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प्राचीनयोग्य शौचेय
प्राचीन चरित्रकोश
प्रातिकामिन्
'प्राचीनयोग' ऋषि का वंशज होने के कारण, इसे यह (जै. उ. ब्रा. ३.४०.२), प्रजावत् (ऐ. ब्रा. १.२१), नाम प्राप्त हुआ हो।
यक्ष्मनाशन (ऋ. १०.१६१), यज्ञ (ऋ. १०. १३०), एक तत्वज्ञानी के नाते से इसका उल्लेख उपनिषदों में | विमद (ऋ. १०.२०), विष्णु (ऋ. १०.१८४), संवरण प्राप्त है (छां. उ. ५.१३.१; तै. उ. १.६.२) । इसके । (ऋ.५.३३)। चंश के निम्नलिखित आचार्यों का निर्देश जैमिनीय उपनिषद् | प्राण-स्वायंभुव मनु के दामाद भगु ऋषि का पौत्र । ब्राह्माण में प्राप्त हैं:--पुलुष, सत्ययज्ञ, सोमशुष्म (जै. उ. | भृगुपुत्र विधाता इसका पिता एवं मेरुकन्या नियति ब्रा. १. ३९. १)।
इसकी माता थी। इसे वेदशिरस् नामक एक पुत्र था प्राचीनशाल औपमन्यव--एक आचार्य एवं ईश्वर- (भा. ४.१.४४ ) शास्त्रविद् , जो सत्ययज्ञ एवं इन्द्रद्युम्न का समकालीन था | २. स्वारोचिष मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । (छां. उ. ५.११.१)। जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण में इसका । ३. अष्टवसुओं में से दूसरा वसु । इसके पिता का नाम निर्देश 'प्राचीनशालि' नाम से किया गया है, एवं इसे सोम और माता का नाम मनोहरा था। इसके बड़े भाई एक उद्गाता पुरोहित कहा गया है (जै. उ. ब्रा. ३.१०. | का नाम वर्चा, एवं दो छोटे भाइयों का नाम शिशिर और १)। इसकी परंपरा के 'प्राचीनशाल' लोगों का निर्देश | भी उक्त ब्राह्मण ग्रंथ में प्राप्त है।
४. एक देव, जो अंगिरा और सुरूपा मारीची के पुत्रों प्राचीनशालि--प्राचीनशाल औपमन्यव नामक | में से एक था। आचार्य का नामांतर (जै.उ. वा. ३.७.२, ३, ५, ७)।। ५. साध्य देवों में से एक ।
प्राचीन्वत्--(सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, । ६. तुषित देवों में से एक । जो पूरु राजा का पौत्र एवं जनमेजय (प्रथम) का पुत्र था। ७. एक राजा, जो वसिष्ठ की कन्या पुंडरिका का पति.. इसकी माता का नाम अनंता था। इसे 'अविद्ध' | था ( वसिष्ठ देखिये )। नामांतर भी प्राप्त है। इसने एक रात्रि में, उदयाचल से प्राणक-प्राण नामक अग्नि का पुत्र (म. व. २१०.१)। लेकर सारी प्राची दिशा को जीत लिया, इसीलिए इसका प्रातर-(स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो पुष्पार्ण एवं नाम प्राचीन्वत् पड़ा। इसकी स्त्री का नाम आश्मकी | प्रभा का ज्येष्ठ पुत्र था । यादवी था, जिससे इसे शय्याति (संयाति) नामक पुत्र २. धाता नामक सातवें आदित्य का पुत्र, जिसकी था (म. आ. ९०.१२-१३)।
माता का नाम राका था (मा. ६.१८.३ )। प्राचेतस--वाल्मीकि ऋषि का नामांतर (भा. ९.११. ३. कौरव्यकुल का एक नाग, जो जनमेजय के सर्प१०)। वाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि ने स्वयं को | सत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१२)। पाठभेदप्राचेतस कहा है (वा. रा. उ. ९६.१८)। यह भृगुकुल | (भांडारकर संहिता)-' पातपातर'। में उत्पन्न हुआ था (वा. रा. उ. ९३.१६-१८; ९४.२५; प्रातरह कौहल-- एक आचार्य, जो केतु वाज्य ऋषि मत्स्य. १२.५१; म. शां. ५८.४३ )। इसने अघमर्षण | का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम सुश्रवस् वार्षगण्य तीर्थ पर दीर्घकाल तक तपस्या की थी (भा. ६.४.२१)। था (वं. ब्रा. १)।
२. (सो. द्रुह्य.) दस प्रचेताओं द्वारा वार्षी या मारिषा प्रातर्दन-संयमन नामक आचार्य का पैतृक नाम से उत्पन्न सौ पुत्रों का सामूहिक नाम, जिनमें दक्ष प्रजापति प्रमुख था (म. आ. ७०.४)। ये उत्तर दिशा में प्रातर्दनि--क्षत्रश्री राजा का नामांतर (ऋ. ६.२६. रहनेवाले म्लेंच्छों के अधिपति हुए।
८)। प्रतर्दन का वंशज होने के कारण, इसे यह नाम ३. प्राचीनबर्हि के दस पुत्रों का सामूहिक नाम । | प्राप्त हुआ होगा। प्राचेय-कश्यपकुल का एक गोत्रकार ।
प्रातिकामिन् (प्रातिकामी)--दुर्योधन का सारथि प्राजापत्य--प्रजापति के वंशजों का सामुहिक नाम । (म. स. ६०.२-३)। दुर्योधन की सभा में द्रौपदी को लाने प्रजापति के वंशज होने के नाते, निम्नलिखित वैदिक के लिए सर्वप्रथम यही गया था। द्रौपदी ने जब सभा में सूक्तकारों को 'प्राजापत्य'उपाधि प्राप्त है-आरुणि सौपर्णय आने से इन्कार कर दिया, तब इसने द्रौपदी के द्वारा कहीं . (तै. आ. १०.७९), पतंग (ऋ. १०.१७७), परमेष्ठिन् । हुयी बात सभा में आ कर दुर्योधन से कहीं (म. स. ६०.
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