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________________ अमित प्राचीन चरित्रकोश अंबरीष २. सावर्णि मन्वन्तर का देव । अमृतवत्--स्वायंभुव मन्वन्तर के जिदाजित् देवों ३. रैवत मन्वन्तर का देव । में से एक। अमिताभ-सावर्णि मन्वन्तर का देवगण । अमृता--अरुग्वत् की पत्नी। अमितौजस्--पांडव पक्ष का महारथी (म. उ. | अमोघ-- बृहस्पति तथा तारा की कन्या स्वाहादेवी १६८.१०)। का पुत्र । अग्निविशेष (म. व. २०९)। अमित्र-द्वितीय मरुद्गणों में से एक । दिती का। २. एक कार्तिकेय का नाम (म. व. परि. १. पुत्र । | २२.९)। अमित्रजित्--(सू. इ. भविष्य.) भागवत के मता- अमाधा-शतनु ऋाष का भाया । एक समय, ब्रह नुसार सुतप्त राजा का पुत्र । वायु के मतानुसार सुवर्ण | शंतनु महर्षि के आश्रम में गया । वह ऋषि बाहर पुत्र तथा भविष्य के मतानुसार सुवर्णीग का पुत्र । गया हुआ था, अतएव इसने ब्रह्मदेव की पूजा की । २. एक राजा । इसके राज्य में सर्वत्र शिवमंदिर थे। इसका सुंदर स्वरूप देख कर, उसका वीर्यपतन हो कर लज्जित हो कर वह चला गया । कुछ समय के पश्चात् , यह देख कर नारद ऋषि आनंदित हो कर इसके पास आया तथा इससे बोला, 'चंपकावती नगर में मलय शंतनु वापस आया । उस वीर्य को देख कर-कौन आया गंधिनी नामक एक गंधर्वकन्या है। कंकालकेतु नामक था-ऐसा उसने पूछा । ब्रह्मदेव का अमोघ वीय व्यर्थ नष्ट राक्षस उसका हरण कर रहा है। उससे जो मेरी रक्षा न हो, इस लिये उसका स्वीकार करने की आज्ञा शंतनु ने इसे दी। उस वीर्य से उत्पन्न गर्भ का तेज यह सहन करेगा उसीसे मैं विवाह करुंगी, ऐसी उसकी शर्त है। न कर सकी। तब इसने वह गर्भ युगंधर पर्वत की खाई इस लिये तुम यह काम करो'। नारद के इस कथनानुसार, इसने कंकाल केतु से युद्ध कर के उसका नाश किया के जल में डाल दिया । उससे लोहित नामक तेजस्वी तीर्थातथा उस गंधर्वकन्या के साथ यह अपने नगर लौट आया । धिपति निर्माण हुआ। आगे चल कर, विष्णु को लगा तदनंतर विवाह हो कर इसे वीर नामक पुत्र हुआ (स्कन्द हुआ क्षत्रियवध का पाप, इस तीर्थ में लान करते ही नष्ट हो गया । (पन. सृ. ५५) ४.२.८२-८३)। ___अंबर-वृत्रासुरानुयायी असुर (भा. ६.१०.१८अमित्रतपन शुष्मिण शैब्य--शिबि का पुत्र । इसने १९)। . अत्यराति जानंतपि का वध किया (ऐ. ब्रा. ८.२३)। । | अंबरीष--ऋज्राश्व, सहदेव, सुराधस् एवं भयमान, अमूर्तरजस्--अभूतरजस् तथा अमूर्तरयस् देखिये । | इनके साथ वार्षागिर नाम से इसका उल्लेख है (ऋ. १. अमूर्तरयस्-- (सो. पूरु.) मत्स्य के मतानुसार १००.१७)। अंतिनारपुत्र। यह सूक्तकर्ता है (ऋ. १.१००, ९.९८) । यह २. (सो. अमा.) विष्णु के मतानुसार कुशपुत्र । | अंगिरस गोत्र का मंत्रकार है ।, भागवत के मतानुसार इसका मूर्तरय नाम है। अमूर्तार २. (सू. नभग.) नाभाग का पुत्र (म. स. ८.१२ कुं.)। तथा यह एक ही होगा। विष्णु के मतानुसार अमूर्तरय | यह बडा शूर तथा धार्मिक था । यह हजारों राजाओं से नाम है। अकेला लड़ता था । इसने लाखों राजा तथा राजपुत्र, यज्ञ ३. एक क्षत्रिय । यह गय राजा का पिता था (म. व. में दान दिये थे। अभिमन्यु की मृत्यु से दुःखित धर्मराज ९३.१७) । इसे ही अधूर्तरजस् नामांतर था। की सांत्वना करने के लिये, अंबरीष की भी मृत्यु हो गयी, अमूर्तरय--अमूर्तरयस् (२) देखिये। | ऐसे नारद ने बताया (म. द्रो. ६४; शां. २९.९३. परि अमृत-- (स्वा. प्रिय.) इध्मजिव्ह के सात पुत्रों में १.८. पंक्ति. ५८८) इसने दीर्घकाल राज्य किया से एक । इसका वर्ष इसीके नाम से प्रसिद्ध है (भा. ५. - (कौटिल्य. २२)। २०.२-३)। ___एक बार कार्तिक माह की एकादशी का त्रिदिनात्मक २. अंगिरस गोत्र का मंत्रकार । उपोषण इसे था । द्वादशी के दिन, इसके घर पर दुर्वास ३. अमिताभ नामक देवों में से एक । अतिथि बनकर आया तथा आह्निक करने नदी पर गया। अमृतप्रभ--सावर्णि मन्वन्तर का देव । इधर द्वादशी काल समाप्त हो रहा था, अतः इसने नैवेद्य २८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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