एवं इसकी
जन्मकथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है। इन ग्रन्थों के 'श्रीवत्स'चिह्न मानकर धारण किया(भा.१०.८९.१-१२)।
अनुसार, प्रजापति ने एक बार अपना वीर्य स्खलित किया, परिवार-ब्रह्माण्ड के अनुसार, इसकी पत्नी दक्षकन्या
जिसके तीन भाग हो गये, एवं इन भागों से आदित्य,
भृगु एवं अंगिरस् की उत्पत्ति हुयी (ऐ. बा. ३.३४ )। सन्ताने हुयीं । लक्ष्मी ने नारायण का वरण किया, तथा
| पंचविंश ब्राह्मण में इसे वरुण के वीर्यस्खलन से उत्पन्न उससे बल तथा उन्माद नामक पुत्र हुए। कालान्तर में बल
हुआ कहा गया है (पं. बा. १८.९.१)। शतपथ ब्राह्मण को तेज, तथा उन्माद को संशय नामक पुत्र हुए। भृगु ने
के अनुसार, यह वरुण द्वारा उत्पन्न किया गया, एवं उसी मन से कई पुत्र उत्पन्न किये, जो आकाशगामी होकर देवों
के द्वारा इसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुयी, जिस कारण इसे के विमानों के चालक बने।
'भृगु वारुणि' नाम प्राप्त हुआ (श. ब्रा. ११.६.१.१; ख्यातिपुत्र धातु की पत्नी का नाम नियति, तथा ते. आ. ९.१; तै. उ. १.३.१.१)। विधातृ की पत्नी का नाम आयति था। नियति को मृकंड, गोपथ ब्राहाण के अनुसार, सष्टि की उत्पत्ति के लिए एवं आयति को प्राण नामक पुत्र हुए। मृकंड को मनस्विनी | जिस समय ब्रह्म- तपस्या में लीन था, उस समय उसके से मार्कडेय हुआ। मार्केडेय को धूम्रा से वेदशिरस् हुआ। शरीर से स्वेदकण पृथ्वी पर गिरे। उन स्वेदकणों में अपनी वेदशिरस को पीवरी से मार्कडेय नाम से प्रसिद्ध ऋषि हुए। परछाई देखने के कारण ही, ब्रह्मा का वीर्य स्खलन हुआ। प्राण को पुंडरिका से द्युतिमान् नामक पुत्र हुआ, जिसे उन्नत | उस वीर्य के दो भाग हुए-उनमें से जो भाग शान्त, पेय तथा स्वनवत् नामक पुत्र हुए। ये सभी लोग भार्गव एवं स्वादिष्ट था, उससे भृगु की उत्पत्ति हुयी; एवं जो माग नाम से प्रसिद्ध हुए (ब्रह्मांड. २.११.१-१०, १३.६२)। खारा, अपेय एवं अस्वादिष्ट था, उससे अंगिरस् ऋषि की
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