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________________ प्राचीन चरित्रकोश प्रजापति २. सम के पक्ष का एक वानर, जिसने संपाति नामक | जन्म (जात) हुआ है। यह श्वास लेनेवाले समस्त राक्षस का वध किया (वा. रा. यु. ४३)। गतिशील जीवों का राजा है। यही सब देवों में श्रेष्ठ है। प्रजन–(सो. ऋक्ष.) एक राजा, जो मत्स्य के | इसी के विधानों का सभी प्राणी पालन करते हैं। यही अनुसार कुरु राजा के पाँच पुत्रों में से कनिष्ठ था। | नहीं, इसका यह विधान देवताओं को भी मान्य है। प्रजा-एक ब्राह्मण, जो पूर्वजन्म में 'भिल' था। इसने आकाश तथा पृथ्वी की स्थापना की है, यही अपने व्याध योनि में, इसने श्रीविष्णु के पूजा के लिये | अन्तरिक्ष के स्थानों में व्याप्त है, तथा समस्त विश्व तथा कमल के फूल एकत्र कर, एक ब्राह्मण को प्रदान किये। समस्त प्राणियों को अपनी भुजाओं से अलिंगन करता है। इस पुण्यकर्म के कारण, अगले जन्म में इसे शुचिर्भूत अथर्ववेद तथा वाजसनीय संहिता में साधारणतया, ब्राह्मणकुल में जन्म प्राप्त हुआ (पद्म. क्रि. १३)। ब्राह्मण ग्रन्थों में नियमित रूप से, इसे सर्व प्रमुख प्रजागरा-एक अप्सरा, जिसने इंद्रसभा में संपन्न देवता माना गया है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार, यह हुए अर्जुन के स्वागतसमारोह में नृत्य गायन किया था | देवों का पिता है (श. ब्रा. ११.१.६ ते. ब्रा. ८.१.३)। (म. व. ४४.३०)। सृष्टि के आरम्भ में अकेले इसी का अस्तित्व था ( श. ब्रा. प्रजाति--स्वायंभुव मन्वंतर के जिंत देवों में से एक।। २.२.४ ), एवं यह पृथ्वी का सर्वप्रथम याशिक था (श. २. मनु के पुत्रों में से एक। इसके पुत्र का नाम क्षुप ब्रा. २.४.४, ६.२.३)। देवों को ही नहीं, वरन् असरों था (म. आश्व. ४.२)। इसके नाम के लिये "प्रसंधि' को भी इसीने बनाया था (ते. ब्रा. २.२.२)। पाठभेद भी उपलब्ध है। ___ सूत्रों में, इसे ब्रह्मा के साथ समीकृत किया गया है प्रजादर्प--एक मध्यमाध्वर्यु । (आश्व. गृ. ३.४)। 'वंशब्राह्मण' में इसे ब्रह्मा का शिष्य कहा गया है, एवं इसके शिष्य का नाम मृत्यु कहा प्रजानि--(सू. दिष्ट.) एक राजा । विष्णु एवं वायु। गया है (वं. वा. २)। ऋग्वेद के कई सूक्तों का यह के अनुसार यह प्रांशु राजा का पुत्रं था। भागवत में इसे मन्त्रद्रष्टा भी है (ऋ. ९.१०१.१३-१६)। 'प्रमति' कहा गया है। २. प्रांशुपुत्र प्रजाति राजा का नामांतर। इसके पुत्र का | सर्वप्रमुख देवता-उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में, नाम खनित्र था (मार्क. ११४.७-८) इसे सर्वप्रमुख देवता के स्थानपर प्रतिस्थापित किया गया प्रजापति--एक वैदिक देवता, जो संपूर्ण प्रजाओं का | है। उपनिषदों के दर्शनशास्त्र में इसे 'परब्रह्म' अथवा स्रष्टा माना जाता है। महाभारत एवं पुराणों में निर्दिष्ट । 'विश्वात्मा' कहा गया हैं । तत्वज्ञान के संबंध में जब कभी 'ब्रह्मा' देवता से इस वैदिक देवता का काफी साम्य है, किसी प्रकार की शंका उठ खड़ी होती थी, तब देव, दैत्य, एवं ब्रह्मा की बहुत सारी कथाएँ इससे मिलती जुलती हैं | एवं मानव प्रजापति के पास आकर अपनी शंका का .(ब्रह्मन् देखिये)। | समाधान करते थे (ऐ. ब्रा. ५.३; छां. उ. ८.७.१; . ऋग्वेद के दशम मण्डल में चार बार प्रजापति का नाम श्वेत. उ. ४.२)। एक देवता के रूप में आया है। देवता प्रजापति को बहुत | ऋग्वेद, ब्राह्मण एवं उपनिषद् ग्रन्थों में प्रजापति को सन्तानों 'प्रजाम् ' को प्रदान करने के लिये आवाहन किया । प्रायः देवता के रूप में माना गया है। लेकिन, इन्ही ग्रन्थों गया है (ऋ. १०.८५.४३)। विष्णु, त्वष्ट्र तथा धातृ के | में कई स्थानों में इसे अन्य रूपों में भी निरूपित किया साथ इसकी भी सन्तान प्रदान करने के लिए स्तति की | गया है। गयी है (ऋ. १०.१८४)। इसे, गायों को अत्यधिक | ऋग्वेद में एक स्थानपर, प्रजापति उस 'सवितृ' की दुग्धवती बनानेवाला कहा गया है (ऋ. १०.१६९)। | उपाधि के रूप में आता है, जिसे आकाश को धारण इसकी प्रशस्ति में ऋग्वेद का एक स्वतंत्र सूक्त है, | करनेवाला, एवं विश्व का प्रजापति कहा गया है (ऋ. ४. जिसमें इसे पृथ्वी का सर्वोच्च देवता कहा गया है (ऋ. | ५३)। दूसरे एक स्थानपर इसे सोम की उपाधि के रूप १०.१२१)। इस सूक्त में, आकाश एवं पृथ्वी, जल | में प्रस्तुत किया गया है (ऋ. ९.५)। ब्राह्मण एवं उपनिषद एवं सभी जीवित प्राणियों के स्रष्टा के रूप में इसकी स्तुति | ग्रंथों में, प्रजापति शब्द, विभिन्न अर्थोसे प्रयुक्त किया गया की गयी है, तथा कहा गया है, पृथ्वी में जो कुछ भी | है, जिनमें से कई इस प्रकार है:-यज्ञ, बारह माह, वैश्वाहै, उसके अधिपति (पति) के रूप मे प्रजापति का । नर, अन्न, वायु, साम, एवं आत्मा । इससे प्रतीत होता ४६१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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