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________________ बलि आनव प्राचीन चरित्रकोश बलि वैरोचन २३; म. आ. ९२,१०४२%)। इसके पुत्रों को प्राप्त डॉ. राजेंद्रलाल मित्र, डॉ. बेणिमाधव बारुआ आदि • राज्यों की जानकारी निम्न प्रकार है: | आधुनिक विद्वानों ने पुराणों में निर्दिष्ट इन असुरकथाओं (१) अंग-अंगदेश (आधु. भागलपुर एवं मोंधीर | के इस विसंगति पर काफि प्रकाश डाला है । संभव यही इलाका)। | है कि, देव एवं दैत्यों का प्राचीन विरोध सत् एवं असत् (२) वंग--वंगदेश (आधु. ढाका एवं चितगाँव का विरोध न होकर, दो विभिन्न ज्ञाति के लोगों का विरोध इलाका)। था, एवं बलि, बाण एवं गयासुर केवल देवों के विपक्ष में (३) कलिंग--कलिंग देश (आधु. उडीसा राज्य में होने के कारण देवों ने उनका नाश किया हो। से समुद्र तटपर स्थित प्रदेश)। ___ स्वर्गप्राप्ति--एक बार श्रीविष्णु ने किंचित्काल के (४) पुंड-पुंड्र देश (आधु. उत्तर बंगाल प्रदेश)। लिये देवों के पक्ष का त्याग किया। यह सुसंधी जान (५) सुझ-सुझदेश (आधु. बर्दवान इलाका)। | कर, दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने बलि को देवों पर आक्रमण यह एवं असुर राजा बलि वैरोचन सरासर अलग थे। करने की प्रेरणा दी । तदनुसार बलि ने स्वर्गपर आक्रमण किन्तु कई पुराणों में असावधानी से इन्हे एक व्यक्ति मान किया, एवं देवों के छवके छुड़ा दिये । बलि से बचने के कर, बलि आनव को 'दानव' एवं ' वैरोचन' कहा गया | लिये, देवों अपने मूल रूप बदल कर स्वर्ग से इतस्ततः है (ब्रह्मांड. ३.७४.६६, मत्स्य. ४८.५८)। किन्तु | भाग गये। किन्तु वहाँ भी बलि ने उनका पीछा किया, पुराणों में प्राप्त वंशावलियों में इसे स्पष्ट रूप से आनव एवं उनको संपूर्णतः हराया। कहा गया है, एवं इसकी वंशावलि भी आनव नाम से ही । पश्चात् बलि ने अपने पितामह प्रह्लाद को बड़े सम्मान दी गयी है। . | के साथ स्वर्ग में आमंत्रित किया, एवं उसे स्वर्ग में बलि वैरोचन-एक सुविख्यात विष्णुभक्त दैत्य, जो | अत्यधिक श्रेष्ठता का दिव्य पद स्वीकारने की प्रार्थना की। प्रह्लाद का पौत्र एवं विरोचन का पुत्र था। इसकी माता प्रह्लाद ने बलि के इस आमंत्रण का स्वीकार किया, एवं का नाम देवी था (म. आ. ५९.२०; स. ९.१२, शां. बलि को स्वर्ग के राज्यपद का अभिषेक भी कराया। २१८.१, अनु. ९८; भा.६.१८.१६, ८.१३. वामन, अभिषेक के पश्चात् , बलि ने प्रह्लाद की आशिश माँगी २३.७७)। स्कंद में इसकी माता का नाम सुरुचि दिया | एवं स्वर्ग का राज्य किस तरह चलाया जाय इस बारे गया है (स्कंद. १.१.१८)। विरोचन का पुत्र होने से, | में उपदेश देने की प्रार्थना की । प्रह्लाद ने इस उपदेश इसे 'वैरोचन' अथवा 'वैरोचनि' नामान्तर प्राप्त थे।| देते हुए कहा, 'हमेशा धर्म की ही जीत होती है. इस इसे महाबलि नामांतर भी प्राप्त था, एवं इसकी राजधानी | कारण तुम धर्म से ही राज्य करो' (वामन. ७४)। 'महाबलिपुर में थी। ___ प्रह्लाद के उपदेश के अनुसार, राज्य कर, बलि ने . 'आचाररत्न' में दिये गये सप्तचिरंजीव पुण्यात्माओं| एक आदर्श एवं प्रजाहितदक्ष राजा ऐसी कीर्ति त्रिखंड में बलि का निर्देश प्राप्त है (आचार. पृ. १०)। बाकी | में संपादित की (वामन, ७५)। छः चिरंजीव व्यक्तिओं के नाम इस प्रकार है:-अश्वत्थामन् , | समुद्रमंथन--एकबार बलि ने इंद्र की सारी संपत्ती व्यास, हनुमान् , विभीषण, कृप, परशुराम, (माकैडेय)। | हरण की, एवं उसे यह अपने स्वर्ग में ले जाने लगा। बलिकथा का अन्वयार्थ बलि दैत्यों का राजा था | किन्तु रास्ते में वह समुद्र में गिर गयी। उसे समुद्र से (वामन. २३)। दैत्यराज होते हुए भी, यह अत्यंत | बाहर निकलाने के लिये श्रीविष्णु ने समुद्रमंथन की सूचना आदर्श, सत्त्वशील एवं परम विष्णुभक्त सम्राट था (ब्रह्म. | देवों के सम्मुख प्रस्तुत की। समुद्रमंथन के लिए बलि ७३; कूर्म. १.१७; वामन. ७७-९२)। का सहयोग पाने के लिये सारे देव इसकी शरण में आ दैत्यलोग एवं उनके राजा पुराण एवं महाभारत में | गये । बलि के द्वारा इस प्रार्थना का स्वीकार किये जाने बहुशः असंस्कृत, वन्य एवं क्रूर चित्रित किये जाते है । बाण, | पर, देव एवं दैत्यों ने मिल कर समुद्रमंथनसमारोह का गयासुर एवं बलि ये तीन राजा पुराणों में ऐसे निर्दिष्ट | प्रारंभ किया (भा. ८. ६, स्कंद. १. १. ९)। है कि, जो परमविष्णुभक्त एवं शिवभक्त होते हुए भी, बलि के विगत संपत्ति को पुनः प्राप्त करना, यह देवों देवों ने उनके साथ अत्यंत क्रूरता का व्यवहार किया, | की दृष्टि से समुद्रमंथन का केवल दिखावे का कारण एवं अंत में अत्यंत निघृणता के साथ उनका नाश किया। | था। उनका वास्तव उद्देश तो यह था कि, उस मंथन से प्रा. च. ६३] ४९७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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