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________________ प्रह्लाद प्राचीन चरित्रकोश प्राचीनयोग्य शौचेय ३. एक बाह्रीकवंशीय राजा. जो शलभ नामक दैत्य के समुद्रकन्या शतद्रति अथवा सवर्णा इसकी पत्नी थी, अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.२९)। जिससे इसे प्रचेतस् नामक दस पुत्र उत्पन्न हुए (भा. ४. प्रांशु-चाक्षुष मनु का एक पुत्र । २४.८.१३; ह. वं. १.२.३१; विष्णु. १.१४.३-६; म. २. वैवस्वत मनु का एक पुत्र । अनु. १४७.२४-२५)। ३. (सू. दिष्ट.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार कर्मकाण्ड और योगाभ्यास में यह अत्यंत कुशल था। वत्सप्रीति का, विष्णु के अनुसार वत्सप्रि का, तथा वायु के | इसके निम्नलिखित पाँच भाई थे, जिनकी सहायता से अनुसार भलंदन का पुत्र था। इसकी माता का नाम सुनंदा | इसने विभिन्न स्थानों पर अनेक यज्ञ किये-गय, शुक्ल, (मुद्रावती) था (मार्क. ११४.३)। कृष्ण, सत्य और जितव्रत। प्राक्शंगवत्-कुणिगर्ग ऋषि की वृद्धकन्या नामक । इसे योग्य राजर्षि देख कर, नारद ने पुरंजन राजा का मानसकन्या का पति (वृद्धकन्या देखिये)। आख्यान बता कर ब्रह्मज्ञान दिया (भा.४. २५-२९)। प्रागहि--एक आचार्य, जिसके यज्ञविषयक मतों का | ब्रह्मा ने नारायण से श्रवण किया हआ 'सात्वतधर्म' इसे निर्देश सांख्यायन ब्राह्मण में प्राप्त है (सां. ब्रा. २६.४)। सिखाया, यही नहीं, ब्रह्मा ने 'ऋष्यादि क्रम' का ज्ञान यज्ञ करते समय यदि कोई कर्म करने से छूट जाये, तो | भी इसे दिया। उस अंतरित क्रिया को कब तथा कैसे किया जाये, महाभारत में इसे अत्रिकुलोत्पन्न एक नृप, एवं प्रजापति उसका विधान इसने बताया है। कहा गया है (म. शां. २०१.६) । वृद्धावस्था में यह अपने प्रागाथ--अंगिराकुल का एक ब्रह्मर्षि । इसके कुल में उत्पन्न निम्नलिखित आचार्यों का निर्देश ऋग्वेद में सूक्त पुत्रों पर प्रजारक्षण का भार सौंप कर, तपस्या के हेतु कपिलाश्रम चला गया (भा. ४.२९.८१)। आकाश में द्रष्टा के नाते से आया है:-हर्यंत प्रागाथ (ऋ. ८.७२), स्थित, सप्तार्षियों में, पूर्वदिशा की ओर बर्हिषद नाम भर्ग प्रागाथ (ऋ. ८.६०-६१), कलि प्रागाथ (ऋ. ८. से यह निवास करता है। २. स्वायंभुव मन्वन्तर का एक राजा । दक्ष प्रजापति प्रागाथम-- 'प्रागावस' नामक अंगिराकुल के के यज्ञ में सती ने देहत्याग किया था, उस समय यह गोत्राकार का नामांतर। भरतखण्ड का राजा था। प्रागायण--एक ऋषिगण, जो कश्यपकुल का गोत्रकार प्राचीनयोग--एक आचार्य, जो वायु और ब्रह्मांड प्रागावस--अंगिरा कुल का एक गोत्रकार. जिसके। के अनुसार, व्यास की सामशिष्यपरंपरा में शंगीपत्र ऋषि , नाम के लिए 'प्रागाथम' पाठभेद प्राप्त है। का पुत्र था (व्यास देखिये)। .. प्राचिन्वत--पूरुवंशीय 'प्राचीन्वत्' राजा का प्राचीनयोगीपुत्र--एक आचार्य, जो सांजीवीपुत्र नामांतर (प्राचीन्वत् देखिये)। नामक ऋषि का पुत्र था। इसके शिष्य का नाम कार्षकेयीप्राचीनगर्भ---अलम्बुषा नामक अप्सरा के पुत्र पुत्र था (बृ. उ. ६.५.२)। शतपथ ब्राह्मण में इसके सारस्वत ऋषि का नामांतर। शिष्य का नाम भालुकीपुत्र दिया गया है (श. ब्रा. २. सृष्टि तथा छाया का एक पुत्र । १४. ९. ४. ३२)। संभव है, 'प्राचीनयोग' की प्राचीनबर्हि 'प्रजापति'-(स्वा. उत्तान.) एक किसी स्त्री-वंशज का पुत्र होने के कारण, इसे यह नाम प्रजापति, जो मनुवंशीय हविर्धान नामक राजा को हविर्धानी | प्राप्त हुआ हो। नामक पत्नी से उत्पन्न ज्येष्ठ पुत्र था (म. अनु. १४७. | | २. एक आचार्य, जो वायु एवं ब्रह्मांड के अनुसार, २४-२५)।.. व्यास की सामशिष्यपरंपरा में कौथुम पाराशर्य ऋषि का इसका वास्तविक नाम 'बर्हिषद' था। कहते हैं, इसने | शिष्य था। इतने यज्ञ किये कि, यज्ञ करते समय पूर्व दिशा की ओर | प्राचीनयोग्य 'शौचय--तत्त्वज्ञान का एक आचार्य, रक्खे गये 'पूर्वाग्र दर्भो ' से पृथ्वी आच्छादित हो उठी। | जो पाराशर्य का शिष्य था (बृ. उ. २. ६.२)। यह इसीलिये इसे प्राचीनबर्हि (प्राचीन = पूर्व; बर्हि = दर्भ) | उद्दालक का समकालीन था, एवं इसके शिष्य का नाम नाम प्राप्त हुआ। गौतम था (श. ब्रा. ११. ५.३.१;८)। सम्भव है, प्रा. च. ६१] ४८१ . था।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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