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________________ प्रियव्रत प्राचीन चरित्रकोश प्लायोगि ३. मद्र देश का राजा । इसे कीर्ति तथा प्रभा नामक कौशाम्बेय कौसुरविन्द' कहा गया है (गो. ब्रा. १. २. दो स्त्रियाँ थीं। इसके दो प्रधानों का नाम धूर्त तथा कुशल २४)। किसी कुसुरुबिन्द का वंशज होने के कारण, इसे था। इसके पुत्र का नाम क्षिप्रप्रसादन था, जो परम यह नाम प्राप्त हुआ होगा। गणेशभक्त था। इसे गणेशजी द्वारा परशु प्राप्त होने के तैत्तिरीय संहिता में इसे औद्दालकि (उद्दालक का कारण, परशुबाहु भी कहा जाता है (गणेश.)। वंशज) कहा गया है (तै. सं. ७.२.२.१)। इससे प्रियव्रत रोहिणायन-शतपथ ब्राह्मण में निर्दिष्ट प्रतीत होता है कि, इसके पैतृक नाम एवं समकालीनता एक आचार्य (श. ब्रा. १०.३.५.१४)। से सम्बन्धित वक्तव्यों को अधिक महत्त्व न देना चाहिये। प्रियव्रत सोमापि- एक आचार्य, जो सोमप नामक प्रोवा-प्राचेतस दक्ष प्रजापति की कन्या, जो कश्यप ऋषि का पुत्र था (ऐ. ब्रा. ७.३४सां. आ. १५.१)। ऋषि की पत्नी थी। इसकी माता का नाम असिक्नी था। इसके नाम के लिए 'प्रियव्रत सौमापि' पाठभेद भी कश्यप से इसे कोई भी सन्तान न हुयी (कश्यप उपलब्ध है। सांख्यायन आरण्यक में इसे 'सोमप' (सोम | देखिये)। पीनेवाला) उपाधि से उद्देशित किया गया है। प्रोष्ठपाद वारक्य-एक आचार्य, 'जो कंस वारकि __पितरों के 'मृत' और 'अमृत' दो प्रकार होते हैं। नामक ऋषि का शिष्य था (जै. उ. बा. ३.४१.१)। पितरों में से 'ऊम' नामक पितरं 'अमृत' प्रकार में प्रौष्ठपद-कुबेर का कोषाध्यक्ष और मंत्री (वा. रा. आते हैं। किन्तु प्रियव्रतं के अनुसार, जो पितर यज्ञ में | उ. १५.१६)। भाग लेते हैं वे सभी 'अमृत' प्रकार में आते हैं। प्लक्ष--दारुक नामक शिवावतार का शिष्य। प्रीति--दक्ष की कन्या, जो पुलस्त्य ऋषि की पत्नी प्लक्ष दय्यांपति-एक आचार्य, जो अत्यंहस् थी। पुलस्त्य से इसे दानामि, देवबाहु, अत्रि नामक तीन आरुणि नामक ऋषि का समकालिन था। उसने अपने पुत्र, एवं सद्वती नामक एक कन्या थी (पुलस्त्य शिष्यों के द्वारा इससे सावित्राग्नि के बारे में अशोभनीय देखिये)। . . प्रश्न पुछवाये थे (ते. ब्रा. ३.१०.९.३)। २. कामदेव की पत्नी रति का नामांतर । प्लति--गय प्लात नामक आचार्य का पिता। प्रयमेध--आचार्यों का एक सामूहिक नाम, जिन्होंने प्लवंग--राम की सेना का एक वानर (वा. रा. उ. अंगरांज के पुरोहित आत्रेय उद्मय के लिये यज्ञ किया था | ४०.७)। (ऐ. बा. ८.२२)। तैत्तिरीय ब्राह्मण में तीन प्रेयमेधों का | प्लाक्षायण--एक वैयाकरण, जो आचार्य प्लाक्षि का निर्देश प्राप्त है (ते. ब्रा. २.१.९.१)। उनमें से एक समकालीन था। विसर्ग सन्धि के बारे में इसके मत केवल एक समय, सुबह ही 'अग्निहोत्र' होम करता था; | तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में निर्देशित है (तै. प्रा. ९.६)। - दूसरा सुबहशाम दो बार, तथा तीसरा सुबह, दोपहर, प्लाक्षि-एक वैयाकरण, जो प्लाक्षायण नामक तथा शाम तीनों समय ‘अग्निहोत्र' होम करता था। आचार्य का समकालीन था। विसर्गसन्धि के बारे में इसके पश्चात् , इन तीनों में यह तय पाया गया कि, उक्त होम | इसके मत तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में दिये गये है (ते. प्रा. दिन में केवल दो बार ही किया जाये । तैत्तिरीय ब्राह्मण | ५.३.८, ९.६; तै. आ. १.७.३)। प्लक्ष का वंशज होने में भी यह कथा इसी प्रकार दी गयी है। के कारण, इसे प्लाक्षि नाम प्राप्त हुआ होगा। यजुर्वेद संहिताओं में इन्हें सभी यज्ञगायनों का विज्ञ 'प्लाक्षि' उपाधि पैतृक नाम के रूप में 'सप्तकर्ण' को कहा गया है (का. सं. ६.१; मै. सं. १.८)। गोपथ ब्राह्मण | भी दी गयी है (सप्तकर्ण देखिये) में इन्हें भारद्वाज कहा गया है (गो. ब्रा. १.३.१५)। प्लात--गय प्लात नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक - ऋग्वेद के सिंधुक्षित् नामक सूक्तद्रष्टा को प्रियमेधपुत्र नाम (ऐ. ब्रा. ५.२; गय प्लात देखिये)। संभव है, के अर्थ से 'प्रैयमेध' पैतृक नाम प्रदान किया गया है। 'प्लति' का वंशज होने के कारण, इसे यह नाम प्राप्त प्रोति कौशांबेय कौसुरुबिन्दि-एक आचार्य, जो हुआ होगा। उद्दालक ऋषि का शिष्य और उसका समकालीन था (श. प्लायोगि--आसंग नामक दानवीर राजा एवं वैदिक ब्रा. १२.२.२.१३)। गोपथ ब्राह्मण में इसे 'प्रेदि । सूक्तद्रष्टा का पैतृक नाम (आसंग देखिये)।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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