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बृहद्रथ
प्राचीन चरित्रकोश
बृहद्राज
महान् उत्सव मनाने की आज्ञा दी (म. स. १६- महामारत में निर्दिष्ट सोलह श्रेष्ठ राजाओं में इसका
निर्देश प्राप्त है, जहाँ इसे 'अंग बृहद्रथ' कहा गया हैं जरासंध बड़ा होने पर, इसने उसे अपने राज्य पर (म. शां. २९.२८-३४)। अभिषिक्त किया, एवं अपनी दोनों पत्नियों के साथ यह परशुराम के द्वारा किये गये क्षत्रिय संहार से इसे तपोवन चला गया (स. १७.२५)।
| गोलांगूल नामक वानर ने बचाया, एवं गृध्रकूट नामक इसने ऋषभ नामक राक्षस का वध कर के उसकी खाल पर्वत पर इसे छिपा कर रख दिया । पश्चात् परशुराम के से तीन नगाड़े बनवाये थे, जिनपर चोट करने से महिने द्वारा सारी पृथ्वी कश्यप को दान दिये जाने पर, यह भर आवाज होती रहती थी। ये नगाड़े इसने अपनी | अपने राज्य में लौट आया, एवं पहले की तरह राज्य गिरिव्रज नामक राजधानी के महाद्वार पर रखे थे | करने लगा (म. शां. ४९.७३)। (म. स. १९.१५-१६)।
१०. एक राजा, जो सूक्ष्म नामक दैत्य के अंश से बृहद्रथ राजा को 'बार्हद्रथ' राजवंश का आद्य पुरुष | उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.१९)। यह द्रौपदी के माना जाता है। इससे आगे चल कर उस वंश का | स्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.१९)। पाठभेद विस्तार हुआ (बार्हद्रथ देखिये)।
(भांडारकर संहिता)-बृहन्त ।। ३. (सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो ११. एक अग्नि, जो वसिष्ठपुत्र होने के कारण, 'वासिष्ठ' देवरात जनक का पुत्र था। विष्णु के अनुसार इसे | भी कहलाता है । इसके पुत्र का नाम प्रणिधि था (म. व. बृहदुक्थ, एवं वायु के अनुसार बृहदुच्छ तथा दैवराति | २११.८)। .. नामान्तर भी प्राप्त है।
१२. दुर्योधनपक्षीय एक राजा (म. उ. १९६.१०)। अध्यात्मज्ञान के प्राप्ति के लिये इसने शाकल्य, | पाठभेद (भांडारकर संहिता)-बृहद्बल। याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों को अपने राज्य में निमंत्रित १३. (सो. पूरु. भविष्य.) एक राजा, जो भविष्य के किया था । उपस्थित सारे ऋषियों में से याज्ञवल्क्य ही | अनुसार तिग्मज्योति का, मत्स्य एवं विष्णु के अनुसार • अत्यंत ब्रह्मनिष्ठ है, यह जान कर इसने उससे अध्यात्मज्ञान | तिग्म का, तथा भागवत के अनुसार तिमि राजा का पुत्र • का उपदेश प्राप्त किया (म. शां. २९८; भा. ९.१३; | था। याज्ञवल्क्य देखिये)।
१४. (मौर्य. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत, विष्णु - इसे महावीर्य नामक पुत्र था, जो इसके पश्चात् विदेह | एवं मत्स्य के अनुसार शतधन्वन् का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार देश का राजा बन गया।
शतधनु का पुत्र था। मत्स्य के अनुसार इसने ७० वर्षों ४. (सो. अनु.) एक अनुवंशीय राजा, जो भागवत | तक, एवं ब्रह्मांड के अनुसार इसने ७ वर्षों तक राज्य . के अनुसार पृथुलाक्ष का, वायु के अनुसार बृहत्कर्मन् | किया । मत्स्य के अतिरिक्त बाकी सारे पुराणों में इसे
का, एवं विष्णु के अनुसार भद्ररथ राजा का पुत्र था। मौर्यवंश का अंतीम राजा माना गया है। इसे बृहत्कर्मन् एवं बहभानु नामक दो भाई थे।
१५. दक्षसावणि मनु के पुत्रों में से एक । ५. (सो. अनु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार | बृहद्रथ ऐक्ष्वाक--एक राजा, जो शाकायन्य ऋषि जयद्रथ का पुत्र था।
के पास आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए गया था। शाकायन्य
स्वयं मैत्री ऋषि का शिष्य था। ६. एक तत्वज्ञानी, जिसका नामोल्लेख मैत्रायणी उपनिषद में प्राप्त है (मै. उ. १.२, २.१)।
शाकायन्य को इसने कहा, 'अत्यंत गहरे कुएँ में गिरे
हुए जानवर के समान मनुष्यप्राणि की स्थिति है । अतएव । ७. (सो. द्विमीढ.) द्विमीढवंशीय बहुरथ राजा का | आप ही मुझे मुक्ति का रास्ता बताने की कृपा करें। नामान्तर ('बहुरथ देखिये)।
फिर शाकायन्य ने ब्रह्मज्ञान एवं पुनर्जन्म का विवेचन कर ८. एक राजा, जिसकी पत्नी का नाम इंदमती था | इसे मुक्ति का मार्ग बता दिया (मैत्रा. उ. १.१-७)। (इंदुमती ३. देखिये)।
बृहद्राज-(सू. इ. भविष्य.) एक इक्ष्वाकुवंशीय । ९. अंगदेश का एक दानशूर राजा, जिसके द्वारा किये | राजा, जो भागवत एवं भविष्य के अनुसार अमित्रजित् गये दान का वर्णन स्वयं श्रीकृष्ण ने किया था। | राजा का, विष्णु के अनुसार मित्रजित् का, एवं मत्स्य के