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भीमसेन
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
वह इससे गदायुद्ध करने लगा, जिसमें इसने उसे मूछित ले आओ, तभी मुझे शांति मिलेगी। यह अश्वत्थामा कर पराजित किया (म. श. १२)।
से युद्ध करने के लिए चल पड़ा, तथा साथ में अर्जुन भी - इसने इक्कीस हज़ार पैदल सेना एवं न जाने कितना इसकी रक्षार्थ गया। भीम ने अश्वत्थामा के साथ घोर गजसेना का विनाश किया। इससे लड़ने के लिए निम्न- | युद्ध किया, जिसमें वह इसकी शरण में आया तथा अपनी लिखित धृतराष्ट्रपुत्र आये । किन्तु इसने सब का वध कियाः- मणि निकाल कर दे दी (म. सौ. ११-१६)। दुर्मर्षण, श्रुतान्त (चित्राङ्ग) जैत्र, भूरिबल ( भीमबल), धृतराष्ट्रविद्वेष--भारतीय युद्ध के उपरांत, सभी लोग रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विषाह), दुर्विमोचन, | हस्तिनापुर पहुंचे। वहाँ आपस के वैमनस्य को भूल कर दुष्प्रधर्ष (दुष्पधर्षण), श्रुतवान् (म. श. २५.४-१९)। एकता के साथ रहने की बात धृतराष्ट्र ने रक्खी, तथा इसके बाद धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का भी इसने वध किया | पाण्डवों के साथ आलिंगन कर गले मिलने की अभिलाषा (म. श. २६)।
प्रकट की । युधिष्ठिर से गले मिलने के बाद, जैसे उसने भीम दुर्योधनवध--दुर्योधन को 'जलस्तंभन विद्या' आती | को बुलाया, वैसे ही उसकी मुखमुद्रा भाप कर, कृष्ण ने भीम थी, अतएव वह जलाशय के अन्दर, पानी में छिपकर बैठ को हटा कर अन्धे धृतराष्ट्र के आगे भीम के कद की गया। पाण्डवों को इसका पता चला, एवं वे जलाशय के लाहप्रतिमाला खड़ी की । धृतराष्ट्र भीम का नाम सुनते ही निकट आकर उसे युद्ध के लिए आह्वान करने लगे। खौल उठता था । अतएव उस लौहप्रतिमा को भीम समझ . युधिष्ठिर ने सहजभाव से कहा, 'हम सब से एक साथ तुम
कर इतनी जोर से आलिंगन किया कि, मुर्ति चूर चूर .. युद्ध न करो। हम पाँचो में जिससे चाहो युद्ध कर सकते होकर ध्वस्त हो गयी। बाद को जब उसे पता चला कि, हो, और उस युद्ध में यदि तुम उसे हरा दोगे, तो हम पूरा | वह मूति थी, तो मन में बड़ा लज्जित हुआ। यह देख . राज्य तुम्हे दे देंगे'। यह सुन कर कृष्ण आगे आया, और कर कृष्ण ने धृतराष्ट्र को बहुत बुराभला कहा (म. स्त्री .. भीम को आगे करते हए कहा, 'किसी और को नहीं. १२-१३)। भीम को ही जीत लो। समस्त राज्य तुम्हारा है। इस भीम गांधारी से भी मिलने गया, एवं उसे अपनी प्रकार दुर्योधन को भीम से भिड़ा दिया गया । कारण, | सफाई देते हुए क्षमा माँगी, जिससे सुन कर गांधारी शान्त. कृष्ण जानता था कि, दुर्योधन गदायुद्ध में प्रवीण है। उसका | हुई (म. स्त्री. १४)। जवाब केवल भीम ही है, और कोई नहीं। ___ युवराजपद--धर्मराज युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए
इस प्रकार दुर्योधन एवं भीम की लढाई टक्कर के | भीम ने संन्यास का विरोध किया, एवं कर्तव्यपालन पर साथ होने लगी। अर्जुन ने कृष्ण की सलाह से अपनी जोर देते हुए कहा कि, वह दुःखों की स्मृति एवं मोह को बायी जाँघ टोंक कर भीम को संकेत दिया कि, इसने क्या | त्याग कर, मन को काबू में रख कर राज्यशासन करे.एवं पण किया था। अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान आते ही. भीम | पाप के नाश के लिए अश्वमेध यज्ञ कर धर्म की स्थापना ने भीषण गदाप्रहार से दुर्योधन की जाँघ तोड़ दी एवं उसे करे । धर्मराज ने भीम की सलाह मान कर इसे युवराज नीचे गिरा दिया। इसने दुर्योधन का तिरस्कार करते हुए | के रूप में अभिषेक किया (म. शां. ४१.८)। एक लात कस कर उसके मस्तक पर ऐसी मारी कि, बाद में सारे पाण्डवो धृतराष्ट्र से प्रेम व्यवहार रखने तत्काल उसकी मृत्यु हो गयी (म. श. ५८.१२)। लगे, किन्तु भीमं धृतराष्ट्र को फूटी आँखो न देख सकता बलराम क्रोधित हो कर भीम पर आक्रमण करने के लिए था। जब धृतराष्ट्र ने वन जाने के लिए इच्छा प्रकट की. दौड़ा, तथा कहा 'यह अधर्म युद्ध है। किन्तु, कृष्ण ने | एवं राजकोष से धन की माँग की, तब भीम ने उसका उसे तत्काल समझा कर रोक लिया (म. श. ५९.२०- | विरोध किया। तब युधिष्ठिर तथा अर्जुनादि ने अपने २१)।
कोषों से उसे द्रव्य दिया (म. आश्र. १७)। अश्वत्थामावध-द्रौपदी शोक में संतप्त युधिष्ठिर से | भीमजलाकी एकादशी-एक बार व्यास ने इसे कहने लगी कि, वह अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार | निर्जला एकादशी के माहात्म्य को बताया । उसे सुनाना चाहती हैं, जिसने उसके पुत्रों का वध किया है । | करने को यह तैयार तो हुआ, किन्तु भोजनभक्त युधिष्ठिर उसको समझाने लगा। तब वह भीम के पास | होने के कारण, यह सोच में पड़ा गया कि, मुझे आयी तथा कहा 'अश्वत्थामा को मार कर उसका गणि | इस व्रत को हर माह पड़ेगा। किन्तु जब इसे
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वह अश्वत्थामा की मृत्यु काला
करने को यह तयार
में पड़ा गया कि, मुझे