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भीमसेन
प्राचीन चरित्रकोश
भीमसेन
लाक्षागृह से निकल कर, अपने भाइयों के साथ विदुर | युद्ध में इसका एवं शल्य का भीषण युद्ध हुआ था । द्रौपदी के सेवक की मदद से, इन्होंने गंगा नदी पार की। को जीत कर, अर्जुन और भीम वापस लौटे, एवं माँ से तदोपरांत शीघ्रातिशीघ्र दूर भाग चलने के हेतु से, अपने | विनोद में कहा कि, हम लोग भिक्षा लाये हैं । मज़ाक को न माँ को कन्धे पर, नकुल-सहदेव को कमर पर, तथा | समझ सकने के कारण, माँ ने उस 'भिक्षा को आपस में धर्मार्जुन को हाथ में लेकर दौड़ते हुए, भीम ने एक जंगल | बाँट लेने को कहा। इस प्रकार द्रौपदी अर्जुन के साथ में आ कर शरण ली । कुन्ती तथा अन्य पांडव थक कर | भीमादि की भी पत्नी हुयी (म. आ. १८०-१८१)। इतने प्यासे हो गये थे कि, उन्हे पेड़ की छाया में लिटा जरासंधवध--धर्मराज ने राजसूय यज्ञ किया, जिसमें कर, यह पानी लाने गया । पानी ला कर इसने देखा | कृष्ण की सलाह से युधिष्ठिर ने अर्जुन तथा भीम को कि, सब थक कर सो गये हैं । अतएव यह उनके रक्षार्थ | जरासंध पर आक्रमण करने को कहा। वहाँ भीम एवं जगता हुआ, उनके उठने की प्रतीक्षा में बैठा रहा। जरासंध में दस दिन युद्ध चलता रहा, और जब जरासंध
हिडिंबाविवाह--इसी वन में, एक नरभक्षक राक्षस | लड़ते लड़ते थक सा गया, तब कृष्ण के संकेत पर. इसने हिडिंब रहता था, जिसने मनुष्यसुगन्धि का अनुमान उसे खड़ा चीर कर फेंक दिया। किन्तु वह फिर जुड़ गया। लगा कर, अपनी बहन हिडिंबा को इन्हें लाने के लिए | तब कृष्ण के द्वारा पुनः संकेत पा कर, इसने उसे फिर चीर कहा। हिडिंबा आई, तथा भीम को देखकर, इसके | डाला, तथा दाहिने भाग को अपनी दाहिनी ओर, तथा व्यक्तित्व पर मोहित होकर, इसे वरण में प्राप्त कर लेनेके बायें भाग को अपने बायों ओर फेंक दिया, जिससे दोनों लिए निवेदन करने लगी। किन्तु भीम ने हिडिंबा की इस | शरीर के भाग जुड़ न सकें (म. स. १८)। प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। उधर अधिक देर हो | पूर्वदिग्विजय--फिर भीम को धर्मराज ने पूर्व दिशा की लाने पर, वस्तुस्थिति की जाँच करता हुआ हिडिंब राक्षस | ओर विजय प्राप्त करने के लिए भेजा, जिसमें राजा भद्रक भी आ पहुँचा। पहले भीम एवं उसमें वादविवाद हुआ, | इसके साथ था (भा. १०.७२.४४ )। इसने क्रमशः फिर दोनों युद्ध में जूझने लगे।
पांचाल, विदेह गण्डक, दशार्ण तथा अश्वमेध इत्यादि इस ढूंन्द्वयुद्ध की आवाज़ से सभी पांडव जग पडे, पूर्ववर्ती देशों को जीत कर, दक्षिण के पुलिन्द नगर पर धावा एवं उन्हें सारी बातें भीम के द्वारा पता चलीं । पश्चात् भीम | बोल दिया। वहाँ के राजा को जीत कर. यह चेदिराज शिशुने हिडिंब राक्षस का वध किया, एवं कुन्ती तथा अपने | पाल के पास गया, तथा वहाँ एक माह रह कर, इसने कुमार भाइयों के साथ इसने आगे चलने के लिए प्रस्थान किया। देश का श्रेणिमन्त राजा को जीता । फिर 'गोपालकच्छदेश'.
किन्तु हिडिंबा ने इसका साथ न छोड़ा. वह | उत्तरकोसल, मल्लाधिप, हिमालय के समीपवर्ती जलोदइसका पीछा करती हुई साथ लगी ही रही । अन्त में
भव देश, भल्लाट, शुक्तिमान्पर्वत, काशिराज सुबाहु, कुन्ती ने इन दोनों में मध्यस्थता कर के भीम को आदेश
सुपार्श्व, राजपति क्रथ, मत्स्यदेश, मलद, अभयदेश,पशुभूमि, दिया कि. वह हिडिंबा का वरण करे। भीम ने हिडिंबा | मदधार पर्वत तथा सोमधेयों को जीत कर, यह उत्तर के सामने एक शर्त रखी कि, उसके एक पुत्र होने तक
की ओर मुड़ा। बाद में भीम ने वत्सभूमि, भर्गाधिप, ही यह उसके साथ भोगसम्बन्ध रक्खेगा। हिडिंबा ने | निषादाधिपति, मणिमत् आदि प्रमुख राजाओं के साथ इसे अपनी स्वीकृति दे दी, तथा दोनों का विवाह हो | साथ, दक्षिणमल्ल, भोगवान्पर्वत, शर्मक, वर्मक, वैदेहक गया। विवाह के उपरांत भीम एवं हिडिंबा रम्य स्थानों जनक आदि को सुलभता के साथ जीत लिया। में घूमते हुए वैवाहिक जीवन के आनंदो में निमग्न रहे। शक तथा बर्बरों को जीतने के लिये, इसने उन्हें कालान्तर में, इसे हिडिंबा से घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। कूटनीति से जीता । इनके अतिरिक्त इंद्रपर्वत के समीप
बकासुरवध--महर्षि व्यास के कथनानुसार, यह अन्य | के किराताधिपति, सुझ, प्रसुझ, मागध, राजा दण्ड, पाण्डवों एवं अपनी माँ के साथ एकचक्रा नगरी में गया, | राजा दण्डधार, तथा जरासंध के गिरिव्रज नगर आदि को जहाँ अपनी माता के आदेश पर, इसने बकासुर का वध | अपने पौरुष के बल जीत लिया। फिर इन्ही लोगों की कर, एकचक्रानगरी को कष्टों से उबारा था (बक देखिये)। सहायता ले कर, कर्ण तथा पर्वतवासी राजाओं को
द्रौपदीस्वयंवर--द्रुपद राजा की कन्या द्रौपदी (कृष्णा), जीत कर, मोदागिरी के राजा का वध कर, इसने पुंड्राधिप जब स्वयंवर में अर्जुन द्वारा जीती गयी, तब वहाँ पर हुए | वासुदेव पर आक्रमण बोल दिया। पश्चात् कौशिकी कच्छ