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________________ बैरोचन बलि के वंशज इस अर्थ से 'बालेय' नाम का प्रयोग पुराणों में प्राप्त है। किंतु वहाँ बलि वैश्वानर एवं बलि आनव इन दोनों में से किस के वंशज निश्चित अभिप्रेत है, यह कहना मुष्किल है ( बलि भानव देखिये) । बलि की उपसना -- श्रद्धारहित हो कर एवं दोषदृष्टि रखते हुए जो दान किया जाता है, उस निकृष्ट जाति के दान में से कई भागों का स्वामी बलि माना जाता है (म. अनु. ९०.२० ) । देवीभागवत के अनुसार फौनसा भी धर्मकर्म दक्षिणा के सिवा किया जाये, तो वह देवों तक न पहुँच कर बलि उसका स्वामी बन जाता है । उसी तरह निम्नलिखित हीनजाति के धर्मकृत्यों को पुण्य उपासकों के बदले बलि को प्राप्त होता है:- अद्धारहित दान, अधम ब्राह्मण के द्वारा किया गया यज्ञ, अपवित्र पुरुष का पूजन, अर्थोत्रिय के द्वारा किया गया आद्धकर्म, शूद्र स्त्री से संबंध रखनेवाले ब्राह्मण को किया हुआ द्रव्यदान, अश्रद्ध शिष्य के द्वारा की गयी गुरुसेवा (दे. भा. ९.४५ ) । प्राचीन चरित्रकोश बलिप्रतिपदा के दिन बलि की उपासना जाती है । यह उपासना बहुशः राजाओं द्वारा की जाती है एवं वहाँ बलि, उसकी पत्नी विध्यावधि एवं उसके परिवार के कुष्मांड, बाण, मुर आदि असुरों के प्रतिमाओं की पूजा बड़े ही भक्तिभाव से की जाती है। उस समय निम्नलिखित खिस्तुति का पाठ ही भक्तिभाव से किया जाता हैः-यतिराज नमस्तुभ्यं विरोचनसुत प्रभो। भविष्य सुराराते पूजेयं प्रतिगुह्यताम् । (भविष्योत्तर १४० ५४१ पद्म उ. १३४.५३ ) बलिभद्र रुद्र गणों में से एक । - बलिवाक - युधिष्ठिर के मयसभा का एक ऋषि ( म. स. ४.१२ ) । पाठभेद ( भांडारकर संहिता ) " बलवाक । बलिविंध्य -- एक राजा, जो रैवत मनु का पुत्र था । बलीह-- एक क्षत्रियकुल, जिसमें अर्कज नामक कुलांगार राजा उत्पन्न हुआ था ( म. उ. ७२.२० ) । उस राजा के कारण, इस कुल का नाश हुआ । बलेक्षु--एक गोत्रकार ऋषिगण, जो वसिष्ठ कुल में उत्पन्न हुआ था । इसके नाम के लिये ' दलेशु ' पाठभेद मास है। बहुगविद बल्गुतक--भत्रिकुल के मंत्रकार 'क' का पाठभेद ( बस्नूतक देखिये) । बल्बूथ - ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक दानशूर पुरुष, जिसने तरुक्ष एवं पृथुश्रवस् के साथ अनेक गायकों को उपहार प्रदान किये थे (ऋ. ८.४६.३२ ) । वश अश्व्य नामक ऋषि ने इसके द्वारा दिये दिवे दानों का गौरवपूर्ण उल्लेख किया है। बलोत्कटा-लंद की अनुचरी मातृका (म. श. ४५.२२ ) । बलोन्मत्त रुद्रगणों में से एक। ऋग्वेद में इसे एक दास कहा गया है, किन्तु रोथ के अनुसार, यह स्वयं दास न हो कर इसके द्वारा किये गये एक सौ दासों के दान का उल्लेख वहाँ अभिप्रेत है। सिमर के अनुसार यह स्वयं एक आदिवासी अथवा आदिवासी माता का पुत्र था (आल्टिन्डिशे लेवेन ११७) | बल्लव - अज्ञातवास के समय पाण्डुपुत्र भीमसेन का सांकेतिक नाम, जिसका व्यवसाय स्पान ( पाककर्ता ). बताया गया है ( म. वि. २.१ ) । बल्लाल -- गणेश का परमभक्त, जो कल्याण नामक वैश्य का पुत्र था। अपने बाल्यकाल से श्रीगणेश की पूजा यह करता था । छोटे छोटे पत्थरों को एकत्र कर एवं उन्हे गणेश मान कर यह उनकी पूजा करता था। इसके मातापिता ने इसे गणेश की पूजा से परावृत्त करने के काफी प्रयत्न किये। किंतु वे सारे असफल हुए । एक बार उन्हों ने इसे पेड़ पर उल्टा टाँग कर काफी पीटा। फिर भी इसने अपनी गणेशभक्ति न छोड़ी। अंत में, जिस स्थान पर वह गणेश की पूजा करता था, वहाँ बालेश्वर अथवा गायविनायक नामक गणेश का स्वयंभु स्थान का निर्माण हुआ ( गणेश. १.२२ ) । बल्वल -- एक दानव, जो विप्रचित्ति दानव का पौत्र एवं इल्वल दानव का पुत्र था । नैमिषारण्य के ऋषियों को यह अत्यधिक पीड़ा देता था। इस कारण बलराम ने इसका वध किया ( भा. १०.७८.११; स्कंद. ३.१.१९ ) । बस्त रामकायन - मैत्रायणि संहिता में निर्दिष्ट एक आचार्य (मै. सं. ४. २. १० ) । इसके नाम के लिये 'बस्त समकायन' पाठभेद प्राप्त है। बहुगव - (सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो भागवत के अनुसार सुद्यु का, एवं विष्णु के अनुसार का पुत्र था । इसके नाम के लिये 'बहुगविन् ' तथा बहुविध ' पाठभेद प्राप्त है । C बहुगविन - धुंधु दैत्य के पुत्रों में से एक। २. (सो. पूर. ) पूरुवंशीय बहुवराज का नामान्तर, जिसे वायु में धुंधु का पुत्र कहा गया है । (बहुगव देखिये) । ५०१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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