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________________ भीष्म प्राचीन चरित्रकोश भुमन्यु की तृप्ति के लिए भीष्म इतना बड़ा ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर | में थी। भीष्मक के पुत्र रुकिनन् ने भोजकट नगरी में आगे बढे। उस व्रत के कारण, आगे आनेवाली कर्तव्य- | अपनी नयी राजधानी बसा ली। शंखालाओं को भी इसे बार बार उपेक्षा करनी पड़ी। लेकिन भुजकेतु--एक राजा, जो भारतीय युद्ध में दुर्योधन के यह लकीर का फकीर बना, एवं अपनी पुरानी प्रतिज्ञा-पर | पक्ष में शामिल था। जमा रहा। इसने आजन्म ब्रह्मचर्य का व्रत'न लिया होता. भुजंगम-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में तो कुरुवंश दो भागों में विभक्त होकर, आपस में टकरा | से एक था। कर खत्म न हो जाता। चित्रांगद तथा विचित्रतीर्य ऐसी सन्तान न हाती, जो अल्पायु म ही मर गयी । पांडु तथा । भुज्यु तौग्य-एक राजा, जो अश्वियों का आश्रित धृतराष्ट्र ऐसे पुत्र न होते कि, एक क्षय से मरा, तो दूसरा | था । तुम राजा का पुत्र होने के कारण, इसे 'तौग्य' जन्मान्ध पैदा हुआ। इसका कारण था कि यह सभी | 'तुग्र्य' उपाधियाँ प्राप्त थी। नियोग द्वारा जन्मे थे किसी में तेज, बल तथा शक्ति न थी एकबार इसका पिता तुम इसपर क्रुद्ध हुआ, जिस जिस भीष्म में वह थी, वह कर्मपथ से हठ कर निष्क्रिय | कारण उसने इसे परदीपस्थ शत्रप धर्मपथ अपना बैठा था। लिए भेज दिया (ऋ. १.११६.३-५, ११७.१४-१५; भीष्मक-एक भोजवंशीय नरेश, जो विदर्भ देश | ११९.४)। समुद्र में प्रवास करते समय, इसकी नौका का अधिपति था । महाभारत के अनुसार, यह पृथ्वी के | अचानक टूट पडी, जिस कारण यह बड़े संकट में फँस चौथाई भाग का स्वामी, इन्द्रसखा एवं अत्यंत बलवान | गया। उस समय सौ पतवार वाले नाव में प्रविष्ट हो राजा था । इसे हिरण्यरोमन् एवं भीमक नामान्तर भी कर अश्वियों ने इसका रक्षण किया, एवं इसे सुरक्षित रूप । प्राप्त थे (म. उ. १५५.१)। भांडारकर संहिता में इसके | में किनारे पहूँचा दिया। नाम के लिए 'हिरण्यलोमन्' पाठभेद प्राप्त है। इसकी | अश्वियों के पराक्रम का वर्णन करने के लिए उपयुक्त राजधानी कुंडिनपुर नगरी में थी। कथा का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है (ऋ. १. ___अपनी अस्त्रविद्या के बल से इसने पांड्य, ऋथ, कैशिक ११२.६, ६.६२.६-७; ६८.७; १०.४०.७; ६५.१२; : जैसे दाक्षिणात्य देशों पर विजय पायी थी (म.उ.१५५. | १४३.५)। १-२)। भुज्यु लाह्यायानि--एक आचार्य, जो याज्ञवल्क्य इसके भाई का नाम आकृति था, जो परशुराम जामदग्न्य | ऋषि का समकालीन था। 'लह्यायन' का वंशज होने के के समान शौर्यसंपन्न था। इसे रुक्मिणीनामक एक कन्या, | कारण, इसे 'लाह्यायन ' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था। एवं निम्नलिखित पाँच पुत्र थे:-- रुक्मिन, रुक्मरथ, पतंचल काप्य नामक आचार्य के कन्या के शरीर में रुक्मबाहु, रुक्मकेश एवं रुक्ममालिन् (भा. ३.३.३ प्रविष्ट होनेवाले सुधन्वन् आंगिरस नामक ऋषि से इसे १०.५२.२२)। यह शुरु से ही मगध देश का राजा | विशेष ज्ञान की प्राप्त हो गयी थी। उसी ज्ञान के बल से जरासंध के प्रति भक्ति रखता था, एवं भगवान् कृष्ण के | इसने याज्ञवल्क्य ऋषि को वादविवाद में परास्त करना विपक्ष म था ( म. स. १३.२१) । इसी कारण कृष्ण ने | चाहा । किन्तु अन्त में उस वादविवाद में इसका ही इसकी कन्या रुक्मिणी का हरण कर, उससे 'राक्षसविधि' | पराजय हुआ (बृ. उ. ३.३.१)। से विवाह किया। भुमन्यु--(सो. कुरु.) एक कुरुवंशीय राजा, जो पांडवों के राजसूय यज्ञ के समय, दक्षिण दिग्विजय | जनमेजय (प्रथम) का पौत्र, एवं धृतराष्ट्र राजा का पुत्र था करता हुआ सहदेव विदर्भ देश में आ पहुँचा। उस | (म. आ. ८९.५१)। पाठभेद (भांडारकर संहिता)समय भोजकट नगरी में भीष्मक एवं रुक्मिन् का उससे | 'सुमन्यु । दो दिनों तक घनघोर संग्राम हुआ, जिसमें इन्हे हार | २. (सो. पूरु.) एक महर्षि, जो दुष्यंत राजा का माननी पडी । अन्त में इसने सहदेव के शासन का स्वीकार | पौत्र, एवं भरत दौष्यान्ति राजा का पुत्र था। भरद्वाज किया। महाभारत में रुक्मिन् का निर्देश 'महामात्र | ऋषि के कृपाप्रसाद से यह उत्पन्न हुआ था। इसकी भीष्मक' नाम से किया गया है (म.स. २८. ४१)। माता का नाम सुनंदा था, जो काशीनरेश सर्वसेन की भीष्मक के राज्यकाल में विदर्भ की राजधानी कुंडिनपुर | कन्या थी (म. आ. ९०.३४)। ५७९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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