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________________ बौधायन (२.१.४४ ) । ' दत्तकमीमांसा' नामक ग्रंथ में बौधायन के ' दत्तक ' संबंधी जो सारे उद्धरण लिये गये है, वे बौधायन धर्मसूत्र के न हो कर, बौधायन गृह्यशेषसूत्र में से लिये गये है (बौ. गृ. २.६) । प्राचीन चरित्रकोश | टीकाकार--बर्नेल के अनुसार, बौधायन श्रौतसूत्र का सर्वाधिक प्राचीन टीकाकार भवस्वामिन् था, जो ८ वीं शताब्दी में पैदा हुआ था। बौधायन धर्मसूत्र की अत्यधिक ख्यातिप्राप्त टीका गोविंदस्वामिन् के द्वारा विरचित है, किन्तु वह टीकाकार काफी उत्तरकालीन प्रतीत होता है । बौधायनस्मृति—आनंदाश्रम (पूना) के द्वारा प्रकाशित ‘स्मृतिसमुच्चय ' नामक ग्रंथ में, बौधायन के द्वारा विरचित एक स्मृति दी गयी है, जो आठ अध्यायों की है। उस स्मृति के हर एक अध्याय में तीन चार प्रश्न पूछे गये हैं, एवं उन प्रश्नों के उत्तरं वहाँ दिये गये है । २. एक आचार्य, जो ब्रह्मसूत्र का सुविख्यात 'वृत्तिकार ' . माना जाता है। रामानुजाचार्य के द्वारा लिखित 'श्रीभाष्य' बौधायन के 'ब्रह्मसूत्रवृत्ति' पर आधारित है। इससे प्रतीत होता है कि, वृत्तिकार बौधायन स्वयं शंकराचार्य के काफी पहले का होगा । अनेक विद्वानों के अनुसार, यह द्रविड देश में पैदा हुआ था । बौधीपुत्र -- एक आचार्य, जो शालंकायनीपुत्र का शिष्य था (बृ. उ. माध्यं. ६.४.३१ ) । इसके शिष्य का नाम कौत्सीपुत्र था ( श. बा. १४.९.४.३१ ) । बोध के किसी स्त्रीवंशज का पुत्र होने के कारण इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा । बौधेय -- एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की यजुः शिष्य परंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य था । बौध्य-य-- एक आचार्य, जो विष्णु के अनुसार, व्यास की ऋशिष्यपरंपरा में से बाष्कलि ऋषि का शिष्य था । इसके नाम के लिये ‘ बोध ' एवं ' बोध्य ' पाठभेद प्राप्त है ( व्यास देखिये ) | ब्रध्न -- एक राजा, जो भौत्य मनु के पुत्रों में से एक था। ब्रध्नश्व -- एक राजा । एक बार श्रुतर्वन् नामक राजा को साथ ले कर अगस्त्य ऋषि इसके पास आया, एवं इससे धन की याचना करने लगा । ब्रह्मदत्त दिया; एवं इसे साथ ले कर, वह किसी अन्य जगह धन की याचना के लिए चला गया (म. व. ९६ ) । ब्रह्मकृतेजन -- वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार 'ब्राह्मपुरेयक' के नाम के लिए उपलब्ध पाठभेद ( ब्राह्मपुरेयक देखिये) । ब्रह्मगार्ग्य - एक ब्राह्मण, जो श्रीकृष्ण का पुरोहित था (पद्म. स. २३) । ब्रह्मचारिन् -- एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं प्रावा का पुत्र था (म. आ. ५९.४५ ) | महाभारत में अन्यत्र इसे क्रोधा का पुत्र कहा गया है। अर्जुन के जन्मोत्सव में यह उपस्थित था ( म. आ. ११४.३७ ) । २. स्कंद का नामान्तर । ब्रह्मजित् - - संह्रादपुत्र कालनेमि नामक राक्षस का पुत्र (ब्रह्मांड. ३.५.३८)। ब्रह्मतन्वि -- अंगिरा कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ब्रह्मदत्त -- (सो. पूरु. ) पांचालदेशीय कांपिल्य नगर का एक राजा, जो भागवत के अनुसार नीप राजा का पुत्र था ( म. शां. १३७ ) । विष्णु, मत्स्य एवं वायु में इसे अणुह राजा का पुत्र कहा गया है। इसकी माता का नाम कीर्तिमती अथवा कृत्वी था, जो शुकाचार्य की कन्या थी । देवल ऋषि की कन्या न्न इस कीपत्नी थी ( ह. वं. १.२३-२५ ) । किन्तु भागवत में इसकी पत्नी का नाम गो दिया गया है ( भा. ९.२२. २५) । भागवत एवं विष्णु में इसके पुत्र का नाम विश्वक्सेन दिया गया है । किन्तु मत्स्य एवं वायु में इसके पुत्र का नाम क्रमशः युगदत्त, एवं युगसूनु दे कर, इसके पौत्र का नाम विष्वक्सेन बताया गया है। महाभारत में इसके पुत्र का नाम सर्वसेन बताया गया है। इसके भवन में निवास करनेवाली पूजनी नामक चिड़िया के बच्चों को इसका पुत्र सर्वसेन ने मारा, अतएव पूजनी ने भी सर्वसेन की आँखे फोड डाली ( म. शां. १३७. १७) । पश्चात् पूजनी ने इसका राजभवन छोड़ना चाहा । राजा ब्रह्मदत्त ने उसे रहने के लिये काफ़ी आग्रह किया । किन्तु अपने शत्रु के घर रहने से उसने इन्कार कर दिया। राजभवन छोड़ते समय पूजनी का एवं इसका तत्वज्ञान संबंधी संवाद हुआ था ( म. शां. १३७.२१-१०९; पूजनी देखिये ) । इसने अगस्त्य ऋषि के सामने अपने आय-व्यय का संपूर्ण विवरण रख दिया, जिसमें इसकी आय एवं व्यय दोनों एक बराबर थे, एवं बचा हुआ पैसा एक भी न था । फिर अगस्त्य ने इससे कोई भी धन लेने के लिए इन्कार कर ५२५ इसने जैगीषव्य ऋषि से योगविद्या प्राप्त कर, योगतंत्र नामक ग्रंथ का निर्माण किया था ( भा. ९.२२.२६ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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