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प्राचीन चरित्रकोश
भारद्वाज
१५५); शुनहोत्र (ऋ. ६.३३); शूष बाह्नेय (वं. ब्रा. २); सत्यवाह; सप्रत; सुकेशिन् (प्र. उ. १. १ ); सुहोत्र (ऋ. ६.३१) ।
३. एक सामवेदी श्रुतर्षि ।
४. अंगिरस गोत्र का एक मंत्रकार एवं गोत्रकार । ५. एक ऋषिक । वायु के अनुसार, 'ऋषिक' शब्द का अर्थ ऋषि का पुत्र, अथवा सत्यमार्ग से चलनेवाला "आदर्श पुरुष, ऐसा दिया गया है ( वायु. ५९.९२ - ९४ ) । मत्स्य एवं ब्रह्मांड में, इसके नाम के लिए ' भरद्वाज ' पाठभेद प्राप्त है (मत्स्य. १४५.९५ - ९७; ब्रह्मांड. २. ३२.१०१-१०३) ।
६. वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । ७. एक श्रौतसूत्रकार, जिसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध है: - १. भारद्वाज प्रयोग, २. भारद्वाज शिक्षा (कृष्णयजुर्वेद तैत्तिरीय शाखा); ३. भारद्वाज संहिता; ४. भारद्वाज श्रौतसूत्र (कृष्ण यजुर्वेद ); ५. वृत्तिसार (c. c.)।
८. एक ऋषि, जिसने द्युमत्सेन राजा को आश्वासन दिया था, 'तुम्हारा पुत्र एवं सावित्री का पति सत्यवान् पुनः जीवित होगा ' ( म.व. २८२.१६ ) ।
९. एक व्याकरणकार । सामवेद के 'ऋक्तंत्रप्रातिशाख्य' के अनुसार व्याकरणशास्त्र का निर्माण सर्वप्रथम ब्रह्मा ने किया एवं उस शास्त्र की शिक्षा ब्रह्मा ने बृहस्पति को, बृहस्पति ने इंद्र को, एवं इंद्र ने भारद्वाज को दी । आगे चल कर व्याकरण का यही ज्ञान भारद्वाज ने अपने शिष्यों को प्रदान किया ।
पाणिनि ने आचार्य भारद्वाज के व्याकरणविषयक मतों का उल्लेख किया है (पा. सू. ७.२.६३ ) । पतञ्जलि ने भी ' भारद्वाजीय व्याकरण' से संबंधित कई वार्तिकों का निर्देश किया है (महा. १.७३; १३६; २०१ ) ।
ऋक्प्रातिशाख्य एवं तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में भी, भारद्वाज के व्याकरण विषयक मतों का उल्लेख प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, आचार्य भारद्वाज ने 'ऐंद्र व्याकरण' की परंपरा को आगे चलाया । आगे चल कर यही व्याकरण पाणिनीय व्याकरण में अंतर्भूत हुआ ।
भारद्वाजायन - - पंचविंश ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक आचार्य । भरद्वाज का वंशज होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। एक बार इसने एक सत्र का प्रारंभ किया, जिसमें हर एक दिन के अनुष्ठान का फल इसे पूछा गया था (पं. बा. १०.१२.१) ।
भार्गव
भारद्वाज -- भारद्वाज ऋषि का पुत्र ।
भारद्वाजी - - रात्रि नामक एक वैदिक सूक्तद्रष्ट्री का पैतृक नाम (रात्रि देखिये ) ।
भारद्वाजी पुत्र -- एक आचार्य, जो पाराशरीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था (बृ. उ. ६.५.१ माध्यं . ) बृहदारण्यक उपनिषद में अन्यत्र इसे 'वात्सीमांडवीपुत्र ' कहा गया है ( ब्र. उ. ६.४.३० माध्यं; श. ब्रा. १४.९. ४.३० ) ।
२. एक आचार्य, जो पैङ्गीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था ( श. बा. १४.९.४.३० ) । इसके शिष्य का नाम हारिर्णीपुत्र था ।
३. एक आचार्य, जो पाराशरीपुत्र नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम वात्सीपुत्र था ( श. बा. १४.९.४.३१ ) ।
भारुकच्छ - एक क्षत्रिय ( म. स. ४७.८ ) । पाठभेद ( भांडाकर संहिता ) -- ' भरुकच्छ ' ।
भारुण्ड - उत्तर कुरुवर्ष में रहनेवाले महाबली पक्षियों का एक सामुहिक नाम । ये उत्तर वर्ष में हुए लोगों की लाशों को उठा कर, कंदराओं में फेंक देते थे ( म. भी. ८.२१ ) ।
आर्ग - (सो. काश्य.) काशीदेश का एक राजा, जो विष्णु के अनुसार वैनहोत्र राजा का पुत्र था । इसके नाम के लिए 'भर्ग' पाठभेद भी प्राप्त है ( भर्ग ३. देखिये ) ।
भार्गभू - (सो. काश्य.) काशीदेश का एक राजा, जो विष्णु के अनुसार भार्ग राजा का पुत्र था । भागवत, एवं वायु में इसके नाम के लिए 'भार्गभूमि' एवं 'गर्गभूमि' पाठभेद प्राप्त है।
भार्गभूमि - काशीदेश के 'भार्गभू' राजा के लिए उपलब्ध पाठभेद ।
२. (सो. पूरु. ) एक पूरुवंशीय राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार, अमावसु राजा का पुत्र था ।
भार्गव - एक कुलनाम, जो प्रायः भृगु वारुणि ऋषि के कुल में उत्पन्न लोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इस कुल में उत्पन्न प्रमुख व्यक्तियों के नाम निम्नलिखित हैं:च्यवन, उशीनस् शुक्र, गृत्समद, कवि, कृत्नु, जमदग्नि, परशुराम जामदग्न्य, नेम, प्रयोग, प्राचेतस, भृगु, वाल्मीकि, वेन, सोमाहुति एवं स्यूमरश्मि ( भृगु वारुणि देखिये) ।
परशुराम जामदग्न्य के द्वारा पृथ्वी निःक्षत्रिय किये जाने पर, उसे भार्गव कुल में उत्पन्न ब्राह्मणों ने ' अवभृथ
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