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बादरायण
प्राचीन चरित्रकोश
बाभ्रव्य पांचाल
मीमांसा, बादरायण सूत्र, ब्रह्ममीमांसा, वेदान्तसूत्र, व्यास- बाध्यश्व-भार्गवकुल का एक मंत्रकार । सूत्र एवं शारीरक सूत्र आदि नामान्तर भी प्राप्त है। बाध्योग-जिह्वावत् नामक आचार्य का पैतृक नाम , - इस ग्रंथ में बृहदारण्यक, छांदोग्य, कौषीतकी, ऐतरेय, (बृ. उ. माध्यं ६.४.३३; जिह्वावत् देखिये)। बध्योग मुंडक, प्रश्न, श्वेताश्वतर, जाबाल एवं आथर्वणिक (अप्राप्य) का वंशज होने के कारण उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ
आदि उपनिषद ग्रंथों में प्राप्त वाक्यों का विचार किया । होगा। गया है।
बाध्व--एक आचार्य, जो वेद, छंद, शरीर एवं महाइस ग्रंथ में निम्नलिखित पूर्वाचार्यों के मत उनके पुरुष आदि को अध्ययन के विषय मानता था (ऐ. आ. नामोल्लेख के साथ ग्रथित किये गये हैं:-- आत्रेय, | ३.२.२ )। सांख्यायन आरण्यक में इसके नाम के लिए आश्मरथ्य, औडुलोमि, काशकृत्स्न, कार्णाजिनि, जैमिनि | 'वात्स्य' पाठभेद प्राप्त है (सां. आ. ८.३)। एवं बादरि । इन पूर्वाचार्यों में से बादरि का निर्देश चार | २. एक तत्वज्ञ, जिसका बाष्कलि नामक आचार्य से सूत्रों में, औडुलोमि का तीन सूत्रों में, आश्मरथ्य का दो | 'ब्रह्म की अनिर्वचनीयता' के बारे में संवाद हुआ था सूत्रों में, एवं बाकी सारे आचार्यों का निर्देश एक एक सूत्र | (४ बाष्कलि देखिये)। में किया गया हैं । स्वयं बादारायण के मत आठ सूत्रों में | बाभ्रव-- वत्सनपात् नामक आचार्य का पैतृक नाम दिये गये है।
| (बृ. उ. माध्य. २. ५. २२, ४. ५. २८)। इन सूत्रों का मुख्य उद्देश उपनिषदों के तत्त्वज्ञान का ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त शुनःशेप की कथा में कापिलेय ... समन्वय करना, एवं उसे समन्वित रूप में प्रस्तुत करना | एवं बाभ्रव लोगों को शनःशेप के वंशज बताये गये हैं है। महाभारत, मनुस्मृति एवं भगवद्गीता के तत्त्वज्ञान को | (ऐ. ब्रा. ७.१७)। बभ्रु का वंशज होने से इसे 'बाभ्रव' उद्देश कर भी कई सूत्रों की रचना की गयी है। ये सारे | नाम प्राप्त हुआ होगा। बभ्रु के द्वारा रचित एक सामन् सूत्र काफी महत्त्वपूर्ण है, किन्तु भाष्यग्रन्थों के सहाय्य का निर्देश पंचविंशब्राह्मण में प्राप्त है (पं. ना. १५.. के सिवाय उनका अर्थ लगाना मुष्किल है। उन में से कई | ३.१२)। सूत्रों के शंकराचार्य के द्वारा दो दो अर्थ लगाये गये हैं (ब्र. बाभ्रव्य--गिरिज एवं शंख नामक आचार्यों का पैतृक सू. १.१.१२-१९; ३१, ३.२७, ४.३; २.२.३९-४० नाम (ऐ. ब्रा. ७.१; जै..उ. बा. ३.४१.१, ४.१७.१)। आदि)। कई जगह पाठभेद भी दिखाई देते हैं (ब्र.सू. आश्वलायन गृह्यसूत्र के ब्रह्मयज्ञांग तर्पण में, क्रम के १.२.२६, ४.२६)।
पाठन की परंपरा शुरु करनेवाले आचार्य के रूप में इसका इस ग्रन्थ की रचनापद्धति प्रथम पूर्वपक्ष, एवं पश्चात् | निर्देश प्राप्त है (ऋ. प्रा. ११. ३३)। . सिद्धान्त इस पद्धति से की गयी है। किंतु कई जगह प्रथम २. विश्वामित्रकुल का एक गोत्रकार । सिद्धान्त दे कर, बाद में उसका पूर्वपक्ष देने की प्रति- ३. एक गोत्र का नाम । गालवमुनि इसी गोत्र में उत्पन्न लोम' पद्धति का भी अवलंब किया गया है (ब. सू. ४. हुए थे। ३.७-११)।
बाभ्रव्य पांचाल—एक आचार्य, जो दक्षिण पांचाल अपना विशिष्ट तत्त्वज्ञान स्पष्ट रूप से ग्रथित करने का प्रयत्न बादरायण ने इस ग्रन्थ के द्वारा किया है। इसका
देश के ब्रह्मदत्त राजा के दो मंत्रियों में से एक था (ह.
वं. १.२०.१३)। इसका संपूर्ण नाम 'सुबालक (गालव) यह प्रयत्न श्री व्यासरचित भगवद्गीता से साम्य रखता
बाभ्रव्य पांचाल' था। इसे 'बहवृच' एवं 'आचार्य' ये
उपाधियाँ प्राप्त थी (ह. बं. १.२३.२१)। यह सर्वबादरायणि-शुक ऋषि का नामांतर।
| शास्त्रविद् एवं योगशास्त्र का परम अभ्यासक था (मत्स्य. बादरि-जैमिनि सूत्रों में निर्दिष्ट एक आचार्य (जै.
२०.२४, २१.३०)। सू. ३.१.३; ६.१.२७, ८.३.६; का. श्री. ४.३.१८; ब्र.
___ इसने ऋग्वेद की शिक्षा तयार कर उसका प्रचार किया। सू. ४.४.११; बादरायण देखिये)।
इसने वेदमंत्रों का क्रम निश्चित किया, एवं उसका प्रचार भी २. श्याम पराशर कुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
किया (पझ. पा. १०; ह. वं. १.२४.३२, म. शां.३३०. __बादुलि--विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक ३७-३८ पांचाल ३. देखिये)। ऋक् संहिता के क्रमपाठ (म. अनु. ४.५३)।
| के रचना का श्रेय वैदिक ग्रंथों में भी बाभ्रव्य पांचाल को ५०६