SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन चरित्रकोश देवावृध चोर धनादि के लोभ से आक्रमण न करें, इसलिये यादव स्त्रियों का रक्षण करने का काम, श्रीकृष्ण ने इसे एवं दारुक को कहा था। किंतु इसके पहले ही मौसलयुद्ध में फेंके गये एक मूसल से इसकी मृत्यु हो गयी ( म. मौ. ५.५-६ ) । बभ्रुमालिन् युधिष्ठिर की सभा का ऋषि ( म. स. ४.१४) । बभ्रुवाहन - मणिपुरनरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा के गर्भ से अर्जुनद्वारा उत्पन्न एक शरवीर शाक (म. आ. २०७.२१-२३)। चित्रवाहन ने अर्जुन को अपनी कन्या देने से पूर्व वह शर्त रखी थी कि, 'इसके गर्म से जो भी पुत्र होगा, यह यही रह कर इस कुलपरम्परा का प्रवर्तक होगा। इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा।' 'तथास्तु' कह कर अर्जुन ने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की । जन्म--चित्रांगदा के पुत्र हो जाने पर उसका नाम बभ्रुवाहन रख्खा गया। उसे देख कर अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा - 'महाराज ! इस अभ्रुवाहन को आप चित्रांगदा के शुल्क के रूप में ग्रहण कीजिये, जिससे मैं आप के से मुक्त हो जाऊँ इस प्रकार बभ्रुवाहन धर्मतः चित्रवाहन का पुत्र माना गया (म. आ. २०६.२४२६ ) | चित्रवाहन राज्य उसी प्रभंजन राजा का वंशज था, जिसने पुत्र न होने पर शंकर की तपस्या कर पुत्रप्राप्ति के लिये वर प्राप्त किया था ( प्रभंजन देखिये) । चित्रवाहन के । उपरांत यह मणिपूर राज्य का अधिकारी बना, जिसकी राजधानी मणलूरपूर थी (म. आ. ३.८१९ परि. १, क्र. ११२) । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, इसने सहदेव को करभार दिया था (म. स. परि. १, क्र. १५. पंक्ति ७३ ) । अर्जुनविरोध -- युधिष्ठिर द्वारा किये गये अश्वमेध के अश्व के साथ, घूमता घूमता अर्जुन इसके राज्य में आया था। इसने यज्ञ का अश्व देख कर उसे अपने अधिकार में कर लिया। पर जैसेहि इसे पता चला कि, यह मेरे पिता काही अर्थ है, इसने अश्व को धनधान्य तथा द्रव्यादि के साथ अर्जुन के पास लौटा दिया। अर्जुन ने बभ्रुवाहन के इस कार्य की कटु आलोचना की, तथा इसकी निता तथा असहाय स्थिति पर शोक प्रकट करते हुए इसके द्वारा दिये गये स्यादि को लौटा दिया। बभ्रुवाहन दिया तथा अपने सेनापति सुमति के साथ ससैन्य अर्जुन पर धावा बोल दिया । इस युद्ध में बभ्रुवाहन ने अपने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया, तथा अर्जुन को रण में परास्त कर उसका वध किया। इसी युद्ध में पुत्र वृषकेतु का भी इसने व किया है. अ. ३७) । । अर्जुन के व्यंग वचनों को सुन कर इसने अपने मंत्री सुबुद्धि के साथ यज्ञ के अश्व को पकड़ कर नगर भेज विजयोल्लास में निम बभ्रुवाहन राजधानी वापस छोटा, तथा अपनी वीरता की कहानी के साथ अर्जुन की मृत्यु का समाचार इसने चित्रांगदा को कह सुनाया। यह समाचार सुनते ही, इसकी माँ शोक में विलाप करती हुयी पति के शव के साथ सती होने को तत्पर हुयी । इस प्रतिक्रिया को देख कर अपनी माता-पिता का हत्यारा अपने को मान कर, यह स्वयं ही आत्महत्या के लिये प्रस्तुत हुआ। " मृतसंजीवन — उक्त स्थिति को देख कर इसकी सौतेली माँ उलूपी, जो अर्जुन की नागपत्नी थी, वह भी दुःखित हुयी। उसने इसे तथा चित्रांगदा को सांत्वना देते हुए युक्त बतायी कि यदि यह शेषनाग के पास जा कर मृतसंजीवक मणी को ले आये, तो अर्जुन पुनः जीवित हो सकता है। इसपर यह शेषनाग से मणि खाने गया, किंतु अन्य सर्पों के बहकाने पर शेषनाग ने इसे मणि देने से इन्कार कर दिया। अन्त में, शेषनाग को युद्ध में परास्त कर, यह उस मणि को लेकर अपने नगर वापस आया । मणि को लेकर यह अर्जुन के शव के पास गया। किंतु इसने वहाँ देखा कि, अर्जुन का कटा हुआ सर किसी के द्वारा चुरा लिया गया है । यह बड़ा हताश हुआ, किन्तु कृष्ण अपने पुण्यप्रभाव से पुनः उस सर को वापस लाया । इस प्रकार अर्जुन मणि के द्वारा जीवित किया गया। दोनों पिता-पुत्र पुनः मिले, तथा अर्जुन अश्वमेध अश्व के साथ आगे चल पड़ा (जै. अ. २१-४० ) । महाभारत में अर्जुन एवं बभ्रुवाहन के बीच हुए युद्ध की कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है । इस ग्रन्थ में अर्जुन की मृत्यु नहीं दिखायी गई है, बल्कि दिखाया गया है कि, बभ्रुवाहन ने अपनी सौतेली माता उड़पी के द्वारा प्राप्त किये हुए मायावी अस्त्रों के द्वारा अर्जुन को युद्ध में मूर्च्छित किया (उडपी देखिये) । यह घटना सुन कर चित्रांगदा ने पी की निर्भत्सना की, तथा उसे बुरा भला कहा। उलूपी ने अपनी गल्ती स्वीकार कर बभ्रुवाहन को मृतसंजीवक मणि दी, तथा महा ' इसे ले जा कर अर्जुन के वक्षस्थल पर रक्खो । वह पुनः ४९०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy