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________________ भीमसेन प्राचीन चरित्रकोश भीमसेन दुर्योधन के षड्यंत्र--दुर्योधन कौरवपुत्रों में बड़ा | जगने के उपरांत, नागों के द्वारा इसका मंगलाचरण गाया होशियार, चालबाज एवं धूर्त था। उसने इसे खत्म करने गया, एवं उनके द्वारा इसे दस हज़ार हाथियों के समान के अनेकानेक कई षड्यंत्र रचे । आजीवन वह भीम की | बलशाली होने का वरदान दिया गया। बाद को यह जान के पीछे पड़ा ही रहा, कारण वह नहीं चाहता था | नागों के द्वारा नागलोक से पृथ्वी पर पहुँचा कर, सकुशल कि, यह काँटा उसे जीवन भर चुभता रहे । एक बार जब | बिदा किया गया। यह सोया हुआ था, तब दुर्योधन ने इसे ऊपर से नीचे नागलोक से लौट कर यह खुशी खुशी हस्तिनापुर आ फेंकवा दिया, किन्तु इसका बाल बांका न हुआ। दूसरी | पहुँचा, एवं इसने अपनी सारी कथा माँ कुंती को प्रणाम बार उसने इसे सो द्वारा कटवाया, तथा तीसरी बार | कर कह सुनायी । कुंती ने सब कुछ सुन कर, इस कथा भोजन में विष मिलवा कर भी इसे खिलवाया, पर भीम को किसीसे न कहने का आदेश दिया। जैसा का तैसा ही बना रहा (म. आ. ११९)। | शिक्षा-इसने राजर्षि शुक से गदायुद्ध की शिक्षा प्राप्त जब दुर्योधन के ये षड्यंत्र सफल न हुए, तब उसने | की थी (म. आ. परि. १. क्र. ६७)। अन्य पाण्डवों इसका वध करने के लिए एक दूसरी युक्ति सोची । उसने | की भाँति, इसे भी कृपाचार्य ने अरशस्त्रों की शिक्षा दी गंगा नदी से जल काट कर, एक जलगृह का निर्माण किया, | थी (म.आ.१२०.२१)। पश्चात् द्रोणाचार्य ने इसे एवं एवं उसमें जलक्रीड़ा करने के लिए पाण्डुपुत्रों को आमंत्रित | अन्य पाण्डवों को नानाप्रकार के मानव एवं दिव्य अस्त्रकिया। जब सब लोग जलक्रीड़ा कर रहे थे, तब सभी ने शस्त्रों की शिक्षा दी थी। एक दूसरे को फल देकर जलविहार किया। दुर्योधन ने गदायुद्ध की परीक्षा लेते समय, इसके तथा दुर्योधन अपने हाथों से भीम को विषयुक्त फल खिलाये, जिसके के बीच लड़ाई छिड़नेवाली ही थी कि, गुरु द्रोण ने कारण जलक्रीड़ा करता हुआ भीम थक कर नदी के किनारे आ कर लेट गया, तथा नींद में सो गया । यह सुअवसर अपने पुत्र अश्वत्थामा के द्वारा उन्हे शांत कराया (म. . देख कर, दुर्योधन ने इसे लता एवं पलवादि से बाँध कर आ. १२७)। युधिष्ठिर के युवराज्यभिषेक होने के उपरांत, . बहती धारा में फेंकवा दिया (म. आ. ११९. परि. १. बलराम ने इसे खड्ग, गदा एवं रथ के बारे में शिक्षा दे ७३)। इस प्रकार जल के प्रवाह में बहता हुआ भीम कर अत्यधिक पारंगत कर दिया (म. आ. परि. १ क्र. . पाताल में स्थित नागलोक जा पहुँचा। ८०. पंक्ति . १-८)। ' नागलोक में--नागलोग पहुँचते ही, इसके शरीरभार भीम तथा अर्जुन की शिक्षा समाप्त होने के उपरांत, से अनेकानेक शिशुनाग कुचल कर मर गये, जिससे क्रोधित द्रोण ने गुरुदक्षिणा के रूप में इनसे कहा कि, ये ससैन्य हो कर सपों ने इसके ऊपर हमला बोल दिया, एवं इसको राजा द्रुपद को परास्त करें। इस युद्ध में भीम ने अपने खूब काटा, जिससे इसके शरीर का विष उतर गया, एवं | शौर्यबल से द्रुपद राजा की राजसेना को परास्त किया, मूर्छा जाती रही । जागृत अवस्था में आकर, यह नागों को एवं उसकी राजधानी कुचल कर ध्वस्त कर देनी चाही, मारने लगा, जिससे घबरा कर वे सभी भागते हुए नागराज किंतु अर्जुन ने इसे रोंक कर, राज्य को विनष्ट होने से वासुकि के पास अपनी आपबीती सुनाने गये। वासुकि | बचा लिया (म. आ. परि. १. क्र. ७८. पंक्ति. ५१पहचान गया कि, सिवाय भीम के और कोई नहीं हो | १५५)। सकता। लाक्षागृहदाह-वारणावत में, धृतराष्ट्र के आदेशावासुकि इसके पास तुरन्त आया, एवं इसे आदर-पूर्वक | नुसार बनाये गये लाक्षागृह में अन्य पाण्डवों तथा कुन्ती अपने घर ले जा कर इसकी बड़ी आवभगत की (आर्यक | के साथ, यह भी जल कर मरनेवाला था, किन्तु विदुर के देखिये)। हज़ारो नागों के बल को देनेवाले अमृत | सहयोग से सारे पाण्डव बच गये । लाक्षागृह से निकलने कुंभ को दिखा कर उसने भीम से कहा कि, जितना चाहो के उपरांत, इसने अपने हाथ से ही लाक्षागृह को जला मनमानी पी कर आराम करो। तब इसने आठ कुभो को | दिया, जिसमें शराब पिये अपने पाँच पुत्रों के सहित आठ घूठ में ही पी डाला, एवं पी कर ऐसा सोया कि, ठहरी हुई एक औरत जल मरी। उसीमें शराब के नशे आठ दिन बाद ही उठा । इन आठ कुंभों के दिव्य रसपान में चूर दुर्योधन का एक सेवक भी जल गया था (म. से इसे एक हज़ार हाथियों का बल प्राप्त हुआ। इसके आ. १३२-१३६)। ५६२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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