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________________ पौंड्रक वासुदेव प्राचीन चरित्रकोश पौरव बडी उन्मत्तता से भगवान कृष्ण को इसने संदेशा भेजा, | पौति मत्स्यक-एक राजा, जिसे भारतीय युद्ध में 'पृथ्वी के समस्त लोगों पर अनुग्रह कर उनका उद्धार | पांडवो की ओर से रणनिमंत्रण भेजा गया था (म. उ. करने के लिये, मैंने वासुदेव नाम से अवतार लिया है।। ४. १७)। भगवान् वासुदेव का नाम एवं वेषधारण करने का पौतिमाषीपूत्र-काण्वशाखा के बृहदारण्यक उपनिषद अधिकार केवल मेरा है। इन चिह्नोंपर तेरा कोई भी में निर्दिष्ट एक आचार्य (बृ. उ. ६.५.१)। संभवतः यह अधिकार नहीं है। तुम इन चिह्नों को एवं नाम को | 'पूतिमाष' के किसी स्त्रीवंशज का पुत्र होगा। इसके तुरन्त ही छोड़ दो, वरना युद्ध के लिये तैयार हो जाओ।' गुरु का नाम कात्यायनीपुत्र था। इसकी यह उन्मत्त वाणी सुनकर, कृष्ण अत्यंत क्रुद्ध | पौतिमाष्य--काण्व शाखा के बृहदारण्यक उपनिषद हआ, एवं उसने इसे प्रत्युत्तर भेजा, 'तेरा संपूर्ण विनाश | में निर्दिष्ट एक आचार्य (बृ. उ. २.६.१, ४.६.१ )। करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करुंगा'। संभवतः यह 'पूतिमाष' का पुत्र या वंशज होगा। इसके यह सुनकर, पौंड्रक कृष्ण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी | गुरु का नाम गौपवन था। शुरू करने लगा। अपने मित्र काशीराज की सहायता प्राप्त पौतिमाष्यायण-एक आचार्य, जो कौडिन्यायन करने के लिये यह. काशीनगर गया। यह सुनते ही | एवं रैभ्य नामक आचार्यों का गुरु था। संभवतः यह कृष्ण ने ससैन्य काशिदेश पर आक्रमण किया। कृष्ण | 'पौतिमाष्य' का वंशज होगा। आक्रमण कर रहा है यह देखकर, पौंड्रक स्वयं दो | पौत्रायण-एक उदार दाता, जिसका पैतृक नाम अक्षौहिणी सेना लेकर बाहर निकला। काशिराज भी | जानश्रुति था (छां. उ. ४.१.१; जानश्रुति देखिये)। तीन अक्षौहिणी सेना लेकर इसकी सहायता करने पौत्रि--अत्रिकुल का एक प्रवर । आया । युद्ध के समय पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, शाङ्ग धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मौल्यवान् । पौर--एक पूरु राजा, जिसकी सहायता इंद्र ने की आभूषण आदि धारण किया था, एवं यह गरुड़ पर थी। रुम एवं रुशम राजाओं के साथ, ऋग्वेद में इसका . आरूढ था। इस नाटकीय ढंग से, युद्धभूमि में प्रविष्ट भी निर्देश प्राप्त है (ऋ. ८.१३.१२)। सिकंदर का हुए इस 'नकली कृष्ण' को देखकर भगवान कृष्ण को | प्रतिद्वंदी राजा पौरव (पूरोस) संभवतः यही होगा (ऋ अत्यंत हँसी आयी। पश्चात् इसका एवं इसके परिवार के | ५.७४.४)। लोगों का वध कर, कृष्ण द्वारका नगरी वापस गया । । २. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। काशिपति के पुत्र सुदक्षिण ने अभिचार से कृष्णपर हमला | ३. (सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो मत्स्य के किया, जिसे कृष्ण ने पराजित किया ( भा. १०.६६)। | अनुसार, पृथुसेन राजा का पुत्र था। पद्मपुराण के अनुसार, पौंड्रक वासुदेव एवं इसके मित्र | पौर आत्रेय-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.७३काशिराज, दोनों एक ही व्यक्ति थे, एवं इसका और कृष्ण | ४७)। का युद्ध द्वारका नगरी में संपन्न हुआ था। इसने शंकर की | पौरव-एक राजा. जो शरभ नामक दैत्य के अंश से घोर तपस्या कर, वरदान प्राप्त किया था, 'तुम कृष्ण | उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.२८)। इसका सही नाम के समान होगे' । युद्ध में कृष्ण ने इसका शिरच्छेद किया, | 'विष्वगश्व' एवं कुलनाम पौरव था। यह पर्वतीय देश एवं इसका सर काशी नगरी की ओर झोंक दिया। का राजा था, एवं युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, दण्डपाणि नामक इसक पुत्र न एक कृत्या कृष्ण पर छाड़ | अर्जुनद्वारा पराजित हुआ था (म. स. २४.१३)। दी। कृष्ण ने अपने सुदर्शनचक्र के द्वारा उस कृत्या एवं | भारतीय युद्ध में, एक महारथि के नाते, यह दुर्योधन दण्डपाणि का वध किया, एवं काशीनगरी को जला कर के पक्ष में शामिल था (म. उ. १६४.१९)। चेदिराज भस्म कर दिया (पद्म. उ. २७८)। धृष्टकेतु के साथ इसका द्वंद्वयुद्ध हुआ था (म. भी. ११२. पौतऋत-ऋग्वेद में निर्दिष्ट दस्यवें वृक राजा | १५)। पश्चात् इसका अभिमन्यु के साथ युद्ध हुआ, नामान्तर। दस्यवे वृक की माता का नाम संभवतः | जिसमें अभिमन्यु ने इसके केश पकड़कर इसे घसीटा था पूतकता था, इस कारण इसे यह नाम प्राप्त हुआ हो (म. क. ४.३५)। इसके पुत्र का नाम दमन था (म. (क्र. ८.५६.१) । पृषध्र के सूक्त में इसका निर्देश प्राप्त है। भी. ५७.२० । प्रा. च. ५८] ४५७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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