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फलभक्ष
प्राचीन चरित्रकोश
फलभक्ष-कुवेर की सभा का एक यक्ष (म. स. फाल्गुन--अर्जुन का नामांतर । हिमालय के शिखर १०.१७)।
पर, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में अर्जुन का जन्म हुआ था।
इसीसे उसे यह नाम प्राप्त हुआ (म. वि. ३९.१०)। फलहार--अंगिराकुल का एक गोत्रकार।
फेन--(सो. उशी.) उशीनरवंशीय एक राजा, जो फलौदक--कुबेर की सभा का एक यक्ष (म. स. उपद्रथ राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम सुतपस् १०.१७)।
एवं पौत्र का नाम बलि औशीनर था, जो अपने समय का
सुविख्यात शासक था (ह.व. १.३१.३२)। . फल्गतंत्र--अयोध्या का राजा, जो सगर राजा का
फेनप-एक ऋषिसमुदाय, जो गोदुग्ध के फेन को पिता था। इसकी वृद्धावस्था में तालबादि हैहयों ने
खा कर ही जीवित रहते थे (म. उ. १००.५, अनु. ४५. अयोध्या पर आक्रमण कर, उसे अपने अधिकार में कर लिया, और इसे अपनी पत्नी के साथ राज्य से निकाल
२. भृगुकुल का एक गोत्रकार, जिसकी कथा भीष्मदिया। अयोध्या से निकल कर, यह सपत्नीक और्वाश्रम में
द्वारा युधिष्ठिर को गोमहात्म्य बताने के लिए निवेदित की आकर रहने लगा, और वहीं इसकी मृत्यु भी हुयी । मृत्यु
गयी थी। इसका मूल नाम सुमित्र था। यह त्रिशिखर '' के समय इसकी पत्नी गर्भवती थी, जिसे कालांतर में
पर्वत पर, कुलजा नदी के तट पर, गाय के दूध का फेन सगर नामक पुत्र हुआ (ब्रह्मांड, ३.४७)।
खा कर जीवित रहता था। इसलिये इसे फेना नाम प्राप्त । __ मत्स्य तथा विष्णु पुराण में इसके नाम के लिए 'बाहु' हुआ (म. अनु. १२०-१२३ कुं.)। पाठभेद प्राप्त है (बाहु देखिये)।
। ३. पितरों में से एक।
निकाल २
बक-कंस के पक्ष का एक असुर, जिसे कंस ने कृष्ण के सरोवर से कमल तोड़ने के अपराध में, वहाँ के रक्षकों के वध के लिये गोकुल भेजा था।
द्वारा यह शिवजी के सम्मुख पेश किया गया । शिवजी __ बगुले का वेश धारण कर यह गोकुल गया। वहाँ ने इसकी निष्ठा को देखकर 'आशीष देते हुए कहा गोप सखाओं के साथ क्रीड़ा में निमग्न कृष्ण को देख कर 'अगले जन्म में तुम्हें कृष्ण के दर्शन होंगे, एवं उन्हीं के इसने उसे निगल लिया। कृष्ण इसके शरीर में पहुँच | हाथों तुम्हें मुक्ति भी प्राप्त होगी' (ब्रह्मवै. ४. १६)। कर इसे पीडा से दग्ध करने लगा । अतएव इसने उसे २. एक नरभक्षी राक्षस, जो एकचक्रा से दो कोस की तत्काल उगल कर, यह अपनी पैनी चोंच से उसे मारने | दूरी पर, यमुना नदी के किनारे वेत्रवन नामक घने जंगल लगा। इसका यह कुकृत्य देखकर, कृष्ण ने इसकी चोंच के की एक गुफा में रहता था। इसका एकचक्रा नगरी तथा दोनों जबड़ों को चीरकर इसका वध किया (भा. १०.११)। वहाँ के जनपद पर शासन चलता था (म. आ. १४८.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूर्वजन्म में यह सहोत्र ३-८)। अलंबुस तथा किर्भीर इसके भाई थे। नामक गंधर्व था। यह कृष्णभक्त था, और दुर्वास ऋषि । एकचक्रा नगरी के व्यक्तियों ने अत्यधिक परेशान के आश्रम में रहकर, कृष्ण की प्राप्ति लिए इसने अत्यधिक हो कर, इसे घर बैठे ही भोजन भेजवा देने के लिए, हर तपस्या भी की। एक बार कृष्ण की पूजा के हेतू पार्वती | एक व्यक्ति की पारी बाँधी दी।
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