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भीमसेन
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
प्रकार धुणित हत्या को देख कर, अर्जुन शोकाकुल हो उठा, से विमुख हो कर भाग जाने ही वाला था, कि दुर्योधन ने एवं उसे युद्ध के प्रति ऐसी विरक्ति उत्पन्न हो गयी, जैसे | अपने भाइयों को युद्ध के लिए उत्तेजित करते हुए, भीम उसे युद्ध के प्रारम्भ में हुयी थी। अर्जुन ने कहा, 'जिस | के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया । उन सब के युद्ध में इस प्रकार की अधार्मिक कार्यप्रणालियों का प्रयोग | साथ भीम का घोर युद्ध हुआ, जिसमें इसने विवित्सु, विकट, करना पड़ता है, वह युद्ध मैं नहीं करूँगा'। इस पर भीम | सह, क्रोथ, नंद तथा उपनंद आदि धृतराष्ट्रपुत्रों का वध ने अर्जुन की बड़ी कटु आलोचना करते हुए कहा, 'गुरु | कर, श्रुता, दुर्धर, सम निषंगी, कवची, पाशी, दुष्प, द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, और फिर भी क्षत्रियों की भाँति युद्ध- | धर्ष, सुबाहु, वातवेग, सुवर्चस्, धनुग्रह, तथा शल आदि भूमि में उतरे। इससे बड़ा अधर्म क्या हो सकता है ? | को युद्ध में परास्त किया। रही बात कि, तुम युद्धभूमि को छोड़ कर जा रहे हो, तो |
___ तब तक कर्ण पुनः तैयार हो कर युद्धभूमि में आ पहुँचा। जा सकते हो । तुम्हे घमण्ड है अपने शस्त्रशक्ति की, पर
लेकिन भीम ने उसे एक ही बार में वेध दिया। इससे कर्ण तुम.नहीं जानते कि, अकेला भीम कौरवसेना के संहार
क्रोध में पागल हो उठा, और उसने भीम का ध्वज अपने करने में समर्थ है ' (म. द्रो. १६८)।
बाण से उखाड़ कर, इसके सारथी को काट कर इसे रथ__अपने पिता के शोक में संतप्त अश्वत्थामा ने क्रोधामि | विहीन कर दिया (म.क. ३५)। कर्ण के बाणों से बिंध में उबल कर भीम के ऊपर 'नारायण अस्त्र' का प्रयोग किया,
कर युधिष्ठिर बिल्कुल त्रस्त हो गया। भीम को, जैसे ही यह जिससे त्रस्त हो कर भीम तथा इसकी सेना शस्त्रादि
पता चला, वैसे ही इसने अर्जुन को उसके समाचार जानने छोड़ कर हतबुद्धि हो कर भगने लगी। अश्वत्थामा के | के लिए भेज दिया ( म.क. ४५ )। नारायण अस्त्र को समेट लेने के लिए, अर्जुन ने वारुणि अस्त्र का प्रयोग कर, अश्वत्थामा को रथ के नीचे खींच कर कुछ समय के उपरांत, भीम दत्तचित्त हो कर दुर्योधन की उसे शस्त्रविहीन कर दिया। नारायण अस्त्र के शमन के
सेना के संहार करने में जुट गया। दुर्योधन की आज्ञा से उपरांत, भीम पुनः ससैन्य आया । किन्तु अश्वत्थामा के
शकुनि ने भीम पर आक्रमण किया, किन्तु इसने उसे द्वारा इसका सारथी घायल हुआ, जिससे इसे युद्धभूमि से |
भूमि पर गिरा दिया, और वह बाद में दुर्योधन के रथ हटना पड़ा (म. द्रो. १७०-१७१)।
के द्वारा बाहर लाया गया (म. क. ४५)। सोलहवाँ दिन--युद्ध के सोलहवें दिन कर्णार्जनों के | दुःशासनवध-शकुनि को परास्त हुआ देख कर द्वारा व्यूहरचना होने के उपरांत भीम तथा क्षेमधर्ति का | दुःशासन आगे आया, एवं भीम पर आक्रमण बोल दिया। हाथी पर से युद्ध हुआ। भीम ने क्षेमधर्ति को पराजित | उसे देखते ही भीम ने उसके सारथी एवं घोड़े मार डाले. कर. हाथी मार कर उसे नीचे उतरने के लिए मजबूर | एवं उसे जमीन पर गिरा कर, स्वयं रथ से उतर कर, उसके किया, एवं बाद में उसका वध किया (म. क. ८)। कुछ | हाथ को तोड़ डाला । पश्चात् उसकी छाती फोड़ कर, देर के उपरांत, अश्वत्थामा एवं भीम के बीच में घोर संग्राम इसने उसके रक्त का प्राशन किया, तथा उसके रक्त के हुआ, जिसमें दोनों एक दूसरे के शरों से घायल हो कर | सने हाथों से द्रौपदी की वह वेणी गूंथी, जो दुःशासन मूञ्छित हुए, तथा अपने अपने सारथियों के द्वारा युद्ध
द्वारा मुक्त की गयी थी (पद्म. उ. १४९)। इस प्रकार भूमि से हटाये गये (म. क. ११)।
भीम ने दुःशासन को मार कर अपना प्रण पूरा किया। सत्रहवाँ दिन-सत्रहवें दिन दुर्योधन ने जब देखा कि, |
इसी समय इसने अलंबु, कवची, खड्गिन् , दण्डधार, उसकी समस्त सेना बुरी तरह ध्वस्त होती जा रही है. निषंधी, वातवेग, सुवर्चस् पाशी, धनुग्रह अलोलुप, शल, तब उसने अपना सेना का सुसंगठन कर के, भीम को |
संध (सत्यसंध) आदि धृतराष्ट्रपुत्रों का वध किया (म. समाप्त करने के लिए, स्वयं युद्धभूमि में उतर कर उस पर
क. ६१-६२)। धावा बोल दिया। किन्तु भीम ने उसको पराजित कर | अठारहवाँ दिन--अठारहवें दिन के युद्ध में कृतवर्मा ने उसकी समस्त गजसेना को पराजित किया (म. क. परि. | भीम के घोड़े को मार डाला, तथा भीम द्वारा नये घोड़ो के १. क्र. १४-१५)।
प्रयोग किये जाने पर, अश्वत्थामा ने उन्हें भी मार डाला। ___ कर्ण से युद्ध-कुछ देर के बाद कर्ण तथा भीम का | भीम ने यह देख कर कृतवर्मा का रथ विध्वंस कर, शल्य युद्ध हुआ। कर्ण भीम से लड़ाई में परास्त हो कर युद्धभूमि से युद्ध कर, उसके सारथी को मार डाला। यह देखकर,
प्रा. च. ७२]