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बलि वैरोचन
प्राचीन चरित्रकोश
बलि वैरोचन
धीरे धीरे बलि के राज्य की व्यवस्था क्षीण होने लगी। किया कि, तीसरा पैर किधर रखू (म. स. परि. १ क्र. राक्षसों का बल घटने लगा। एकाएक इस गिरावट | २१. पंक्ति. ३३४-३३५)। को देख कर, बलि अत्यधिक चिंतत हुआ, तथा इस विचित्र | बलि को वामन द्वारा इस प्रकार ठगा जाना देख कर परिवर्तन का कारण जानने के हेतु प्रह्लाद के पास गया। इसके सैनिकों ने उद्यत हो कर उस पर आक्रमण करने कारण पूछने पर प्रह्लाद ने बताया 'भगवान विष्णु वामना- | लगे। किन्तु इसने उन्हें समझाते हुए कहा, 'हमारा वतार लेने के लिए आदिति के गर्भ में वासी हो गये हैं, अन्तिम समय आ गया है, जो हो रहा है उसे होने दो'। यही कारण है कि तुम्हारा आसुरी राज्य दिन पर दिन | पश्चात् वरुण ने विष्णु की इच्छा जान कर, इसे रसातल को जा रहा है। प्रह्लाद के बचनों को सुन कर | वरुणपाश में बाँध लिया (वामन.९२)। इसने तत्काल उत्तर दिया, 'उस हरि से हमारे राक्षस | वामन द्वारा तीसरे पग के लिए भूमि माँगे जाने पर, अधिक बली है'। बलि की इस अहंकारभरी वाणी | गुरु शुक्राचार्य ने एक बार फिर बलि को दान के लिए को सुन कर प्रह्लाद ने क्रोधित हो कर शाप दिया 'तुम्हारा | रोका, पर बलि न माना। यह देख कर अर्घ्यदान देनेवाले राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो जायेगा । प्रह्लाद की वाणी सुन कर यह | पात्र के अन्दर शुक्र ऐसा बैठ गया कि, जिससे दा आतंकित हो उठा. तथा, तुरंत क्षमा माँगते हुए उसकी | देते समय उस पात्र से जल न निकल सके । बलि को शुक्र शरण में आया। किंतु प्रह्लाद ने इससे कहा, 'मेरी की यह बात बालूम न थी। जैसे ही पात्र की टोंटी से शरण में नही, तुम विष्णु की ही शरण जाओ, वही | जल न गिरा, यह कुश के अग्रभाग से उसे साफ करने तुम्हारा कल्याण निहित है' (वामन. ७७)। लगा जिससे शुक्राचार्य की एक आँख फूट गयी और तब वामन को दान-नर्मदा के उत्तरी तट पर स्थित
से शुक्राचार्य को 'एकाक्ष' नाम प्राप्त हुआ (नारद. भृगुकच्छ नामक प्रदेश में जब इसका अन्तिम अश्वमेध | १.११)। यज्ञ चल रहा था, तब एक ब्राह्मणवेषधारी बालक के रूप | बलिबंधन-पश्चात् वामन ने कहा, 'तुमने तीसरे पग में वामन भगवान् ने प्रवेश किया। बलि ने वामन का | की जमीन दे कर अपने बचनों का पालन नहीं किया है।
आदरसत्कार कर उनकी पूजा की, तथा कुछ माँगने के | यह सुन कर बलि ने उत्तर दिया 'तुमने कपट के साथ लिए प्रार्थना की (भा. ८.. १८. २०-२१)। वामन ने मेरे साथ व्यवहार किया है, पर मैं अपना वचन इससे तीन पग भूमि माँगी । शुक्राचार्य ने यह देख कर | निभाऊंगा । भूमि तो बाकी नहीं बची; मैं अपना मस्तक बलि को तुरन्त समझाया, 'यह ब्राह्मण बालक और कोई नहीं, | बढाता हूँ, उसमें अपना तीसरा पग रख कर, इच्छित स्वयं वामनावतारधारी विष्णु हैं। तुम इन्हें कुछ भी | वस्तु प्राप्त करो' (पद्म. पा. ५३)। 'न दो'1 किन्तु बलि ने गुरु की वाणी की उपेक्षा करते | बलि की यह स्थिति देख कर इसकी स्त्री विंध्यावली 'हुए कहा, 'नहीं ! मैं अवश्य दूंगा! जब प्रत्यक्ष ही परमेश्वर ने वामन भगवान् से बलि के उद्धार के लिए प्रार्थना मेरे द्वार पर अतिथि रूप से आया है, तो मैं उसे | की। विध्यावली की भक्तिपूर्ण मर्मवाणी को सुन कर विष्णु अवश्य ही इच्छित वस्तु प्रदान करूँगा (वामन. ९१)। प्रसन्न हो कर वर देते हुए कहा 'तुम अभी पाताल
लोक में निवास करो, वहाँ मैं तुम्हारा द्वारपाल बनूँगा, बलि की इस प्रकार की वाणी सुन कर, शुक्र ने क्रोधित
| भेरा सुदर्शन चक्र सदैव तुम्हारी रक्षा करेगा। आगे हो कर शाप दिया, 'बलि! तुमने मेरी उपेक्षा की है,
| चल कर सावर्णि मन्वन्तर में तुम इन्द्र बनोगे। मेरे आज्ञा की अवहेलना की है। तुम अपने को
। उक्त घटना कृतयुग के पूर्व काल की है। वह दिन अत्यधिक बुद्धिमान् समझते हो। तुम्हारा यह ऐश्वर्य, |
कार्तिक शुद्ध प्रतिपदा का था, जब बलि ने वामन को दान यह राजपाट नष्ट भ्रष्ट हो जाये।
दिया था। इस लिए उस दिन को चिरस्मरणीय रखने के वामन भगवान् ने इसकी तथा इसके पूर्वजों की यशगाथा | लिये वामन ने बलि को वर दिया, 'यह पुण्यदिन 'बलि का गान किया, और बलि ने उसे तीन पग भूमि दान देने प्रतिपदा' के नाम से विख्यात होगा, और इस दिन लोग के लिए मंत्र पढ़ते हुए अर्घ्य दिया। हाथों पर जल छोड़ते | तुम्हारी पूजा करेंगे' (स्कंद. २४.१०)। ही वामनरूपधारी विष्णु ने विशाल रूप धारण कर प्रथम | इसके पश्चात् , वामन ने इसे वरुण पाश से मुक्त पर में पृथ्वी, द्वितीय में स्वर्गलोक नापते हुए, इससे प्रश्न | किया, और बलि ब्रह्मा, विष्णु, महेश को नमस्कार कर,