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भीष्म
प्राचीन चरित्रकोश
भीष्म
अवसर यह भी आता है कि, कौरव पाण्डवों की भरी सभा | अपने आदर्शों के विरुद्ध दुर्योधन को अपना राजा में निर्वस्त्र की जानेवाली द्रौपदी विलाप कर के भीष्म से | मानकर, पग पग पर उसका साथ दिया। दूसरी ओर न्याय की माँग करती है, तथा भीष्म उसकी दीनहीन | युद्धनीति के विरुद्ध, इसने अपने मरने का रहस्य कृष्ण दशा न देखकर, उसे पत्नीधर्म का पाठ पढ़ाते हैं। एवं युधिष्ठिर को बताया, जो इसके विपक्षी थे । महाभारत
द्यूत खेलते समय धर्म ने अपने को, समस्त पाण्डवों को | के कई पाण्डुलिपियों में प्राप्त श्लोकों से पता चलता है तथा अन्त में द्रौपदी को भी हार लिया । कौरव द्रौपदी | कि, इन कमजोरियों को दृष्टि में रखकर कृष्ण ने भी इसकी की लोकलज्जा का हरण कर, उसका उपहास करने लगे, | कटु आलोचना की थी। तथा सभी बड़े बूहों के साथ भीष्म भी चूपचाप बैठ गया। 'अर्थस्य पुरुषो दास:-कौरवों का पक्ष अन्यायी हो द्रौपदी ने इसी से न्याय की माँग की, क्यों कि, यह | कर भी इसने उनका साथ क्यों दिया, इसका स्पष्टीकरण पाण्डवों तथा कौरव दोनों का हितैषी था, यही नहीं, यह भीष्म ने महाभारत में निम्न प्रकार किया हैपरम धर्मात्मा, न्यायी एवं उचित अनुचित का समझने | 'अर्थस्य पुरुषो दासः' दासस्त्वर्थो न कस्यचित् । वाला, सभी से उम्र में बड़ा, तथा कौरववंश का कर्ताधर्ता | इति सत्यं महाराज, बद्धोऽस्म्यर्थेन कौरवैः॥ प्रमुख व्यक्ति था। द्रौपदी ने इससे प्रश्न किया, 'धर्मराज (पुरुष अर्थ का दास है, पर अर्थ किसी का दास जब कौरवों द्वारा स्वयं अपने को हार गये हैं, तब क्या उन्हें नही है। हे महाराज, यह सत्य है, कौरवों ने मुझे अर्थ. अधिकार है कि, मुझे वह दाँव पर लगायें'? भीष्म ने | से बाँध लिया हैं। उत्तर दिया. 'वस्तुतः अधिकार तो नहीं, क्योंकि तुम्हें | उपर्युक्त भीष्म के कथन से साधारण रूप में यही दाँव पर लगाना अनुचित है। अतएव तुम्हें कोई जीत | अर्थ निकलता है कि, यह अर्थ (धन, संपत्ति) को प्रधानता . नहीं सकता । लेकिन तुम्हें न भूलना चाहिए कि, स्त्री देता है। यदि हम इसे इस प्रकार ले, तो भीष्म के ये. सदैव पति के आधीन रही है, तथा उसे अपनी पत्नी पर
| शब्द इसके आदर्शात्मक जीवन का धब्बा प्रतीत होता है सदैव अधिकार रहा है। आज तुम्हारा पति युधिष्ठिर
जो उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को ढक देता है। कौरवों का दास है, अतएव आर्यपत्नी होने के कारण, किन्तु कई अभ्यासकों के अनुसार, 'अर्थस्य पुरुषो दासः' तुम दास की दासी हो (म. स. ६०.४०-४२)। शब्दों से भीष्म के द्वारा प्रकट की गयी विवशता सिर्फ ___ भीष्म के द्वारा दिये गये इस उपदेश ने द्रौपदी | संपत्ति के विषय में न हो कर अधिक तर राजनैतिक ढंग
के हृदय को सन्तोष एवं शान्ति तो प्रदान न की थी। 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' में अर्थ की व्याख्या किया, किन्तु उसके मन को अधिक उद्विग्न बना दिया। 'राजनैतिक कर्तव्य ' इस अर्थ से की गयी हैं। इस द्रौपदी चाहती थी कि, भीष्म उस आर्तनाद करने | प्रकार, राजनैतिक कर्तव्यों से बँधा हुआ भीष्म यदि अपने वाली कुलवधू की लुटती हुयी लज्जा को देखकर, | व्रत के अनुसार, आजीवन कौरव पक्ष के दुःखसुखों में दुर्योधन के द्वारा दिये गये आदेशों का खण्डन करते हुए सदैव एक क्रियाशील कर्ताधर्ता रहा तो, इसमें कुछ भी उसकी नारीत्व की रक्षा करेगा । किन्तु भीष्म तो पति की अनौचित्य प्रतीत नही होता.। आज्ञाओं का अन्धा पालन करने पर प्रवचन दे कर भीष्म की तरह द्रोण, कृप एवं शल्य आदि ने भी ही, अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठे (म. वि. परि. | 'अर्थेन बद्ध; ' कह कर दुर्योधन के पक्ष का स्वीकार १.६०.२५-४५)।
किया था। उन में से द्रोण दक्षिणपांचाल देश का राजा __ कुछ धूमिल स्थल-भीष्म के चरित्र में यदाकदा कुछ था, एवं शल्य युधिष्ठिर का मातुल एवं मद्र का राजा था। धूमिल स्थल और दीख पड़ते हैं । कौरवों ने चूत में इन सारें राजा महाराजाओं के 'अर्थेन बद्ध' कथन से पाण्डवों को बुलाकर कपटपूर्ण व्यवहार के द्वारा उन्हें | | यही तात्पर्य प्रतीत होता है कि, वे सारे दुर्योधन से जीतने की योजना बनाई, जिसकी पूर्ण सूचना इसे प्राप्त वचनबद्ध थे, एवं उसी के कारण, दुर्योधन के पक्ष में थी। फिर भी इसने एक बार भी दुर्योधनादि को रोकने | शामिल हो गये थे (म. भी. ४१.३६-३७; ५१-५२; का प्रयत्न न किया। दुर्योधन को एक बार नहीं, हज़ार | ६६-६७, ७७-७८)। बार इसने कहा की, उसका पक्ष न्याय का नहीं, वह अन्य धूमिल स्थल-आधुनिक दृष्टि से हम देखे तो अन्यायी है। फिर भी भारतीय युद्ध के समय, इसने | हमें कुछ उचित नहीं लगता कि, अपने पिता की भोगपिपासा
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