________________
बक दाल्भ्य
प्राचीन चरित्रकोश
बंधु
ब्रह्मा का हर एक दिन और रात एक सहस्त्र वर्षों की | अनाज दे। हे अनाज देनेवाले प्रभो, हमें अनाज दे। होती है, यह मन ही मन जान कर, अर्जुन को इसकी | (छां. उ. १.१२)। आयु हजारों सालों की प्रतीत हुयी। बाद में, अर्जुन इसे | बकनख--विश्वामित्र का ब्रह्मावादी पुत्रों में से एक ।' पालकी में सम्मानपूर्वक बिठा कर युधिष्ठिर के अश्वमेधयज्ञ | (म. अनु. ४.१८ )। में ले गया (जै. अ. ६०)।
__बकी-पूतना राक्षसी का नामांतर । बहुत वर्षों तक जीनेवाले व्यक्ति को किन दुःख- बटु-गीता का नित्यपाठ करनेवाला भक्त ब्राह्मण । सुखों के बीच गुजरना पडता है, इस सम्बन्ध में इसका | धर्माचरण करने के कारण, मृत्योपरांत इसे स्वर्ग की तथा इन्द्र का संवाद हुआ था। इस संवाद में इन्द्र ने | प्राप्ति हुयी । पर इसका नश्वर शरीर इसी लोक में रहा। उल्लेख किया है कि, इसकी आयु एक लाख वर्षों से भी | पक्षिया ने इसके मृत शरीर के समस्त मांस को खा डाला, अधिक थी (म. व. परि. १. क्र. २१)।
केवल अस्थिपंजर ही शेष बचा। पश्चात् वर्षा के दिनों
में इसकी खोपडी बरसाती पानी से भर गयी, जिसके ___ यह अधिक काल तक जीवित रहा, इसके सम्बन्ध में
स्पर्श से एक पापी का उद्धार हुआ (पद्म. उ. १७९) एक और कथा 'जैमिनि अश्वमेध' में दी गयी है। एक
बध्यश्व-(सो. नील.) एक राजा, जो वायु के बार इसने अभिमान में आ कर ब्रह्मा से कहा, 'मैं तुमसे आयु में ज्येष्ठ हूँ, अतएव मेरा स्थान तुमसे ऊँचा है।
अनुसार सुमहायशस् राजा का पुत्र था। मत्स्य के
अनुसार, 'बध्यश्व' सुविख्यात 'वघ्यश्व' राजा का ही . ब्रह्मा ने इसके द्वारा इसप्रकार की अपमानभरी वाणी सुन कर, इसके मिथ्याभिमान एवं भ्रम के निवारणार्थ
| पाठभेद है (वयश्व देखिये )। प्राचीन ब्रह्मदेवों का साक्षात् दर्शन करा कर सिद्ध कर दिया
बंदिन --ऐंद्राग्नि जनक राजा के राजसभा का वाक्पटु . कि, यह उसकी तुलना में कुछ भी नहीं था (जै. अ.६१)।
पंडित (म. व. १३२.४ )। राजा जनक को इसने अपना .
परिचय 'वरुणपुत्र के रूप में दिया था (म. व. १३४. लंकाविजय के पूर्व, राम बक दाल्भ्य के आश्रम गया |
२४)। किन्तु महाभारत में अन्यत्र, इसे सूतपुत्र भी कहा, था, और समुद्र किस प्रकार पार किया जाय, इसके बारे
गया है (म. व. १३४.२१)। में राय माँगी थी। तब इसने राम को 'विजया एकादशी'
___इसने अन्य ब्राह्मणों के साथ कहोड़ को शास्त्रार्थ में का व्रत बता कर उसे करने के लिए कहा । इसी व्रत के
परास्त कर, शर्त के अनुसार जल में डूबोया था (म. व. कारण ही, राम रावण का वध कर विजय प्राप्त कर सका |
१३२.१३) । अन्त में, अष्टावक्र ने अपने पिता कहोड़ (पद्म. उ. ४४)।
की मृत्यु का बदला लेने के लिये, इसे वादविवाद में छांदोग्य उपनिषद् में—यक दाल्भ्य की एक कथा दी | हराया था (म. व. १३४.३-२१)। इस समय अष्टागयी है, जिसमें ऐहिक सुखप्राप्ति के लिए मन्त्रोच्चारण | वक्र की आयु दस ग्यारह वर्षों ही की थी (म. व. १३२. का स्वांग रचानेवाले लोगों का लक्षणात्मक रूप से | १६:१३३.१५, अष्टावक्र देखिये)। इस प्रकार पुरानी उपहास किया गया है । यह कथा कुत्तों से सम्बधित है, जो | शर्त के अनुसार, ऐंद्रद्युम्नि जनक ने इसे समुद्र में प्रवेश बक दाल्भ्य द्वारा देखी गयी। इन्होंने देखा कि, एक सफेद | करने के लिए विवश किया (म. व. १३४.३७)। कुत्ते से अन्य कुत्ते अपने खाने की समस्या को रखकर निवेदन महाभारत में दी गयी बंदिन की कथा में, जनक को कर रहे है, 'हम भुखे है, क्या खायें ! कहाँ से हमें कैसे अन्न | ऐन्द्रद्युम्नि (म. व. १३३.४ ), उग्रसेन (म. व. १३४.१ । प्राप्त हो!' सफेद कुत्ते ने कहा, 'ठीक है, कल आओ, हम | तथा पुष्करमालिन् (म. व. १३३.१३). कहा गया है। देंगे तुम्हें भोजन' । यह सुनकर कुत्ते चले गये और दुसरे | विदेह की वंशावलि में जनक के ये नाम अनुपलब्ध हैं। दिन फिर उसी सफेद कुत्ते के पास पहुँचे । बक ऋषि भी | महाभारत में इसके नाम के लिए बंदिन (म. व. जिज्ञासावश दूसरे दिन सफेद कुत्ते की करामत देखने को | १३२.१३:१३३.१८:१३४.२), तथा बंदि (म. व. १३२. हाजिर हुए। ऋषि ने देखा कि, सभी कुत्तों के चुपचाप | ४.१३३.५) दोनों पाठभेद प्राप्त हैं। खडे हो जाने के उपरांत, गर्दन उँची कर सफेद कुत्ता बंधु-(सू . दिष्ट.) एक राजा, जो भागवत के साभिमानपूर्वक मनगटन्त मन्त्र उच्चारीत करने लगा- | अनुसार, वेगवान् राजा का पुत्र था। अन्य पुराणों में . 'हिम् ॐ। हम खायेंगे। ॐ हम पियेंगे । भगवान् हमें | इसे 'बुध' भी कहा गया है।
४८८