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भीमसेन
पता चला कि बिना किसी भोजन तथा जलग्रहण किये हुए केवल एक बार इस व्रत को कर लेने से, सब एका दशियों का फल प्राप्त होता है, तो यह तत्काल तैयार हो गया । तत्र से ज्येष्ठ माह की शुद्ध एकादशी व्रत को ' भी नजला की एकादशी', एवं उसके दुसरे दिन को 'पाण्डव द्वादशी' कहते हैं (पद्म. उ. ५१ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
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गर्वपरिहार – स्कंदपुराण में भीम के अहंकारनाश की एक कथा दी गई है। एकबार युद्ध समाप्ति के उपरांत, सभी पाण्डवों के साथ कृष्ण उपस्थित था। बातचीत के बीच सब ने युद्धविजय का श्रेय कृष्ण को देना आरम्भ किया, जिसे सुनकर भीम अहंकार के साथ कहने लगा, 'यह मैं हूँ, जिसने अपने बल से कौरवों का नाश किया है 1 श्रेया अधिकारी मै हुँ' ।
तब गरूड़ पर बैठकर कृष्ण भीम को अपने साथ लेकर आकाशमार्ग से दक्षिण दिशा की ओर उड़ा समुद्र तथा सुवेल पर्वत लाँघकर लंका के पास बारह योजन व्यास के सरोवर को दिखाकर, कृष्ण ने भीम से कहा कि, यह . उसके तल का पता लगा कर आये । चार कोस जाने पर भी भीम को उसके तल का पता न चला। वहाँ के तमाम योद्धाओं उसके ऊपर आक्रमण करने लगे तब वह हाँफता हुआ ऊपर भाया एवं अपनी असमर्थता बताते 'हुए सारा वृत्तांत कह सुनाया । कृष्ण ने अपने अँगूठे के झटके से उस सरोवर को फेंक दिया, एवं इससे कहा, 'यह राम द्वारा मारे गये कुंभकर्ण की खोपडी है, तथा तुम पर आक्रमण करने वाले योद्धा, सरोगेव नामक असुर है। यह चमकार देखकर नीम का अहंकार शमित हुआ, एवं समित होकर इसने कृष्ण से माफी माँगी ( स्कंद. १.२.६६ ) ।
भीषण
मृत्यु के समय इसकी आयु एक सौ सात साल की थी ( युधिष्ठिर देखिये) ।
परिवार - भीम की कुल तीन पत्नियाँ थी हिडिया, द्रौपदी एवं काशिराज की कन्या बलधरा । उनमें से द्रौपदी से इसे सुतसोम नामक पुत्र हुआ (म. आ. ५७.९१ ) । हिडिंबा से इसे घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। भागवत में द्रौपदी से उत्पन्न इसके पुत्र का नाम श्रुतसेन दिया गया है ।
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मृत्यु काफी वर्षों तक राज्यभोग करने के उपरांत, अनि के कथनानुसार पाण्डवों ने शस्त्रसंन्यास एवं राज्यसंन्यास लिया, एवं वे उत्तर दिशा की ओर मेरु पर्वत पर की ओर अग्रसर हुए। मेरु पर्वत पर जाते समय युधिष्ठिर को छोड़ कर द्रौपदी सहित सारे पाण्डव इस क्रम से गल गये द्रीपट्टी, सहदेव, नकुल अर्जुन एवं भीम स्वर्गारोहण के पूर्व ही अपना पतन देखते हुए, । इसने युधिष्ठिर से उसका कारण पूछा। युधिष्ठिर ने कारण बताते हुए कहा, 'तुम अपने को बाली तथा दूसरे के तुच्छ मानते थे, तथा अत्यधिक भोजनप्रिय थे । इसी लिए तुम्हारा पतन हो रहा है ' ( म. महा. २ ) ।
काशिराज कन्या बलधरा को स्वयंवर में जीत कर प्राप्त किया था । उससे इसे शर्वत्रात नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था ( म. आ. ९०.८४ ) । भागवत में इसकी तीसरी पत्नी का नाम 'काली' दिया गया है, एवं उससे उत्पन्न पुत्र का नाम ' सर्वगत ' बताया गया है ( काली देखिये; भा. ९.२२.२७-३१) | महाभारत के अनुसार, इसकी पत्नी काळी वेदि देश के सुविख्यात राजा शिशुपाल की बहन थी, जो भीम का कट्टर शत्रु था (म. आश्र. २२.११ ) ।
भीमसेन पारिक्षित - सुविख्यात पूरुवंशीय सम्राट परिक्षित का पुत्र, जो जनमेजय पारिक्षित का बन्धु था (श. बा. १३.५.४.३ ) । शौनक नामक आचार्य ने इससे एक यश करवाया था (सो. श्री. १६.९.२ विष्णु. ४.२०१६ म. आ. २.१) । कुरुक्षेत्र में किये यज्ञ में इसने देवताओं की कुत्तियाँ सरमा के बेटे को पीटा था।
२. (सो. पूरु. ) एक पूरुवंशीय राजा, जो परिक्षित् (द्वितीय) का पुत्र था। इसकी माता का नाम अरुग्वत् पुत्र सुयशा था । इसकी पत्नी का नाम सुकुमारी था, जो केकय देश की राजकुमारी थी। मुकुमारी से इसे पर्याय नामक । पर्यश्रवस् पुत्र उत्पन्न हुआ (म. आ. ९०-४५ ) ।
भीरु -- मणिभद्र नामक दक्ष के पुत्रों में से एक । इसकी माता का नाम पुण्यजनी था ।
भीषण - एकचक्रा नगरी में रहनेवाले बक नामक असुर का पुत्र । इसके पिता का वध भीससेन के द्वारा हुआ ( क देखिये) । अपने पितृबंध के कारण, यह । मन ही मन जलता रहा, जिसके कारण आगे चल कर, इसने पांडवों का अश्रमेधीय अश्व एकचका नगरी के समीप पकड़ लिया। पश्चात् अर्जुन ने इसके साथ घोर युद्ध कर इसका वध किया ( अ. २२) |
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२. एक असुर, जिसे हनुमान् ने परास्त किया था (पद्म उ. २०६ ) ।
२. (सो. विदूरथ. ) एक राजा,
हृदिक राजा का पुत्र था ।
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जो मत्स्य के अनुसार