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अंबरीष.
प्राचीन चरित्रकोश
अंबा
समर्पण किया, तथा तीर्थ ले कर उपवास छोड़ा। यह जान | २. पांडवपक्षीय क्षत्रिय । इसके पुत्र को लक्ष्मण ने मार कर, दुर्वास ने अपनी जटा के केशों द्वारा निर्मित एक | डाला (म. क. ४.२६%)। कृत्या अंबरीष पर छोड़ी। इतने में, विष्णु के सुदर्शन ने | अम्बष्ठ--कंस के कुवलयापीड हाथी का महावत कृत्या का नाश किया तथा वह चक्र दुर्वास के पीछे लगा। (भा. १०.४३.२-५)। इस स्थिति में, विष्णु ने भी उसका संरक्षण करना अस्वीकार | अंबा--काशीराज की तीन कन्याओं में से ज्येष्ठ । कर, पुनः अंबरीष के यहाँ जाने को कहा। दुर्वास को अपनी कन्याँएं उपवर होने के कारण, काशीराज ने उनके अंबरीष के यहाँ लौटने में एक वर्ष लगा। तब तक अंबरीष | स्वयंवर का निश्चय किया । तदनुसार देशदेशांतर के भूखा ही था। इसने दुर्वास को देखते ही उसका स्वागत राजाओं को स्वयंवरार्थ निमंत्रण भेजे । इस स्वयंवर में किया । चक्र की स्तुति कर उसे वापस भेजा तथा दुर्वास कोई भी शर्त नहीं रखी गयी थी । काशीराज ने निश्चय को उत्तम भोजन दिया । (भा. ९. ४-५)। इसने पक्ष- किया था कि, जो सब से अधिक बलवान हो वह इनका बर्धिनी एकादशी का व्रत किया था। योग्य समय पर उपवास हरण करे। छोड़ने के कारण, यह विष्णु को. प्रिय हुआ। अतः इसे | चित्रांगद के निधनोपरांत, भीष्म अपनी सौतेली मां -मोक्ष प्राप्त हुआ (पद्म. उ. ३८.२६-२७)।
की संमति से, विचित्रवीर्य के नाम पर हस्तिनापुर का राज्य . इसने भीष्मपंचक व्रत किया था (पद्म. उ. १२५. | चला रहा था । विचित्रवीर्य का विवाह नहीं हुआ था। .२९-३५)। जब यह स्वर्ग में गया, तब इसे स्वर्ग में स्वयंवर का समाचार मिलते ही, विचित्रवीर्य के लिये उन सुदेव नामका इसका सेनापति दिखाई दिया । तब इसे | कन्याओं का हरण करने के लिये, भीष्म स्वयंवर को गया भआश्चर्य हुआ। 'स्वर्ग में कौन आता हैं, इस विषय पर तथा वहां के समस्त राजाओं को हरा कर, तीनों कन्याओं इन्द्र से इसका संवाद हुआ । इन्द्र ने इसे बताया कि, को हरण कर ले आया (म. आ. ९६)। सुदेव की रणांगण में मृत्यु होने के कारण, उसे स्वर्गप्राप्ति भीष्म ने हस्तिनापुर आकर, उन तीनों का विचित्रवीर्य हुई (म. शां. ९९ कु.)। इसके पुत्र का नाम सिंधुद्वीप | से विवाह करने का निश्चित किया। इस बात का पता लगते इसे विरूप, केतुमान तथा शंभु नामक तीन पुत्र भी थे ही, अंबा ने भीष्म से कहा कि, वह पहले से ही शाल्व से (भा. ९. ६:१)। इसने सकल राष्ट्र का दान किया था प्रेम करती है, इस लिये उसका विवाह विचित्रवीर्य से (म. अनु. १. ३७. ८)।
करना योग्य नहीं होगा । यह सुन कर भीष्म ने अंबा को ३. (सू.इ.) मांधाता को बिंदुमती से प्राप्त तीन पुत्रों दलबल सहित सम्मान के साथ शाल्व के पास भिजवा में से मँझला (भा. ९.७.१)।
दिया। शाल्व ने उसका अंगिकार नहीं किया। भीष्म ने . . ४. (सू. इ.) त्रिशंकु के दो पुत्रों में से दूसरा । इसे सबके सामने उसे हराया था, इस लिये अंबा के साथ श्रीमती नामक कन्या थी । वह नारद तथा पर्वत के बाद विवाह करना शाल्व को योग्य नहीं लगा। अंबा फिरसे भीष्म में विष्णु ने प्राप्त की (अ. रा. ३-४)। यह एक बार के पास आयी और उससे कहा कि, आपने मुझे जीत कर यज्ञ कर रहा था, तब इसके दुर्वर्तन के कारण, इंद्र ने | लाया है, इस लिये शाल्व मुझे स्वीकार नहीं कर रहा है, . इसका यज्ञपशु उडा लिया। तब इसने ऋचीक ऋषि को
अतएव आप ही मेरा वरण करें, यही योग्य होगा । परंतु द्रव्य दे कर, उसका शुनःशेप नामक पुत्र खरीद लिया तथा
भीष्म ने आजीवन बह्मचर्य व्रत का पालन करने का प्रण यज्ञ पूरा किया। धर्मसेन इसका नामांतर है, एवं यौवनाश्व किया था, इस लिये उन्हे अंबा की इच्छा अस्वीकृत करनी इसका पुत्र है । यही हरिश्चंद्र है (लिङ्ग.२.५.६; वा. रा. |
पड़ी। बा. ६१, शुनःशेप देखिये)।
चारो ओर निराधार होने के कारण, अंबा अत्यंत ५. एक सर्प | यह कद्रु का पुत्र था।
दुःखित हुई । अपनी इस दुर्दशा का कारण भीष्म है, इस अम्बर्य--यह दक्षिण में गौतमी के किनारें, दंडक देश
लिये किसी प्रकार से भीष्म से प्रतिशोध लिया जाय, इस का नृप था। इसका नृसिंह ने वध किया (नृसिंह देखिये)। पर यह विचार करने लगी, तथा तप करने के लिये हिमालय
अंबष्ट वा अम्बष्टक-दुर्योधनपक्षीय क्षत्रिय । इसका | की ओर चल पड़ी। अभिमन्यु के साथ युद्ध हुआ था (म. भी. ९२.१७)। हिमालय की ओर जाते समय, इसे राह में शैखावत्य ऋषि इसको अर्जुन ने युद्ध में मारा (म. द्रो. ६८.५६)। का आश्रम मिला । ऋषि को इसने अपना निश्चय बताया।