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प्राचीन चरित्रकोश
बक दाल्भ्य
अब हर एक दिन इसके भोजन के लिए, तीस मन कर, इसने उन्हें नैमिषारण्यवासी ऋषियों का प्रदान चावल, दो भैंसे तथा एक व्यक्ति नगर निवासियों की ओर | करते हुए कहा, 'इन गायों को आप लोग ग्रहण करें, मैं से जाने लगी। एक दिन एक गरीब ब्राह्मण की पारी | सार्वभौम कुरुराजा धृतराष्ट्र के पास जाकर पुनः दक्षिणा आयी, जिसके घर लाक्षागृह से निकलने के उपरांत कुंती | प्राप्त करूँगा। के साथ पांडवों ने निवास किया था। ब्राह्मण के उपर धृतराष्ट्र से विरोध-धृतराष्ट्र के पास जाने के बाद इसे आयी हुयी विपत्ति को देख कर, कुंतीद्वारा भीम सब | वहाँ धृतराष्ट्र द्वारा मृतक गायों की दक्षिणा प्राप्त हुयी। खाने-पीने के सामान के साथ राक्षस के निवासस्थान अपने इस अपमान को देखकर, यह कुरुराज पर अत्यधिक भेजा गया। भीम बक के यहाँ जाकर सारे सामान को क्रोधित हुआ एवं उसके विनाश के लिए यज्ञ करने लगा। स्वयं खाने लगा। यह देख कर बक क्रोधित होकर भीम दक्षिणा में प्राप्त मृतक गायों को उसी यज्ञ में हवन कर, पर झपटा, और दोनों में मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया। इसने धृतराष्ट्र के वंश, राज्य आदि के विनाश के लिए अन्त में भीम ने बक का वध किया (म. आ. ५५.२० | प्रार्थना की। १४४-१५२)।
इस यज्ञ का प्रभाव यह हुआ कि, धृतराष्ट्र का राज्य ३. अंधकासुर के पुत्र आडि नामक असुर का नामांतर दिन पर दिन उजड़ कर नष्टप्राय होने लगा, मानों किसी(आडि देखिये)।
ने हरेभरे बन के वृक्षों को कुल्हड़ी से काट कर रख दिया बक दाल्भ्य-एक ऋषि, जो दाल्भ्य ऋषि का भाई हो । राष्ट्र की हालत देखकर, ज्योतिषियों के परामर्श से था (म. स. ४.९; २६.५; परि. १. क्र. २१. पंक्ति १- धृतराष्ट्र बक ऋषि की शरण गया, एवं राष्ट्र को विनाश से ४)। महाभारत में इसके नाम का निर्देश दाल्भ्य के मुक्त करने की याचना करने लगा। धृतराष्ट्र की दयनीय साथ प्रायः हर एक जगह आया है। किन्तु, यह निर्देश स्थिति को देख कर, तथा उसकी प्रार्थना से द्रवीभूत कभी 'बकदाल्भ्यो ' (बक एवं दाल्भ्य) रूप से, एवं कभी होकर, यह राष्ट्रसंहारक मन्त्रों को छोड़कर राष्ट्रकल्याण'बको दाल्भ्यः ' (दल्म का पुत्र बक) रूप में भी प्राप्त कारी मन्त्रों के उच्चारण के साथ पुनः यज्ञ करने लगा, है । इसीकारण यह दाल्भ्य ऋषि का भाई था, अथवा | जिससे राष्ट्र विनाश से बच गया। इससे प्रसन्न होकर दम ऋषि का पुत्र था, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा | धृतराष्ट्र ने बक ऋषि को अनेकानेक सुन्दर गायों को दक्षिणा सकता । उपनिषदों में 'दाल्भ्य' बक ऋषि का पैतृक नाम के रुप में भेंट दी, जिन्हें लेकर यह नैमिषारण्य वापस दिया गया हैं (छां. उ. १.२.१३, क. सं. ३०.२ लौट गया (म. श. ४०)। दाल्भ्य देखिये)।
तत्त्वज्ञान-युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह ब्रह्मा ...कई विद्वानों के अनुसार, ग्लाव मैत्र एवं यह दोनों | नामक ऋत्विज बना था। पाण्डवों के अश्वमेध यज्ञ के
एक ही व्यक्ति थे। 'जैमिनि उपनिषद् ब्राह्मण' में, आजके- समय, अश्व के रक्षणार्थ निकला हुआ अर्जुन इसका दर्शन शिनों के लिए इन्द्र को विवश करनेवाले एक व्यक्ति के | करने के लिए इसके आश्रम आया था। उस समय अर्जुन रूप में, तथा कुरू-पंचाल के रूप में इसका उल्लेख किया के साथ जो इसका संवाद हुआ था, वह इसकी परम गया है ( जै. उ. बा. १.९.२,४.७.२ )।
विरक्ति एवं मितभाषणीय स्वभाव पर काफी प्रकाश ___ तीर्थयात्रा करता हुआ बलराम, बक दाल्भ्य के आश्रम | डालता है।
आया था। वहाँ बलराम को इसके बारे में निम्नलिखित कथा | इसके आश्रय में कोई झोपडी न थी। यह खुले मैदान ज्ञात हुभी। उस कथा में बक दाल्भ्य के प्रत्यक्ष उपस्थिति में, सर पर एक वटवृक्ष के पत्ते को रक्खे हुए तपस्या कर का उल्लेख नहीं है, जिससे ज्ञात होता है कि, उस समय रहा था। अर्जुन ने इसे इसप्रकार बैठा देखकर प्रश्न यह आश्रम में न था।
किया 'यह सर पर वटपत्र क्या अर्थ रखता है ?' इसने एक बार. यह नैमिषारण्य के ऋषियों द्वारा आयोजित | जवाब दिया 'धूप से बचने के लिए'। अर्जुन ने पुछा, द्वादशवर्षीयसत्र एवं विश्व जित् यज्ञ में भाग लेकर, 'इसके लिए आप को झोपडी आदि बनवाना चाहिये। पांचाल देश पहुँचा । वहाँ के राजा ने इसका उचित | इसने जवाब दिया 'उम्र इतनी कम है कि, इन चीज़ों के आदरसत्कार कर, उत्तम जाति की इक्कीस गायों को लिए समय ही कहाँ ?' इस पर अर्जुन ने इसकी आयु दक्षिणा के रूप में इसे भेंट की। इन गायों को स्वीकार | पूछी। तब इसने जवाब दिया 'ब्रह्मा की बीस अहोरात्रि'।
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