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________________ प्रातिकामिन् प्राचीन चरित्रकोश प्रियमेध आंगिरस ५०या। ४-१७)। दुर्योधन ने इसे पुनः द्रौपदी के पास जाने के | २. धर्म के शम नामक पुत्र की पत्नी (म. आ. लिये कहा । लेकिन भीम के डर के कारण, इसने पुनः जाना | ६०. ३०)। अस्वीकार कर दिया (म. स. ६०.२९)। यह भारतीय युद्ध | प्रामति--ब्रह्मसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । में मारा गया (म. श. ३२.४३) प्रायण-एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में प्रातिथेयी-लोपामुद्रा की बहन गभस्तिनी का | से एक था। नामांतर (वडवा एवं गभस्तिनी देखिये)। इसके नाम | प्रावरेय--गर्गों का पैतृक नाम (क. सं. १३. के लिये 'नातिथेयी' पाठभेद भी प्राप्त हैं। १२)। . प्रातिपीय-कुरु राजा 'बलिक' का पैतृक नाम | प्रावहि--एक आचार्य, जिसके द्वारा यज्ञविधि में (श. ब्रा. १२.९.३.३)। इसे प्रतिवंश राजा का शिष्य | असावधानी से हुए 'कर्मविपर्यास ' के लिये प्रायश्चित्त कहा गया है (सां. आ. १५.१)। बताया गया है (सां. बा. २६.४)। इसके नाम के लिये प्रातिवेश्य-एक आचार्य, जो प्रतिवेश्य ऋषि का | 'प्रागहि' पाठभेद प्राप्त है। शिष्य था (सां. आ. १५.१)। २. अंगिराकुल का एक गोत्रकार । प्रातीबोधीपुत्र-सांख्यायन आरण्यक में निर्दिष्ट एक । प्रावारकर्ण--एक चिरंजीवी उलूक, जो हिमालयआचार्य (सा. आः ७.१३; ऐ. बा. ३.१.५) । संभव है, | पर्वत पर निवास करता था (म. व. १९१.४)। 'प्रतीबोध' के किसी स्त्रीवंशज का पुत्र होने के कारण, प्रावाहाण--बबर नामक साहित्याचार्य का पैतृक नाम इसे यह नाम प्राप्त हुआ हो। (बबर देखिये)। प्रातद--भाल्ल नामक आचार्य का पैतृक नाम (जै. प्रावणि--अंगिराकुल का एक गोत्रकार । उ. ब्रा. ३.३१.४; बृ. उ. ५.१३.१ )। प्राश्नापुत्र--एक आचार्य, जो आसुरायण ऋषि का प्राद्युम्नि-यादव राजा · अनिरुद्ध का नामांतर | शिष्य था। इसके शिष्य का नाम सांजवीपुत्र था (बृ. उ. (म. स. ६०)। ६.५.२) । शतपथ ब्राह्मण में, इसे आसुरिवासिन् का 'प्राधा-प्राचेतस दक्ष प्रजापति की कन्या एवं कश्यप | शिष्य, एवं इसके शिष्य का नाम काशीकेयीपुत्र बताया ऋषि की पत्नी । इसकी माता का नाम असिनी था। इसे | गया है (श. ब्रा. १४.९.४.३३)। अरिष्टा' नामांतर भी प्राप्त है (अरिष्टा देखिये)। प्रास्ति--जरासंध की कन्या 'प्राप्ति' का नामांतर कश्यप ऋषि से इसे तेइस देवगंधर्व पुत्र, एवं इक्कीस | (प्राप्ति १. देखिये)। अप्सरा कन्यायें उत्पन्न हुयीं। इसके पुत्रों में हाहा, हू- प्रास्त्रवण--अवत्सार ऋषि का पैतृक नाम (सां. बा. हू, तुम्बरु एवं असिबाहु, तथा कन्याओं में अलम्बुषा तथा | १३.३)। इसके नाम के लिए 'प्राश्रवण' पाठभेद भी अनवद्या प्रमुख थीं (कश्यप देखिये)। उपलब्ध है। महाभारत में प्राधा के दस पुत्र, एवं आठ कन्यायें प्रियक--स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६०)। दी गयीं हैं (म. आ. ५९.१२, ४४-४६)। प्रियभृत्य--एक नृप (म. आ. १.१७६)। प्राध्वंसन--एक आचार्य, जो प्रध्वंसन नामक ऋषि प्रियंवदा-राधिका की सखी। अर्जुनि नामक स्त्री का शिष्य था । बृहदारण्यक उपनिषद् मे मृत्यु नामक | का रूप धारण करनेवाले अर्जुन के जपानुष्ठान के समय, आचार्य का पैतृक नाम 'प्राध्वंसन' बताया गया है (बृ. उ. | इसने उसका संरक्षण किया था ( पन. पा. ७४)। २.६.३, ४.६.३)। अथर्वन् दैव इसका शिष्य था। | प्रियदर्शन-द्रुपद का एक पुत्र । द्रौपदीस्वयंवर के प्राप्ति-जरासन्ध की कन्या एवं जरासन्धपुत्र | उपरांत हुए युद्ध में, कर्ण ने इसका वध किया था (म. सहदेव की छोटी बहन । यह कंस की पत्नी थी। इसकी | आ. परि. १. क्र. १०३; पंक्ति १३१-१३२)। दुसरी बहन अस्ति भी कंस को ब्याही थी (भा. १०. प्रियनिश्चय--भव्य देवों में से एक । ५०.१)। प्रियमाल्यानुलेपन--स्कंद का एक सैनिक (म. श. __महाभारत में, इसका निर्देश प्रास्ति नाम से किया | ४४.५५)। गया है (म. स. १४.३०)। किन्तु यह पाठभेद त्रुटिपूर्ण | प्रियमेध आंगिरस-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.८. प्रतीत होता है। | २.१-४०; ६८, ६९; ८७; ९.२८)। ऋग्वेद में इसके
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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