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भीमसेन
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
(बल्लव देखिये)। पाण्डवों के बीच इसका सांकेतिक | इस पर कृष्ण ने इससे कहा था, 'यह स्वभाव के विरुद्ध नाम 'जयेश' था (म. वि. ५.३०; २२.१२)। | तुम क्या कह रहे हो' ? तब इसने कृष्ण को तर्कपूर्ण उत्तर ___ बल्लव का रूप धारण कर यह, विराट के दरबार में | देते हुए कहा था, 'आपने मुझे सही नहीं पहचाना । मै प्रविष्ट हुआ,एवं इसने यह सूचित किया कि,यह इससे पूर्व पराक्रमी एवं बलशाली जरूर हूँ; किन्तु मैंने यही देखा है युधिष्ठिर के यहाँ का रसोइया था। जिस कारण विराट ने | कि, युद्ध लिप्सा से राजकुल नष्ट हो जाते है। इतिहास इसे अपनी पाकशाला का अधिपति बनाया (म. वि. साक्षी है कि, अभी तक भारत में अठारह कुलघातक ७)।
(कुलपांसक) राजा ऐसे हुए, है जिन्होंने अपनी युद्धलिप्सा एकबार विराट की सभा में शंकरोत्सव में मल्लयुद्ध का | के कारण, अपने समस्त कुलों को जड़मूल से समाप्त कर आयोजन किया गया, उसमें जीमूत नामक मल्ल के द्वारा दी | दिया। इसी कारण मैं यही चाहता हूँ कि, जहाँ तक हो गयी चुनौती किसीने स्वीकार न की। यह डरता था कि युद्ध से अलग रहकर कुरुकुल को नष्ट होने से बचायें कहीं लोग इसे पहचान न लें, फिर भी इसे मलयुद्ध में ('मा स्य नो भरता नशन्') भीम के चरित्र की यह उतरना ही पड़ा, जिसमें भीम ने जीमूत को कुश्ती में हरा उदात्त प्रवृत्ति, एवं समझदारी को देख कर कृष्ण चकित कर उसका वध किया (म. व. १२)।
हो गया (म. उ. ७२-७४)। कीचकवध-राजा विराट का साला कीचक, द्रौपदी भारतीय युद्ध-जिस युद्ध को टालने के लिए लाखों पर मोहित होकर उस पर बलात्कार का प्रयत्न करने लगा। प्रयत्न किये गये वह भारतीय युद्ध शुरू हुआ, जिसमें । दौपदी ने उसी रात को पाकशाला में जा कर भीम को | कौरवों एवं पाण्डवों के साथ अनेकानेक वीर योद्धाओं ने जगाया. तथा कीचक के वध की प्रार्थना की। भीम के | भाग लिया। द्वारा बताये हुए तरीके के अनुसार, द्रौपदी ने कीचक को
__प्रथम दिन-प्रथम दिन के युद्धारम्भ में दुर्योधन के । नृत्यागार में बुलाया। वहाँ उसका एवं भीम का
| साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध हुआ (म. भी. ४३.१७-१८)1 भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें इसने उसका वध किया
युद्ध प्रारम्भ होते ही, कलिंग देश के राजा भानुमान् , (म. वि. २१.६२)। सुबह कीचक के अनेकानेक
निषध देश के राजा केतुमान् तथा श्रुतायु ने भीम पर
बन्धुओं ने | आ कर सैरन्ध्री (द्रौपदी) पर यह आरोप लगा |
आक्रमण बोल दिया। भीम ने भी चेदि, मत्स्य तथा या कि, उसके कारण ही यह सब कुछ हुआ। अतएव
करुष को साथ ले कर उनपर आक्रमण किया। किन्तु उन
सब के विरुद्ध कोई ठहर न सका,केवल भीम ही मैदान में उसे पकड़ कर मृत कीचक के साथ जलाने की नियोजना की । वे उसे जलाने ही जा रहे थे, कि भीम
डटा रहा। इसने कलिंगों के साथ युद्ध करते हुए भानुविरूप वेशभूषा धारण कर, एक वृक्ष उखाड़ कर उनको
कुल के शक्रदेव का वध किया.(म. भी. ५०.२१-२२)। मारने की ओर दौड़ा। उपकीचकों ने इसे इसप्रकार | पश्चात् इसन कालग राजा मानुमान् एव उसक बाद अपनी ओर आता हुआ देखकर समझ गये कि, यह
चक्ररक्षक सत्य एवं सत्यदेव का वध किया। इसके बाद सैरन्ध्री का गंधर्वपति आ टपका, अतएव वे अपनी जान
इसने निषध देश के राजा केंतुमान् का भी वध किया। छोड़ कर भागने लगे। किन्तु भीम से भग कर कहाँ जाते ? | कालग
कलिंग देश की गजसेना को ध्वस्त कर के खून की नदियों इसने एक सौ पाँच उपकीचकों का वध कर द्रौपदी को | बहा दी (म. भी. ५०.७७-८३)। .. बन्धनमुक्त किया। पश्चात् यह एवं द्रौपदी भिन्नभिन्न इतने कुचले जाने पर भी कलिंग ने पुनः तैयारी मार्गों से नगर में वापस आये (म. वि. २२-२७)। कर के, इस पर फिर चढाई कर दी। उस समय शिखंडी,
भीम-कृष्ण संवाद-भारतीय युद्ध के पूर्व, पाण्डवों की | धृष्टद्युम्न तथा सात्यकि इसकी सहायता के लिए आगे ओर से कृष्ण कौरवों के दरबार में गया था, एवं निवेदन आये। ऐसी स्थिति देख कर, भीष्म ने कौरवसेना को किया था कि,पांडवों की उचित माँगों को ध्यान में रख कर | व्यवस्थित कर के भीम पर धावा बोल दिया। उस समय उनके प्रति न्याय किया जाये। जाते समय भीम ने कृष्ण | भीम की ओर से सात्यकि ने भीष्म के सारथि को मार से कहा था, सामनीति के द्वारा यदि आपसी सम्बन्ध न डाला, जिस कारण भीष्म के रथ के अश्व इधरउधर टूटे, तो अच्छा है।
भगने लगे (म. भी. ५०, ५१.१)। ५६६