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भीमसेन
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
दीर्घकाल तक निनादित करूँगा, तथा अर्जुन के रथ पर | युधिष्ठिर ने भीम के उसके चंगुल से बचाया, तथा नहुष बैठ कर तुम्हारी रक्षा करूँगा' (म. व. १५०.१३-१५)। राजा भी अजगरयोनि से मुक्त हुआ (म. व. १७३; इतना कह कर परिस्थिति समझाते हुए हनुमान ने इसे | १७८; नहुष २. देखिये)। आगे जाने के लिए कहा। उसने इसे सोगंधिक सरोवर | दुर्योधन-चित्रसेन युद्ध-एक बार पाण्डवों को अपने का मार्ग बता कर कमलों के प्राप्त करने की विधि भी वैभव का प्रदर्शन करने के लिए, कौरव अपनी पत्नियों को बताई (म. व. १४६-१५०)।
| लेकर द्वैतवन में आ पहुँचे । वहाँ इन्द्र की आज्ञा से, __ कुबेर से विरोध--यह सरोवरों से कमल प्राप्त चित्रसेन गन्धर्व ने उनको बन्दी बनाकर इन्द्र के पास ले करने के लिए सौगन्धिकवन पहुँचा । वहीं कैलास | जाने लगा। तब युधिष्ठर ने भीम से कहा कि, यह अपने की तलहटी में स्थित कुबेर का सौगन्धिक सरोवर था, भाइयों को कष्ट से मुक्त कराये। भीम ने दुर्योधन के जिसकी रक्षा के लिए उसने क्रोधवश नामक राक्षस रख ! पकड़े जाने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए, उसकी कटु छोडे थे। इसका क्रोधवश नामक राक्षसों के साथ युद्ध आलोचना की । किन्तु युधिष्ठिर के समझाये जाने पर यह हुआ, तथा इसने उन्हे परास्त कर भगा दिया, तथा कमल कौरवों को चित्रसेन से मुक्त करा कर वापस लाया, एवं तोड़ने लगा (म. व. १५२.१६-२३)। राक्षस भग कर युधिष्ठिर के सामने पेश किया । युधिष्ठिर ने सब को मुक्त कुवेर के पास गए, तथा कुबेर ने इसे यथेच्छा विहार | किया (म. व. २३४-२३५)। करने, एवं कमलों के तोड़ने की अनुमति प्रदान की (म. |
| जयद्रथ से युद्ध-एक बार पाण्डव मृगया को गये थे, व. १५२.२४)।
| इसी बीच अवसर को देखकर, राजा जयद्रथ ने द्रौपदी एवं - उधर धर्मराज को कुछ अपशकुन दृष्टिगोचर होने लगे, | कुलोपाध्याय धौम्य ऋषि का हरण किया। परिस्थिति का जिससे शंकित होकर घटोत्कच के साथ वह भीम के पास | ज्ञान होते ही. पाण्डवों ने जयद्रथ पर धावा बोल दिया।
आ पहुँचा । कुवेर ने उसका स्वागत किया, तथा धर्मराज | भीम ने बड़ी वीरता के साथ जयद्रथ से युद्ध किया, एवं एवं भीम को अतिथि के रूप में ठहरा कर उनका खूब | उसे नीचे गिराकर अपने पैरों के ठोकर से उसके मस्तक
आदरसत्कार किया। इस प्रकार भीम एवं कुबेर में मित्रता को चर कर, उसके बाल को काट कर घसीटता हआ युधिष्ठिर : स्थापित हो गयी।
के सामने हाजिर किया। किन्तु धर्मराज ने उसे छोड़ दिया ___एक बार द्रौपदी ने भीम से क्रोधवश राक्षसों को मारकर | (म. व. २५४-२५५ )। सम्पूर्ण प्रदेश को भयरहित करने के लिए प्रार्थना की।
यक्षप्रभ-एक बार धर्मादि के लिए पानी लाने के भीम तत्काल राक्षसों के उत्पात को दमन करने के लिए निकला पड़ा, एवं अनेकानेक क्रोधवश राक्षसों को मार
लिए नकुल गया । वहाँ पर यक्षरूप यमधर्म ने उसे पानी
लेने के पूर्व अपने प्रश्नों के उत्तर माँगे, किन्तु वह न कर यमपुरी पहुंचा दिया। उनमें कुबेर का मित्र मणिमान्
माना, तथा पानी पिया, जिस कारण वह मृत हो कर गिर भी मारा गया (म. व. १५८)। जो बचे, वे फरियाद
पड़ा। धर्म की आज्ञानुसार गये हुए सहदेव, अर्जुन, लेकर कुबेर के पास जा पहुँचे । पहले तो कुबेर क्रोध से
तथा भीम की यही स्थिति हुयी। अन्त में युधिष्ठिर ने लाल हो उठा, किन्तु बाद को उसे स्मरण हो आया कि,
| यक्ष के प्रश्नों का तर्कपूर्ण उचित उत्तर देकर वर प्राप्त 'यह भीम की गल्ती नहीं, बल्कि अगस्त्य मुनि के द्वारा दिये
कर, सभी भाइयों को पुनः जीवित कराया (मं. व. २९७, गये शाप का परिणाम है, जीसे मुझे भुगतना पड़ रहा है।। ऐसा समझकर वह भीम के पास आया, तथा इससे सन्धि
युधिष्ठिर देखिये)। कर, कुछ दिनों तक अपने यहाँ रखकर, खूब आदरसत्कार | अज्ञातवास--वनवास की अवधि समाप्त होने के किया (म. व. १५७-१५८)। पश्चात् धर्म के साथ इसने | बाद, अज्ञातवास का समय आ पहुँचा। द्रौपदी के साथ मेरु पर्वत के दर्शन किए, तथा पूर्ववत् गंधमादन पर्वत | सारे पाण्डवों ने अपने वेश बदल कर, विराट राजा पर रहकर वनवास की अवधि पूरी करने लगा। यहाँ गुप्तरूप से रहने का निश्चय किया। उस समय
नहुषमुक्ति--एक बार अरण्य में प्रवेश करते समय भीम ने वहाँ पर बल्लव नाम धारण कर, रसोइये एवं अजगररूपधारी राजा नहुष ने भीम को निगल लिया। पहलवान की जिम्मेदारी संभाली। महाभारत की कई पश्चात् उसके द्वारा पूँछे गये प्रश्नों के उचित उत्तर देकर प्रतियों मे, इसका नाम 'पौरोगव बल्लव' दिया गया है
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