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________________ बलायु प्राचीन चरित्रकोश बलि आनव बलायु-पुरूरवस् को ऊर्वशी से उत्पन्न आठ पुत्रों में | । ८. अत्रिकुल का एक गोत्रकार । से एक (पद्म. स. १२)। ९. आंगिरसकुल का एक गोत्रकार । बलारक-अत्रिकुल के मंत्रकार वलातक का नामांतर । १०. रैवत मनु के पुत्रों में से एक । (वल्गूतक देखिये)। बलि आनव--(सो. अनु.) पूर्व आनव प्रदेश का बलाश्व-(सू . दिष्ट.) खनिनेत्रपुत्र करंधम राजा | सुविख्यात राजा, जो सुतपस् राजा का पुत्र था । यह का मूल नाम (मार्क. ११८. ७)। इसके पुत्र का नाम | इक्ष्वाकुवंशीय सगर राजा का समकालीन था। आनव अविक्षित् था। प्रदेश शुरु में आधुनिक मोंधीर तथा भागलपुर प्रान्तों में बलाहक-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्र के पुत्रों में | सीमित था। किन्तु अपने पराक्रम के कारण, इसने से एक था। अपना साम्राज्य काफी बढ़ा कर, पूर्व हिंदुस्थान का सारा २. एक राजा, जो जयद्रथ का भाई था। इसके पिता प्रदेश उसमें समाविष्ट कराया। का नाम वृद्धक्षत्र था (म. व. २४९. १२)। ___ हरिवंश के अनुसार, पूर्वजन्म में वह बलि वैरोचन ३. एक राजा, जिसे शिव ने गोवत्स के रूप में दर्शन नामक सुविख्यात दैत्य था। अपनी प्रजा में यह अत्यंत दिया था । पश्चात् गोवत्स के दर्शन के स्थान पर एक लोकप्रिय था, एवं उन्हीं के अनुरोध पर इसने अगले दिव्य शिवलिंग उत्पन्न हुआ, एवं वह अणुप्रमाण में | जन्म में बलि आनव नाम से पुनः जन्म लिया। दिन बदिन परिवर्धित होने लगा । किन्तु एक कर्मचांडाल | ___ इसने ब्रह्मा की कठोर तपस्या की थी, जिस कारण. उसके दर्शन के लिये आते ही, उसका वर्धन स्थगित हुआ | ब्रह्मा ने इसे वर दिये, 'तुम महायोगी बन कर कल्पान्त ' (कंद. ३. २. २७)। तक जीवित रहोगे। तुम्हारी शक्ति अतुल होगी, एवं युद्ध ४. श्रीकृष्ण के रथ का एक अश्व, जो दाहिने पार्श्व में में तुम सदा ही अजेय रहोगे। अपनी प्रजा में तुम जोता जाता था (म. वि. ४०.२१)।' लोकप्रिय रहोगे, एवं लोग सदैव तुम्हारी आज्ञा का बलि—एक सुविख्यात असुर, जो वामनावतार में पालन करेंगे । धर्म के सारे रहस्य तुम्हे ज्ञात होंगे, एवं श्रीविष्णु द्वारा पाताल में ढकेल दिया गया था (बलि तुम्हारे धर्मसंबंधी विचार धर्मविज्ञों में मान्य होंगे। धर्म वैरोचन देखिये)। को सुसंगठित रूप दे कर, तुम अपने राज्य में चातुर्वर्ण्य २. अनु देश का सुविख्यात राजा (बलि आनव | देखिये)। की स्थापना करोगे' (ह.वं. १. ३१. ३५-३९)। ३. युधिष्ठिर के सभा का एक ऋषि, जो जितेंद्रिय तथा । इसकी पत्नी का नाम सुदेष्णा था। काफी वर्षों तक वेदवेदाङ्गों में पारंगत था। इसने युधिष्ठिर को अनेक पुण्य- इसे पुत्र की प्राप्ति न हुयी थी। फिर दीर्घतमस औचथ्य कारक गाथएँ सुनाई थी (म. स. ४. ८)। हस्तिनापुर | मामतेय नामक ऋषि के द्वारा इसने सुदेष्णा से पाँच पुत्र जाते समय, मार्ग में इसकी श्रीकृष्ण से भेंट हुयी थी | उत्पन्न कराये ( दीर्घतमस् देखिये)। दीर्घतमस् ऋषि से (म. उ. ८१.३८८%)। उत्पन्न इसके पुत्रो के नाम निम्न थे:-अंग, वंग, कलिंगा, ४. एक शिवावतार, जो वाराहकल्प में से वैवस्वत | पुंड्र एवं सुझ (ब्रह्मांड, ३.७)। भागवत में इसके आंध्र मन्वन्तर की तेरहवी चौखट में उत्पन्न हुआ था। इसका | नामक और एक पुत्र का निर्देश किया गया है (भा. १. अवतार गंधमादन पर्वत पर स्थित वालखिल्याश्रम में | २३)। हरिवंश में सुझ के बदले सुस नामान्तर प्राप्त हुआ था। इसके सुधामन् , काश्यप, वसिष्ठ तथा विरजस् | है (ह. वं. १.३१)। इसके बंशजों को 'बालेय क्षत्र' नामक चार पुत्र थे (शिव. शत. ५)। अथवा 'बालेय ब्राह्मण' सामूहिक नाम प्राप्त था (मत्स्य. ५. (आंध्र. भविष्य.) एक राजा, जो भागवत के ४८.२५, विष्णु. ४.१८.१; ब्रह्म. १३.३१, ह. . १.३१ अनुसार आंध्र वंश का पहला राजा था। इसे शिप्रक, | ३४-३५)। इसके द्वारा स्थापित किये हुए वंश को शिशुक एवं सिंधुक नामान्तर भी प्राप्त थे। आनव वंश कहते है। ६. सावर्णि मन्वन्तर का इंद्र। __अपने कल्प के अन्त में, देहत्याग कर यह स्वर्गलोक ७. (सो. यदु.) एक यादव राजा, जो कृतवर्मन् का | चला गया । इसकी मृत्यु के पश्चात् इसका साम्राज्य इसके पुत्र था। रुक्मिणी की कन्या चारुमती इसकी पत्नी थी पुत्रों में बाँट दिया गया। जिस पुत्र को जो राज्य मिला, (भा. १०.६१. ४)। उसीके नाम पर उस राज्य का नामरण हुआ (भा. ९.
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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