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________________ भृगु प्राचीन चरित्रकोश भृगु प्रजापति में प्रकट किया (ऋ. १०.९२)। इस प्रकार हम कह दक्षयज्ञ-शंकर का अपमान कर के जिस समय दक्ष ने सकते हैं कि, इनकी योग्यता प्रमुखतः अग्नि उत्पन्न करने | यज्ञ किया था, उस समय यह उपस्थित था, एवं दक्ष के द्वारा बाले व्यक्तियों के रूप में व्यक्त की गयी है । अग्नि के | की गई शंकर की निन्दा में इसने भी भागा लिया था। अवतरण तथा मनुष्यों तक उसके पहुँचाने की पुराकथा | शंकर को जब यह ज्ञात हुआ तब उसने सबसे पहले नंदी प्रमुखतः मातरिश्वन तथा भृगुओं से संबंधित हैं । किंतु जहाँ को यज्ञविध्वंस करने के लिए भेजा, किंतु भृगु ने उसे शाप मातरिश्वन् उसे विद्युत् के रूप में आकाश से लाते हैं, वहीं भृगु दे कर भगा दिया । तब शिव ने अपने पार्षद वीरभद्र को उसे लाते नहीं, बल्कि केवल यही माना गया है कि यह | भेजा । वीरभद्र ने दक्षयज्ञ का विध्वंस किया, तथा यज्ञ में लोग पृथ्वी पर यज्ञ की प्रतिष्ठा तथा संपादन के लिए उसे | भाग लेनेवाले सभी ऋषियों को विद्रप बना डाला। उसने प्रदीप्त करते हैं। | क्रोध में आकर इसकी दाढ़ी भी जला डाली । यह विध्वंसव्युत्पत्ति की दृष्टि से भी 'भृगु' शब्द का अर्थ | कारी लीला से भयातुर हो कर, सभी ऋषियों एवं देवों ने 'प्रकाशमान' है, जैसा कि भ्राज (प्रकाशित होना) धातु शंकर की स्तुति की, जिससे प्रसन्न हो कर शंकर ने इसे से निष्पन्न होता है । बर्गेन के विचार इस बात पर कदाचित | बकरे के दाढ़ी प्रदान की (भा. ४.५.१७-१९)। ब्रह्मांड . ही सन्देह किया जा सकते है कि, मूलतः 'भृगु' अग्नि का | के अनुसार, दक्ष द्वारा अपमानित होने के कारण शिव ने ही मूल नाम था; जब कि कुन तथा बार्थ इस मत पर | इसे जला डाला था (ब्रह्मांड. २.११.१-१०)। सहमत है कि, अग्नि के जिस रूप का यह प्रतिनिधित्व देवदैत्य संग्राम--देवों तथा असुरों के बीच होनेवाले करता है, वह विद्युत् है । कुन तथा वेबर ने अग्नि पुरोहितों युद्ध में दैत्यो को पराजय का मुख देखना पड़ा। यह के रूप में भृगुओं को यूनानी देवों के साथ समीकृत किया | देख कर, असुरों के गुरु शुक्र 'संजीवनी' मंत्र लाने के लिए गया । दूसरी ओर भृगु, जो असुरों का बड़ा पक्षपाती था, बाद के साहित्य में भृग-गण, एक वास्तविक परिवार है | वह भी तपस्या के लिये चला गया। तब इसकी पत्नी देवों तथा कौषीतकि ब्राह्मण के अनुसार, ऐतशायन भी इनके | से संग्राम करती रही। विष्णु ने उसे यद्धभूमि में डट कर एक अंग है। परोहितों के रूप में भृगओं का 'अग्नि- देवों को मारते हुए देखा । पहले तो वह शान्त रहे, फिर स्थापन' तथा 'दशपेयऋतु' जैसे अनेक संस्कारों के सम्बन्ध | बिना विचार किये हुए कि वह स्त्री है, उन्होंने अपने में उल्लेख है। अनेक स्थलों पर ये लोग अंगिरसों के सुदर्शन चक्रद्वारा उसका वध किया। साथ भी संयुक्त है (ते. सं. १.१.७.२, मै. सं. १.१.८; ते. ब्रा. १.१.४.८; ३.२.७.६; श. ब्रा. १.२.१.१३)।। __ भृगु को जैसे ही यह पता चला, इसने संजीवनीमंत्र इन दो परिवारों का घनिष्ठ सम्बन्ध इस तथ्य से प्रकट होता से अपनी पत्नी को जिला लिया, तथा विष्णु को शाप है कि, शतपथ ब्राह्यण में 'च्यवन' को ' भार्गव' या | दिया, 'तुम्हे गर्भ में रह कर उसकी पीड़ा को सहन कर, 'आंगिरस' दोनो ही कहा गया है (श, ब्रा. ४.१.५.१)। पृथ्वी पर अवतार लेना पड़ेगा' (दे.भा. ४.११-१२)। अथर्ववेद में, ब्राह्मणों को त्रस्त करनेवाले लोगों पर पड़ने स्त्रीवध उचित है अथवा अनुचित इसके बारे में यह वाली विपत्तियों का दृष्टान्त देने के लिए 'भृगु' नाम का निर्देश रामायण में प्राप्त है। 'ताडकावध' के समय उपयोग किया गया है। विश्वामित्र ने राम को समझाते हुए कहा था कि, विशेष ऋग्वेद में एक स्थान पर, भृगुगण का निर्देश एक प्रसंग में 'स्त्रीवध ' अनुचित नहीं, उचित है (वा. रा. योद्धाओं के समूह के रूप भी किया हुआ प्रतीत होता है | बा. २५.२१ ) । (ऋ. ७.१८.६)। विष्णु को भगु से शाप मिलने की एक दूसरी कथा २. कश्यपकुल का गोत्रकार ऋषिगण । पद्मपुराण में प्राप्त है। विष्णु ने पहले भृगु को यह वचन भृगु प्रजापति--पुराणों में निर्दिष्ट प्रजापतियों में | दिया था कि, वह इसके यज्ञ की रक्षा करेगा। किन्तु यज्ञ से एक, जो स्वायंभुव तथा चाक्षुष मन्वन्तर के सप्तर्षियों के समय वह इन्द्र के निमंत्रण पर उसके यहाँ चला गया। में से एक था । स्वायंभुव मन्वन्तर में इसकी उत्पत्ति यज्ञ के समय विष्णु को न देख कर दैत्यों ने इसके यज्ञ का ब्रह्मा के हृदय से हुयी। यह स्वायंभुव मनु का दामाद नाश किया। इससे क्रोधित हो कर भृगु ने विष्णु को मृत्युलोक एवं शंकर का साढू था। में दस बार जन्म लेने का शाप दिया (पन. भू. १२१)। प्रा. च.७४]
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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