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________________ प्रमुचि प्राचीन चरित्रकोश प्रवाहण प्रमुचि-एक ऋषि, जो दाशरथि राम से मिलने | बलराम को अपने कंधे पर रखकर, दैत्याकार रूप धारण अयोध्या आया था (वा. रा. उ. १.३)। कर यह भागने के लिए उद्यत हुआ। फिर बलराम ने प्रमोद ब्रह्मा का मानसपुत्र, जो उसके कंट से उत्पन्न | मस्तक पर मुष्ठिप्रहार कर तत्काल इसका बध किया (ह. हुआ था। इसे हर्ष नामांतर भी प्राप्त है (मत्स्य. ३. व. २.१४; भा. १०.१८, विष्णु. ५.९-३७)। ११)। ___बलराम ने जिस स्थान पर प्रलंब का वध किया था, २. (सू. इ.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार दृढाश्च उस स्थान को हरिवंश में 'भांडीरवन,' तथा भागवत राजा का पुत्र था। इसे हर्यश्व नामक एक पुत्र था। | में, 'भांडीरवट' कहा गया है। ३. ऐरावतकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के महाभारत में प्रलंच का वध बलराम के द्वारा न होकर । सर्पसत्र में मारा गया था (म. आ. ५२.१०)। | कृष्ण के द्वारा हुआ है (म. द्रो. १०..)। बलराम को ४. स्कन्द का एक सैनिक। कृष्ण का अभिन्न रूप माना जाता है। इसी अर्थ से यह प्रमोदन--एक ब्रह्मर्षि (वा. रा. उ. ९०.५)। निर्देश महाभारत में किया गया होगा। प्रमोदिनी--संगित नामक गंधर्व की कन्या (पन. प्रलंबक--एक ऋषि, जो तप नामक शिवावतार का उ. १२८)। शिष्य था। प्रम्लोचा--दस प्रमुख अप्सराओं में से एक, जो प्रलंबायन-एक ऋषिगण, जो वसिष्ठकुलोत्पन्न अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित थी (भा. १२.११.३७; | गोत्रकारों में से एक था। म. आ. ११४.५४; स. १०.११)। प्रवसु- (सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो ईलिन २. एक अप्सरा, जिसे इन्द्र ने कण्ड ऋषि के तपोभंग | राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम रथंतरी था। के लिए भेजा था। इसकी कन्या का नाम मारिषा था, | इसे निम्नलिखित चार भाई थे:--दुष्यंत, शूर, भीम, जिसे सोम तथा वृक्षों ने पालपोस कर बड़ा किया, एवं | तथा वसु (म. सा. ८ | तथा वसु (म. सा. ८९. १४-१५)। . प्रचेतमों को विवाह में प्रदान किया (भा. ४.३०.१३)। । प्रवहण-उत्तम मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक। प्रयस्वत आत्रेय--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५. २. तामस मन्वन्तर के योगवर्धनों में से एक। २०)। प्रवालक-कुबेर की सभा का एक यक्ष (म. स. : प्रयुत--एक गन्धर्व, जो कश्यप एवं मुनि का पुत्र था | १०.१७)। . (म. आ. ५९.४२)। प्रवाह-स्कंद का एक सैनिक (म.श. ४४.६५)। प्रयोग भार्गव-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.८.१०२ प्रवाहक--एक ऋषि, जो दंडीमुंडी नामक शिवावतार तै. सं. ५.१.१०.२; क. सं. १९.१०)। का शिष्य था। प्ररुज--अमृत की रक्षा करनेवाला एक देव, जिसका प्रवाहण जैवाल-पांचाल देश का एक राजा, जो गरुड़ से युद्ध हुआ था (म. आ. २८.१९)। दार्शनिक शास्त्रार्थों में प्रवीण था (बृ. उ. ६.१.१.७, २. राक्षसों तथा पिशाचों का एक दल, जो रावण के | माध्यः छां. उ. १.८.१: ५.३.१)। यह उद्दालक राजा पक्ष में शामिल था (म. व. २६९.२)। का समकालीन था। सम्भवतः जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण प्रलंब--एक राक्षस, जो कश्यप तथा दनु के पुत्रों में में निर्दिष्ट 'जैवलि' इसीका नामांतर है । जीवल का वंशज से एक था (म. आ. ५९.२८)। देवासुर संग्राम में जब होने के कारण, इसे 'जैवलि' अथवा 'जैवल' उपाधि पराजित हुआ था, तब यह उसके विरोध में राक्षसपक्ष | प्राप्त हुयी होगी। की ओर का एक सेनापति था (म. स. परि. १; क्र. यह परम विद्वान् एवं ज्ञानी होने के साथ, तत्वज्ञान का २१)। महापंडित भी था । एक बार इसने अपने पांचाल राज्य में २. एक असुर, जिसे कंस ने कृष्णवध के लिए | तत्वज्ञान परिषद् का आयोजन किया । वहाँ तत्वचर्चा में गोकुल भेजा था। गोकुल में गोपवेष धारण कर, यह इसे पराजित करने के उद्देश्य से, श्वेतकेतु आरुणेय कृष्ण बलराम आदि गोपों के साथ खेलने लगा। खेल | उस परिषद में आया। किन्तु राजा के द्वारा पूँछे गये के बीच में, कृष्ण की अजेय शक्ति का अनुमान लगा कर पाँच प्रश्नों में से एक का भी उत्तर वह न दे सका । पराजित । इसकी हिम्मत कृष्ण से बोलने की न हुयी। इसी कारण होकर वह अपने घर गया, तथा ज्ञान शिक्षा देनेवाले अपने ४७६
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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