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प्राचीन चरित्रकोश
अभिमन्यु
वंश - विराट राज की कन्या उत्तरा, अभिमन्यु की पत्नी थी । इसकी मृत्यु के समय उत्तरा गर्भवती थी । उसका पुत्र परीक्षित् नाम से प्रख्यात है। इस परीक्षित के कारण ही, भारतीय युद्ध में अस्तंगत होते हुए पुरु कुल को नवजीन प्राप्त हुआ।
२. स्वायंभुव मन्वन्तर के अजित देवों में से एक। ३. सामन्तर के सप्तर्षियों में से एक
४. चाक्षुष मनु तथा नङ्खला का पुत्र | अभिमान -- स्वायंभुव मन्वन्तर के धर्म का पुत्र । अभिमनिन्-मीत्य मन्वन्तर का मनुपुत्र । अभियुक्ताक्षिक मन्नणों में से एक । - चौथे अभिरथ--(सो. क्षत्र..) विष्णु के मतानुसार केतुमान का पुत्र
अभिवत् (सो.) कुरु तथा बाहिनी का पुत्र ( म. आ. ८९.४४ अविक्षित् ( २ ) देखिये) ।
अभूतरजस् -- रैवत मन्वन्तर का देवगण । इसमें दस व्यक्तियों का समावेश होता है। इसे अनूतरयस् नामांतर है।
अमित
अमर्ष -- (सू. इ. ) विष्णु के मतानुसार सुगविपुत्र । अमर्षण -- (सू. इ. ) संधिराज का पुत्र ( म. ९. १२ ।
अभ्यीि ऐतशायन-ऐश का पुत्र एकवार, जब ऐश अपने पुत्र के सामने कुछ मंत्रपठन कर रहा था, तब उन्हे अश्लील समझ कर, इसने उसके मुख पर हाथ • रखकर, उनका मंत्रपठन बंद कर दिया। इससे क्रोधित हो कर, तुम्हारा कुल पापी होगा, ऐसा शाप उसने इसे दिया, जिससे सब लोग इसे तथा इसकी संतति को पापी समझने लगे (ऐ. ब्रा. ६.३३ ) । ऐतशायन को और्वकुलोत्पन्न कहा है (सां. बा. २००५)। औवं तथा भृगु कुछ का बिलकुल निकट संबंध होना चाहिए, वा एक ही कूल की ये दो शाखाए होंगी। ऋग्वेद काल से इनका एकत्र उल्लेख पाया जाता है ( एतश देखिये) ।
मध्यावर्तिन चायमान -- एक राजा । इसने वर शिख के नेतृत्व में वृचिवत् को जीत लिया तथा परशिस के पुत्रों का वध किया । इसीके लिये इन्द्र ने तुर्वश तथा वृचीवत् को जीता । किन्तु वहाँ यह तथा संजय देववात एक ही होने की संभावना है ( ६-२७-७)। इसका पार्थव नाम से भी उल्लेख है ( ६-२७८.५)। अमरेश – इसका गोत्र भारद्वाज । इसने 'वर्णरत्नप्रदीपिका' नामक २२७ लोकों की शिक्षा रची, जिसके आरंभ में कृष्ण नमन हो कर आगे शौनक तथा शाकटायन का उल्लेख है । यह प्रातिशाख्यानुसारिणी है ( श्लो. १२२ ) ।
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अमल-वृष्टबुद्धि प्रधान का पुत्र ( चन्द्रहास देखिये) ।
अमला -- वैवस्वत मन्वन्तर के अत्रि ऋषी की कन्या । यह ब्रह्मनिष्ठ थी।
अमही आंगिरस -- सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.६१ ) । अमावसु-- (सो. पुरुरवस् ) पुरुरवस् वंश में ही दो अमावसु हुए। पहला, पुरुरवस् के पुत्रों में से एक तथा दूसरा, अमावसू के वंश के कुश का पुत्र । इनमें से, पुरुरवसपुत्र अमावसु, कान्यकुब्ज घराने का मूल पुरुष है। इसकी वंशावली अनेक स्थानों पर दी गई है ( ब्रह्म. १०. ह. १९ १४९ ब्रह्माण्ड २.६६. २०-३५० ६. बं. १.२७९ विष्णु. ४.७.२ - ५; वसु तथा जन्हु देखिये) ।
२. एक अत्यंत स्वरूपवान पितर । इसको देख कर अच्छोश नामक पितरों की मानसकन्या मोहित हो गई । परंतु इसने उसकी प्रार्थना अमान्य की इस कारण वह योगभ्रष्ट हो कर अगले जन्म में वसू की कन्या मत्स्यी (काली, सत्यवती) हुई (पद्म. स. ९.१२.२४ अच्छछेदा देखिये ) |
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इसका अगला जन्म इसी नाम से पुरुरवा के पुत्र के रूप में हुआ।
अमवासु वंश -- यह वंश, ऐल पुरुरवस् के अमावसु नामक पुत्र ने प्रचलित किया । इसकी राजधानी कान्यकुब्ज नगर थी ।
इस वंश में, प्रायः पंद्रह पुरुष मिलते है । इनमें कुशिक ( कुशाश्व ), गाथि, विश्वामित्र, मधुच्छेदस, आदि प्रमुख है। नय के पश्चात् इस वंश का उल्लेख नही मिलता । विश्वामित्र ब्रह्मण बन गया, इस कारण यह क्षत्रियवंश समाप्त हो गया।
इस वंश में एक अजमीढ राजा का नामोल्लेख मिलता
है ।
अमावास्य शांडिल्यायन -- अंशु धानंजय्य का गुरु (वं. बा. १ )
अमावास्या -- अमावसु तथा अच्छोदा की कन्या ( मत्स्य. १४) ।
अमाहट - - एक सर्प ( म. आ. ५२.१५ ) । अमित - (सो. पूरु.) जय का पुत्र ( भा. ९५ १५.२) ।
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