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बाभ्रव्य पांचाल
प्राचीन चरित्रकोश
बालाकि
दिया गया है। पाणिनि ने भी बाभ्रव्य एवं इसके बालखिल्य--ब्रह्माजी के वालखिल्य नामक शक्ति द्वारा रचित क्रम का निर्देश किया है (पा. सू.४.१.१०६, | शाली पुत्रों का नामांतर (वालखिल्य देखिये)।
बालडि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ब्रह्मदत्त राजा के कंडरिक (पुंडरिक) एवं बाभ्रव्य नामक दो मंत्रियों ने समस्त वैदिक ऋचाओं को एकत्र
बालधि-एक शक्तिशाली ऋषि, जिसने पुत्रप्राप्ति के
लिए घोर तपस्या की थी। इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर कर उनको ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद इन संहिताओं में
देवों ने इसे वर माँगने के लिए कहा। किंतु इसके द्वारा विभाजित किया। उन संहिताओं का अंतीम एकत्रीकरण
अमरपुत्र की माँग की जाने पर देवों ने इसे कहा, 'इस एवं संस्करण व्यास ने किया। २. एक कामशास्त्रकार एवं वात्स्यायन के कामसूत्र का
सृष्टि की हर एक वस्तु नश्वर है, इसी कारण अमर
पुत्र की अपेक्षा करना भी व्यर्थ है । फिर सामने दिखाई पूर्वाचार्य । वात्स्यायन के अनुसार, कामशास्त्र की सर्वप्रथम रचना श्वेतकेतु ने की, एवं श्वतकेतुप्रणीत कामशास्त्र
देनेवाले पर्वत की ओर निर्देश करते हुए इसने देवताओं
से कहा, 'यह पर्वत जितने वर्ष रह सकेगा उतनी आयु के संक्षेपीकरण का कार्य बाभ्राव्य पांचाल ने किया। मत्स्य में 'क्रमपाठ रचयिता' बाभ्रव्य एवं 'काम
का पुत्र आप मुझे प्रदान करे। सूत्रकार' बाभ्रव्य को अनवधानी से एक माना गया
इसकी प्रार्थना के अनुसार, देवों ने इसे एक पुत्र
प्रदान किया जिसका नाम मेधावी था। उसे यह बड़े है। किन्तु कामसूत्रकार बाभ्रव्य का पूर्वाचार्य श्वेतकेतु | क्रमपाठरचयिता बाभ्रव्य से काफी उत्तरकालीन था। इससे
लाड़प्यार से 'पर्वतायु' कहता था। बड़ा होने पर
पर्वतायु देवों के वर का आश्रय ले कर अत्यंत उद्दण्ड प्रतीत होता है कि, ये दो बाभ्रव्य अलग व्यक्ति थे।
बन गया। एक बार उसने धनुषाक्ष नामक महर्षि का . बाभ्रव्यायणि-विश्वामित्र के पुत्रों में से एक।
बिना किसी कारण अपमान किया । उस समय महर्षि ने बाईसामा अथर्ववेद में निर्दिष्ट एक स्त्री, जो | पर्वताय को शाप दिया, 'तुम भस्म हो जाओगे। बत्सामन् की कन्या थी। गर्भाधान सरल बनानेवाले एक | महर्षि के इस शाप का पर्वतायु पर कोई भी असर न -सूक्त में इसका निर्देश प्राप्त है (अ. वे. ५. २५. ९)। हुआ, एवं वह जीवित ही रहा। अपना शाप विफल हुआ
. बाहेदिषु--अजमीढवंशीय राजाओं के लिये प्रयुक्त | यह देख कर धनुषाक्ष ऋषि को अत्यंत आश्चर्य हुआ। • सामुहिक नाम । अजमीढपुत्र बृह दिषु राजा से ले कर, पश्चात् दिव्यदृष्टि से उसने पर्वतायु के वर का रहस्य उसी वंश के भल्लाट तक के राजा 'बाह दिषवः' नाम से
जान लिया, एवं अपने तपोबल से एक भैंसा निर्माण कर विख्यात थे (भा. ९.२१.२६)।
उसके द्वारा वह पर्वत खुदवा डाला, जिसके उपर पर्वतायु ___बाहेद्रथ-मगध देश के बृहद्रथ राजा के वंशजों के | की आयु निर्भर थी। उसी क्षण पर्वतायु की मृत्यु हो गयी लिये प्रयुक्त सामुहिक नाम। इनकी राजधानी गिरिव्रज | (म. व. १३४)। अपने प्रिय पुत्र की मृत्यु पर बालधि नगर में थी। पुराणों में इस वंश के कुल बाइस या बत्तीस | ऋषि ने काफी विलाप किया। राजाओं का निर्देश प्राप्त है (बृहद्रथ देखिये)।
बालन्दन-वत्सप्री ऋषि का पैतृक नाम, जो संभवतः बार्हस्पत्य-शंयु, विदथिन् एवं भारद्वाज आदि |
भालन्दन (भलंदन का वंशज) का विभेदात्मक रूप है आचार्यों का पैतृक नाम । बृहस्पति का वंशज होने से
(बेबर-इंडिशे स्टूडियन ३.४५९.४७८)। उन्हे यह नाम प्राप्त हुआ होगा।
बालपि--भृगु कुलोत्पन्न एक गोत्रकार। - बाल--एक ब्राह्मण, जो अत्यंत पापी एवं पाखंड मतप्रवर्तक था । अपनी मृत्यु के पश्चात् , इसे पुनः एक बार
बालवय--वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार। मनुष्यजन्म प्राप्त हुआ। अपने इस नये जन्म में इसने | बालस्वामी--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४. गतपापों का क्षालन करने के लिये सरस्वती मंत्र का जप | ६०)। किया, जिस कारण इसके सारे पापों का नाश हो कर, | बालाकि--भृगुकुल का एक गोत्रकार। अगले जन्म में यह मैत्रेय नामक सद्वर्तनी ऋषि बन गया २. गार्ग्य बालाकि नामक ऋषि का नामांतर (गार्ग्य (स्कंद २.४६)।
बालाकि देखिये.)। इसे दृप्त बालाकि नामांतर भी प्राप्त २. वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार |
है (श. ब्रा. १४.५.१)। इसके नाम के लिए 'बालाक्या'
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