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बंधु गौपायन
बंधु गौपायन (लौपायन) -- एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.२४.१ १०.५७-६०) ।
प्राचीन चरित्रकोश
बंधुपालित (मौर्य. भविष्य ) - एक राजा, जो वायु के अनुसार कुनाल का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार कुशाल का पुत्र था। इसने आठ वर्षों तक राज्य किया ।
बंधुमत् - ( स् . दिष्ट. ) एक राजा, जो भागवत एवं वायु के अनुसार केवल राजा का पुत्र था । इसके पुत्र का नाम वेगवान् था | इसके नाम के लिए 'धुंधुमत् ' पाठभेद भी उपलब्ध है (धुंधुमत् देखिये) ।
बबरं प्रावाहणि - एक आचार्य, जो श्रेष्ठ वक्ता बनना चाहता था । इसी इच्छा के वशीभूत होकर इसने पंचविंश यज्ञ किया था, जिससे इसे भाषासौन्दर्यशक्ति, साहित्यज्ञान तथा वक्तृत्वकला प्राप्त हुयी ( तै. सं. ७. १. १०.२) ।
बभ्रु -- (सो. पुरूरवस् . ) एक राजा, जो ययाति पौत्र एवं का पुत्र था इसके पुत्र का नाम सेतु था । कई ग्रन्थों में इसे बभ्रुसेतु भी कहा गया है, पर वास्त विकता यह है कि, सेतु इसके भाई का नाम था । वायु में इसके पुत्र का नाम रिपु दिया गया है ( वायु. ९९.७.) २. (सो. क्रोष्टु. ) एक राजा, जो रोमपाद का पुत्र था पद्म में इसे लोमपाद का पुत्र कहा गया है, और इसके पुत्र का नाम धृति बताया गया है (पद्म. स. १३) ।
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कई ग्रन्थों में इसके पुत्र का नाम कृति भी मिलता है । ३ विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मज्ञानी पुत्रों में से एक ( म. अनु. ४.५० ) । इसके वंश के लोग भी 'बाभ्रव्य' नाम से ही प्रसिद्ध हुए (ब्रह्म. १०६१; वायु. ९१. ९९ ) ।
बभ्रु दैवावृध बभ्रुआत्रेय--एक वैदिक आचार्य एवं सूक्तद्रष्टा, जिसने ऋणचय राजा से उपहार प्राप्त किये थे (ऋ. ५. ३०.११ - १४) । ऋग्वेद में अन्य जगह इसे अश्वियों का आश्रित भी कहा गया है (ऋ. ८. २२.१०९ बृहद्दे. ५. १३.३३ - ३४) । अथर्ववेद में भी एक स्थान पर बभ्रु का निर्देश प्राप्त है ( अ. वे. ४.२९.२ ) । किन्तु व्हिट इसे व्यक्तिवाचक नाम नहीं मानते ।
बभ्रु काश्य -- काशी का सुविख्यात राजा, जिसे श्रीकृष्ण की कृपा से राज्यश्री का लाभ हुआ था ( म. ३. २८. १३) ।
बभ्रु कौम्भ्य -- तांड्य ब्राह्मण में निर्दिष्ट एक सामद्रष्टा ( तां. बा. १५.३.१३ ) ।
बभ्रु दैवावृध – (सो. क्रोष्टु. ) एक यादववंशीय राजा, जो सात्त्वतपुत्र देवावृध का पुत्र था। इसकी माता का नाम पर्णाशा था । इसके नाम के लिये 'भानु' पाठभेद प्राप्त है।
यह राजर्षि यज्ञविद्या में बडा ही निपुण था । सहदेव साञ्जय ने इसे सोम बनाने की विशेष पद्धति प्रदान की थी। ऐतरेय ब्राह्मण में इसे पर्वत एवं नारद का शिष्य कहा गया है ( ऐ.ब्रा. ७. ३४ ) | सायणाचार्य इसे दो अलग व्यक्ति मानते है ।
यह बड़ा ही दयालु एवं उपकारी राजा था। इसने के कारण ही, इसे दानपति नाम प्राप्त हुआ था । लोगों को दान भी प्रचुर यात्रा में दिये थे । इसकी उदारता
इसके पुण्यकर्मों के कारण, इसके वंश का उद्धार हुआ ( भा. ९.२४.१० . ) । इसके वंश के नृप भोज 'मार्तिवतक' नाम से सुविख्यात हैं (ब्रह्म. १५.३५ -४५.) ।
महाभारत में इसे वृष्णिवंशीय यादव, एवं यदुवंशियों के सात मंत्रिपुंगवों में से एक कहा गया है ( म. स. १३. १५९*)।
४. सात्वतवंशीय अक्रूर राजा का नामांतर ( ब्रह्मांड. १.७१.८१; म. शां. ८२. १७; अक्रूर देखिये) ।
५. एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार, व्यास के अथर्थवेदशिष्य परंपरा के आंगिरस शुनक का शिष्य था । इसे आंगिरस ने अथर्वसंहिता प्रदान की थी ( भा. १२ ७.३; व्यास देखिये) ।
सुभद्राहरण के समय रैवतक पर्वत पर हुए महोत्सव में यह उपस्थित था ( म. आ. २११.१० ) । एकबार श्रीकृष्ण से मिलने यह द्वारका गया था, उस समय
६. मत्स्यनरेश विराट का एक पुत्र ( म. उ. ५६. शिशुपाल ने इसके पत्नी का हरण किया था ( म. स.
३३) ।
७. कश्यप कुलोत्पन्न संपाति का ज्येष्ठ पुत्र । इसके भाई का नाम शीघ्रग था (पद्म सृ. ६.६८ ) ।
८. ऋषभ पर्वत पर रहनेवाला एक गंधर्व । ९. एक स्मृतिकार, जो बभ्रुस्मृति का रचियता कहा जाता है (C.C.) ।
प्रा. च. ६२]
४२.१० ) ।
द्वारका में हुए ' यादवी युद्ध' के समय, इसने श्रीकृष्ण के पास ही बने हुए पेयपदार्थों का सेवन किया था (म. मौ. ४.१५ ) । द्वारका में हुए यादवी युद्ध में सारे यादव लोगों का संहार हो गया, एवं द्वारका निवासी यादवस्त्रियों की जान खतरे में आ गयी। उस समय दस्यु आदि
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