________________
बालाकि
प्राचीन चरित्रकोश
- बाष्किह
पाठभेद भी उपलब्ध है (काश्यपीबालाक्या माठरीपुत्र | बाष्कालि--प्रह्लाद का पुत्र (पद्म. सृ. ६)। देखिये)।.
२. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं मंत्रकार ऋषि । . बालानामयिक--स्कन्द का एक सैनिक (म. श. | यह वालखिल्य संहिता का रचयिता था, जो इसने अपने ४४.६९)।
वालाय नि, भज्य, एवं कासार नामक शिष्यों को सिखायी बालायनि--एक आचार्य, जिसे बाष्कलि ने वालखिल्य | थी (भा. १२.६.५९)। संहिता सिखायी थी (भा. १२.६.६०)।
३. एक ऋग्वेदी शृतर्षि एवं ब्रह्मचारी। बालावती--कण्व ऋषि की कन्या, जिसने उत्तम पति | ४. एक तत्त्वज्ञ, जिसका निर्देश शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्रके प्राप्त्यर्थ कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान् सूर्य- | भाष्य में प्राप्त हैं । उक्त ग्रन्थ में इसका एवं बाध्व ऋषि नारायण अतिथि रूप में इसके यहाँ आया, एवं कुछ बेर | के बीच हुए शास्त्रार्थ एक आख्यायिका के रूप में वर्णित इसे प्रदान कर उन्हे पकाने के लिए कहा।
है। बाष्कलि ने बाध्व से पूँछा 'ब्रह्म कैसा है ?' वह सूर्यनारायण की आज्ञानुसार यह बेर पकाने लगी। मौन रहा। उसकी मौनता को देख कर, इसने दो तीन बार किन्तु चुल्हे की सारी लकड़ियाँ समाप्त होने पर भी बेर को बार बार रमवा। तब बाध्य ने कहा. न पके; फिर इसने अपने पाँव चुरहे में लगा दिये । यह अपने मौन सम्भाषण से ही, मै व्यक्त कर चुका हूँ कि, . देख कर सूर्य इसपर प्रसन्न हुआ, एवं इसे वर देते हुए ब्रह्म अनिर्वचनीय है (यतो वाचो निवर्तन्ते.)। अब.. कहा, 'तुम्हारी सारी कामनाएँ पूरी होंगी'। उसी दिन
तुम समझ न सको तो दोष किसका है ? ' (ब्र. सू. ३. .. से उस स्थान को 'बालाप' नाम प्राप्त हुआ (पद्म. उ.
२.१७)। १५२)।
बाध्व द्वारा बाष्कलि को ब्रह्म की स्वरूपता का कराया. ' इसकी उपरिनिर्दिष्ट कथा में, एवं अरुंधती की कथा में
हुआ यह ज्ञान, बड़ा नाटकीय एवं तार्किक है। काफी साम्य है (अरुन्धती ३. देखिये)।
५. एक दैत्य, जिसने तपस्या के बल पर सारा त्रैलोक्य : बालिशय--वसिष्ठकुल का गोत्रकार ऋषिगण।
जीत कर इन्द्रपद प्राप्त किया। विष्णुधर्म एवं पद्म में . बालिशायनि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
इसकी कथा दी गयी है, जो सम्पूर्णतः बलि वैरोचन की । बालेय-गंधर्वायण नामक आचार्य का पैतृक नाम ।
वामनावतार की कथा से मिलती जुलती है। इसे 'त्रिविक्रम' २. पराशर गोत्रोत्पन्न एक ऋषिगण ।
का अवतार कहा गया है। सम्भव है, यह एवं 'बलि ३. बलि आनव राजा से उत्पन्न ब्राह्मण एवं क्षत्रिय | वैरोचन' दोनों एक ही हों। लोगों का सामुहिक नाम।
इसके द्वारा इंद्रपद प्राप्त कर लेने के बाद, वामनाबाकल--हिरण्यकशिपु का एक पुत्र (म. आ. ५९. | वतारी विष्णु ने बाह्मणकुमार के रूप में आ कर, इससे १८) । इसे कुल चार भाई थे:- प्रह्लाद, संह्राद, | यज्ञ के लिए तीन पग भूमि दान माँगी । जैसे ही बाष्कलि अनुह्लाद, एवं शिबि (म. आ. ५९.१८)। भगदत्त असुर ने दानसंकल्प के लिए अर्घ्य दिया, कि 'वामन ने विशाल के रूप में, यह पृथ्वी पर पुनः उत्पन्न हुआ था (म. | रूप धारण कर, एक पग से ब्रह्माण्ड, द्वितीय से सूर्यआ. ६१.९)।
मण्डल, तथा तृतीय से ध्रुवमण्डल नाप कर, इसके सम्पूर्ण २. हिरण्यकशिपु का पौत्र एवं अनुह्लाद का पुत्र । | श्वर्य का हरण कर लिया। इसकी माता का नाम सूमि था।
वामन ने जैसे ही ब्रह्मांड पर पैर रक्खा , वैसे ही उसके ३. प्रह्लाद का पुत्र । इसके नाम के लिये बाष्कलि
पगस्पर्श से वह फूट गया, तथा उससे गंगा की धारा फूट पाठभेद भी प्राप्त है।
| चली (विष्णुधर्म. २१.१; पद्म. स. ३०)। ४. महिषासुर का एक पुत्र ( मार्क. ७९. ४२)। ५. संह्राद नामक असुर का पुत्र । इसे चंड, दक्ष एवं
बाष्कलि भारद्वाज--एक आचार्य, जो वायु एवं सुर नामक तीन पुत्र थे।
भागवत के अनुसार व्यास की ऋशिष्यपरंपरा के सत्यश्री ६. एक आचार्य, जो व्यास की ऋशिष्यपरंपरा
ऋषि का शिष्य था। में से पैल ऋषि का पुत्र था। इसके नाम के लिये | बाष्किह--शुनस्कर्ण राजा का पैतृक नाम (पं. ब्रा. . 'बाष्कलि' पाठभेद प्राप्त है (व्यास देखिये)। । १७.१२.६)। 'बष्किह' का वंशज होने से उसे यह नाम
५०८