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बलि वैरोचन
प्राचीन चरित्रकोश
बलि वैरोचन
पाताललोक चला गया। बलि के जाने के उपरांत विष्णु महाभारत के अनुसार राज्य से च्युत किये जाने पर ने शुक्राचार्य को आदेश दिया कि वह यज्ञ के कार्य को बलि को गर्दभयोनि प्राप्त हुयी, एवं यह इधर उधर विधिपूर्वक समाप्त करें (भा. ८.१५-२३; म. स. परि. भटकने लगा । ब्रह्मदेव ने बलि को ढूँढ़ने के लिए इन्द्र से . १. क्र. २१; वामन ३१; ब्रह्म. ७३)। वामन ने बलि कहा, तथा आदेश दिया की इसका वध न किया जाये। का राज्य मन पुत्रो को देख कर, पृथ्वी एवं स्वर्ग को दैत्यों महाभारत में यह भी कहा गया है कि, इसने ब्राह्मणों से से मुक्त कराया (स्कंद. ७.२.१९)।
मदपूर्ण अनुचित व्यवहार किया, इसी लिए लक्ष्मी ने विष्णुद्वारा, बलि के 'पातालबंधन' की पुराणों में | इसका परित्याग किया (म. शां. २१६. २१८)। योगदी गयी कथा ऐतिहासिक, एवं काफी प्राचीन प्रतीत होती | वसिष्ठ जैसे वेदान्त ग्रन्थों में भी अनासक्ति का प्रतिपादन है । पतंजलि के व्याकरण महाभाष्य में इस कथा का करने के लिए, इसकी कथा दृष्टान्तरूप में दी गयी है निर्देश प्राप्त हैं (पा.सू.३.१.२६ )। पतंजलि के अनुसार
(यो. वा. ५.२२.२९)। बलि का पातालबंधन काफी प्राचीन काल में हुआ थाः। महाभारत के अनुसार, अपनी मृत्यु के पश्चात् बलि फिर भी उसका निर्देश महाभाष्यकाल में 'बलिम | वरुणसभा में अधिष्ठित हो गया (म. स. ९. १२) । स्कंद बन्धयति' इस वर्तमानकालीन रूप में किया जाता था। | पुराण में बाष्कलि नामक एक दैत्य की एक कथा दी गयी रावण का गर्वहरण--वाल्मीकि रामायण में बलि के
है, जो बलि के जीवनी से बिलकुल मिलती जुलती है पाताल निवास की एक रोचक कथा दी गयी है, जो द्रष्टय है।
(स्कंद. १.१.१८, बाष्कलि देखिये)। उसी पुराण में एक बार रावण ने इसके पास आ कर कहा, 'मैं तुम्हारी
इसके पूर्वजन्म की कहानी दी गयी है, जिसके अनुसारमुक्ति के लिये आया हूँ, तुम हमारी, सहायता प्राप्त कर. पूर्वजन्म में इसे कितव बताया गया हैं। भागवत में एक विष्णु के बन्धनों से मुक्त हो सकते हो। यह सुन कर बलि
स्थान पर इसे 'इंद्रसेन उपाधि से विभूषित किया गया है ने अग्नि के समान चमकनेवाले दूर पर रक्खे हुए
(भा. ८. २२. ३३)। हिरण्यकशिपु के कुंडल उठा कर लाने के लिये रावण संवाद-यह बड़ा तत्त्वज्ञानी था। तत्त्वज्ञान के संबंध से कहा । रावण ने उस कुण्डल को उठाना चाहा, पर में इसके अनेक संवाद महाभारत तथा पुराण में प्राप्त हैं। बेहोश हो कर गिर पडा, तथा मुँह से खून की उल्टियाँ
राजा अपनी राजलक्ष्मी किस प्रकार खो बैठता है, उसके करने लगा । बलि ने उसे होश में ला कर समझाते हुए संबंध में बलि तथा इंद्रं का संवाद हुआ (म. शां. कहा, 'यह एक कुण्डल है, जिसे मेरा प्रपितामह हिरण्य- २१६)। इसके पितामह प्रह्लाद से 'क्षमा श्रेष्ठ अथवा कशिपु धारण करता था। उसे तुम उठा न सके । महान्
तेज श्रेष्ठ ' पर इसका संवाद हुआ (म. व. २९)। पराक्रमी भगवान् विष्णु द्वारा ही हिरण्यकशिपु मारा गया, । दैत्यगुरु शुक्र से इसका 'उपासना में पुष्प तथा धूपतथा उसी विष्णु को किस बल से चुनौती दे कर तुम मुझे | दीप' के बारे में संवाद हुआ (म. अनु.९८)। मुक्त कराने आये हो। वह विष्णु परमशक्तिमान् एवं सब परिवार--बलि की कुल दो पत्नियाँ थी :-- (१) का मालिक है । ऐसा कह कर इसने उसे विष्णुलीला विंध्यावलि (भा. ८.२०.१७; मत्स्य १८७.४०); (२) का वर्णन सुनाया (वा. रा. उ. प्रक्षिप्त सर्ग १)। अशना, जिससे इसे बाण प्रभृति सौ पुत्र उत्पन्न हुये थे ___ आनंद रामायण में इसी प्रकार की एक और कथा (भा.६.१८.१७, विष्णु. १.२१.२)। भागवत में इसकी दी गयी है । एक बार रावण बलि को अपने वश में करने | कोटरा नामक और एक पत्नी का निर्देश प्राप्त है, जिसे के लिए पाताललोक गया। वहाँ बलि अपनी स्त्रियों के बाणासुर की माता कहा गया है (भा. १०.६३.२०)। साथ पाँसा खेल रहा था । किसी ने रावण की ओर गौर बलि के सौ पुत्रों में निम्नलिखित प्रमुख थे:--. किया । एकाएक एक फाँसा उछल कर दूर गिरा, तब ! बाण (सहस्रबाहु), कुंभगते (कुंभनाभ), कुष्मांड, मुर, दय, इसने उस फाँसे को उठाने के लिये रावण से कहा। भोज, कुंचि (कुशि), गर्दभाक्ष (वायु. ६७.८२-८३)। रावण ने फाँसा उठा कर देना चाहा, पर उसे हिला तक महाभारत में केवल बलिपुत्र बाण का निर्देश प्राप्त है सका। तब वहाँ पर फाँसा खेलती हुयी स्त्रियों ने रावण (म. आ. ५९.२०)। का ऐसा उपहास किया कि. यह वहाँ से चम्पत हो गया बलि की कन्याओं में निम्नलिखित प्रमुख थीः--शकुनी, (आ. रा. सार. १३)।
| पूतना (वायु. ६७.८२-८३; ब्रह्मांड. ३.५.४२-४४)।
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