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पौरव
प्राचीन चरित्रकोश
पौलोमी
२. पूरुकुल का दानवीर राजा, जिसका निर्देश महा- पौलकायनि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। भारत में 'षोडष-राजकीय' उपाख्यान में किया गया ।
पौलस्त्य--पुलस्त्य ऋषि के पुत्र विश्रवस् ऋषि का । है (म. द्रो. परि. १, क्र.८; पंबित ३८४)। सुंजयराजा पैतृक नाम (१ पुलस्त्य देखिये)। के अश्वमेध में, नारद ने इसका जीवनचरित्र कथन
। २. पुलस्त्यकुल के राक्षस, जो दुर्योधन के भाइयों के किया था।
रूप में पुनः उत्पन्न हुए थे (म. आ. ६१.८२)। ३. पांडवों के पक्ष का एक राजा, जिसका अश्वत्थामा ने
३. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। रथशक्ति फेंक कर वध किया था (म. द्रो. १७१-६४)।।
४. अगस्त्यकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ४. विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक (म. अ.
के ब्रह्मवादा पुत्रा म स एक (म. अ. ५. भौत्य मनु के पुत्रों में से एक । ४.५५)।
पौलह-नक्षसावर्णि मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । पौरवक--एक क्षत्रियजाति, जिसके लोग युधिष्ठिर के साथ क्रौंचव्यूह में खडे थे (म. भी. ४६.४७)।
२. अगस्त्यकुलोत्पन्न एक गोत्रकार, जो पुलह का दत्तक पौरची--- युधिष्ठिर की पत्नी, जिससे इसे देवक नामक !
पुत्र दृढ़ास्यु के वंश में उत्पन्न हुआ था (२ पुलह देखिये)। पुत्र हुआ था (भा. ९.२२.३०)।
३. पुलहकुल के राक्षस । २. वसुदेव की स्त्रियों में से एक (पश्न. स. १३)। पौलि-वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार। इसके निम्नलिखित पुत्र थे:-सुभद्र, भद्रवाह, दुमद, एवं पौलषि-सत्ययज्ञ नामक आचार्य का पैतृकनाम । भद्र (मा. १२.११.३५)।
| (श. ब्रा. १०.६.१.१)। 'पुलुष' का वंशज होने के पौरा--गाधि की माता पौरुकुत्सा का नामांतर (ब्रह्म. कारण, इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। जैमिनीय उप१०.२८; पौरुकुत्सा देखिये)।
निषद् ब्राह्मण में 'पौलुषित' पाठभेद प्रात है (जै. उ. . पौरिक--पुरिका नगरी का एक राजा, जिसे पाप के ब्रा. १.३९.१)। कारण सियार की योनि में जन्म प्राप्त हुआ था (म. पौलोम-पुलोमा नामक देव्यकन्या के पुत्रों के शां. १२२.३-५)।
लिये प्रयुक्त सामुहिक नाम (२ पुलोमा देखिये)। पौरुकुत्स-अंगिराकुल का मंत्रकार ।
ये हिरण्यपुर नामक नगरी के स्वामी थे (म. व. २. पूरुराजा त्रसदस्यु का पैतृक नाम ।
१७०.१२-६३; भा. ६.६.३५)। ब्रह्माजी ने इनकी पौरुकुत्सा-कान्यकुब्ज देश के गाधि राजा की माता
माता पुलोमा को दिये वर के कारण, ये अत्यंत उन्मत्त (रेणुका. ७)। इसे पौरा नामांतर भी प्राप्त है।
हो गये थे । फिर अर्जुन ने इनके साथ युद्ध कर, इनका पौरुकुत्सि--पूरुराजा त्रसदरयु का पैतृक नाम ।
संहार किया (म. स. १६९; पहा. स.६:२ निवातकवच पौरुकुन्स्य--पूरूराजा त्रसदस्यु का पैतृक नाम। देखिये।
पौरुशिष्टि--तपोनित्य नामक आचार्य का पैतृक नाम २. दक्षिण समुद्र के समीप स्थित पौलोमतीर्थ' में (त. उ. १.९.१; तै. आ. ७.८.१) । पुरुशिष्ट का वंशज ग्राह बन कर रहनेवाली एक अप्सरा । इसका एवं इसके होने के कारण, इसे यह नाम प्राप्त हुआ होगा। वर्गा नामक सखी का अर्जुन ने उद्धार किया था (म. आ.
पौरुषेय-ज्येष्ठ माह में सूर्य के साथ घूमनेवाला एक २०८.३ )। राक्षस (भा. १२.११.३५)।
पौलोमी-वारुणि भृगु ऋषि की पत्नी पुलोमा का २. यातुधान राक्षस का पुत्र । इसे निम्नलिखित पुत्र नामांतर (विष्णु. ७.३२, पुलोमा देखिये)। इसे भृगु थ:- ऋर, विकृत, रुधिराद, मेदाश एवं वपाश (ब्रह्मांड. ऋषि से च्यवन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (ब्रह्मांड, ३. ३.७.९४)।
१.७४-१००; भृगु देखिये)। पौर्णिमास-अगस्य कल का गोत्रकार ।
___२. पुलोमा नामक असुर की कन्या, जिसे 'शची' २. (आंध्र. भविष्य) आंध्रवंशीय पूर्णोसंग राजा का नामांतर भी प्राप्त है (शची देखिये)। शची पौलोमी का नामांतर(पूर्णोत्संग देखिये)।
निर्देश एक ऋग्वेद सूक्त की द्रष्टीके रूप में प्राप्त है (ऋ. पौर्णिमागतिक--भृगुकुल का गोत्रकार 'पुर्णिमा- १०.१५९)। यह देवराज इंद्र की पत्नी थी, जिससे इसे गतिक' के लिये प्रयुक्त पाठभेद ।
| जयंत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (म. आ. १०६.४)।