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________________ प्राचीन चरित्रकोश बृहद्राज बृहस्पति अनुसार सुमित्र का पुत्र था। इसे बृहत् एवं भरद्वाज नामान्तर भी प्राप्त है। २. कौरव पक्ष का एक योद्धा, जो क्षेमधूर्ति का भाई था। भारतीय युद्ध में सात्यकि के साथ इसका युद्ध हुआ था ( म. द्रो. २४.४५ ) । अन्त में इसी युद्ध में यह मारा गया (म. क. ४. ४१ ) । वृहद्वक्षस्— अंगिराकुलोत्पन्न मंत्रकार बृहदुक्थ का नामांतर बृहद्वन -- एक गंधर्व, जो अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था (म. आ. ११४.४६ ) । २. (सो. पूरु. ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार बृहदनु राजा का पुत्र था । बृहद्वपु - सत्यदेवों में से एक । वृहन्नडा अर्जुन का नामान्तर, जो उसने विराटनगर बृहद्वसु -- वंश ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक आचार्य (वं. में अज्ञातवास के समय स्वीकृत किया था ( म. वि. बा. ३) । २२- अर्जुन देखिये) । २. शवर्तिन् देवों में से एक। बृहन्मति आंगिरस - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ९. ३. पूरुवंशीय बृहद्भानु राजा का नामांतर ( बृहद्भानु ३९-४० ) । ३. देखिये) । गृहन्मनस्- (सो. अनु. ) एक अनुवंशीय राजा, बृहद्विष्णु-- पूरुवंशीय बृहद्भानु राजा का नामांतर जो भागवत एवं वायु के अनुसार, बृहद्रथ राजा का पुत्र (बृहद्भानु ३. देखिये) । था। इसे यशोदेवी एवं सत्या नामक दो पत्नियाँ थी । उनमें से यशोदेवी से इसे जयद्रथ एवं सत्या से विजय नामक पुत्र उत्पन्न हुए। २. एक ऋषि, जो महर्षि अंगिरा को सुमना ( सुभा ) नामक पानी से उत्पन्न सात पुत्रों में से एक था (म.. २०८२ ) । ३. (सो. पूरु. ) एक राजा, मस्य के अनुसार बृहन्त राजा का पुत्र था । बृहन्मित्र - - एक ऋषि, जो महर्षि अंगिरा को सुमना सुभा ) से उत्पन्न सात पुत्रों में से एक था (म. व. २०८.२ ) । ( बृहदूध्वज -- एक राक्षस, जो दूसरे लोगों के धनधान्य एवं स्त्रियों का अपहार करता था । एक बार भीमकेश नामक राजा की केशिनी नामक स्त्री को इसने देखा । यह उसका अपहार करनेवाला ही था, कि केशिनी ने इसे कहा, 'मैं अपने पति का अत्य धिक द्वेष करती हूँ। इसी कारण मैं स्वयं तुम्हारे साथ आने के लिए तैयार हूँ' | कोशिनी के अपने रथ में बिठा कर यह उसे गंगासागरसंगम पर ले गया । किंतु उस प्रदेश में कोशिनी का पति भीमकेश का राज्य होने के कारण, वह डर के मारे मर गयी। फिर उसकी मृत्यु के दुख से यह भी मर गया। किंतु इन दोनों की मृत्यु गंगासागरसंगम जैसे पवित्र स्थल पर होने के कारण, इन्हे विष्णुलोक की प्राप्ती हुयी (पद्म. क्र. ४) । " बृहन्त—कुलूत देश का राजा । युधिष्ठिर के राजसूय यश के समय, अर्जुन ने दिये उत्तर दिग्विजय में इसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ था। उस युद्ध में इसका पराजय हुआ, एवं अनेक प्रकार के रत्नों की भेंट लेकर वह अर्जुन की सेवा में उपस्थित हुआ था ( म. स. २४.४ - ११ ) | द्रौपदी के स्वयंवर में भी यह उपस्थित था ( म. आ. १७७.७)। युधिष्ठिर के प्रति इसके मन में अत्यधिक आदरभाव था । इस कारण, भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था (म. उ. ४.१३ ) । इसके रथ को जोते गये अश्व अत्यधिक सुंदर थे (म. द्रो. २२.४४) । अन्त में दुःशासन के द्वारा यह मारा गया (म.क. ४.६५ ) । -- जो वनुष्मत् राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम श्रीदेव वृहन्मेदस ( सो कोष्ट. ) एक यादववंशीय राजा, था ( कूर्म. १.२४.६–१०)। बृहस्पति एक वैदिक देव ओ. बुद्धि, युद्ध एवं यश का अधिष्ठाता माना जाता है। इसे 'सदसस्पति', ज्येष्ठराव' तथा 'गणपति' नाम भी दिये गये हैं (ऋ. १.१८. ६-७ २.२३.१ ) । बृहदारण्यक उपनिषद में बृहस्पति को वाणी का पति ( बृहती+पति बाणी + पति) माना गया है (बृ. उ. १.३.२० - २१) | मैत्रायणी संहिता एवं शपथ ब्राह्मण में इसे 'वाचस्पति' ( वाच का स्वामी) कहा गया है (मै. सं. २०६. श. बा. १४.४.१) । वैदि कोचर साहित्य में इसे बुद्धि एवं वाक्पटुता का देवता के रूप में व्यक्त किया गया है । इस देवता 4 ऋग्वेद में प्रमुख स्थान है एवं उसमें ग्यारह सम्पूर्ण सूक्तों द्वारा इसकी स्तुति की गयी है। दो सूक्तो में इन्द्र के साथ युगुलरूप में भी इसकी ५१८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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