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प्राचीन चरित्रकोश
पैठीनसि
था (ऋ. १११७.९, ११८.९,११९.१०:१०.३९.१०) के ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में इसका उल्लेख है। पौर्णिमा इष्टि एक निकृष्ट अश्व को बदलने के लिए अश्विनियों ने इसे | तथा आमवास्या इष्टि के विषय में पैंग्य तथा कौषीतकि के एक प्रथित अश्व प्रदान किया था। इसीलिये उस अश्व | मतों में विभिन्नता है (ऐ. बा.७.१०)। को 'पैद' कहा गया है (ऋ. ९. ८८. ४. अ. वे. १०. निदानसूत्र एवं अनुपदसूत्रों में इसके अनुगामियोंको . ४.५) । मैकडोनेल के अनुसार, 'पैद' अश्व सम्भवतः | 'पैंगिन' कहा गया है (निदा. ४.७; अनु. १.८)। सूर्य के अश्व का ही प्रतिनिधित्व करता है (वैदिक माइ- | इसके शिष्यों में चूड भागवित्ति प्रमुख था। थॉलॉजी पृ. ५२)।
ग्रन्थः- पैंग्य के नाम से निम्न लिखित ग्रन्थ प्राप्त है:पेरुक-एक वैदिक राजा, जो भरद्वाज का आश्रयदाता |
१. पैंग्यायन (नि) ब्राह्मण, जिसका निर्देश बौधायन था। भरद्वाज ने इससे धन प्राप्त किया था (ऋ. ६. ६३. |
श्रौतसूत्र में किया गया है (बौ. श्री. २.७; आ.
श्री. ५. १५.८;); २. पैंगलीकल्प, जिसका निर्देश जैन पैंगलायनि-भृगुकुलोत्पन्न एक ऋषि । 'पिंगल' के
शाकटायन की 'चिन्तामणिवृत्ति' में किया गया है
(चिंतामणि. ३. १.७५); ३. पैंगलोपनिषद, ४. पैंगिवंश में उत्पन्न होने के कारण, इसे 'पैंगलायनि' नाम |
रहास्य ब्राह्मण ५. पैंग्य स्मृति प्राप्त हुआ। . ..
२ एक ऋषि, जो युधिष्ठिर की सभा में उपस्थित था - पैगि-यास्क का पैतृक नाम (बेवर : इन्डिशे (म.स. ४.१५ )। पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'पैंग' स्टूडियन. १.७१)।
पैज-एक ऋषि, जो भागवत के अनुसार व्यास की पेंगीपत्र--एक ऋषि, जो शौनकीपुत्र का शिष्य था | ऋकशिष्य परंपरा के जातूकर्ण्य ऋषि का शिष्य था (वृ. उ. ६.४.३०, माध्य.)। 'पिंग' के किसी स्त्री
(व्यास देखिये)। वंशज का पुत्र होने के कारण ही, सम्भव है इसे 'पैंगी
पैजवन-सुदास राजा का पैतृक नाम। पिजवन का : पुत्र' नाम प्राप्त हुआ हो। .
पुत्र या पिजवन का वंशज, उन दोनों अर्थ से 'पैजवन' पैंग्य--एक तत्त्वज्ञ जो कौषीतकियों से सम्बद्ध ऋग्वेदिक | उपाधि प्रयुक्त हो सकती है। संभवतः दिवोदास एवं सुदास . परम्परा का गुरु, एवं याज्ञवल्क्य का शिष्य था (बृ. उ. ३. | के बीच में उत्पन्न कोई राजा का नाम पिजवन हो। . ७.११)। एक अधिकारी विद्वान् के रूप में, 'कौषीतकि | गेल्डनर के अनुसार, 'पैजवन' दिवोदास राजा की . ब्राह्मण' में अनेक बार इसका उल्लेख आया है (को. ब्रा. | उपाधि थी, एवं दिवोदास सुदास राजा का पिता था
८.९, १६.९) । 'कौषीतकि उपनिषद्' में इसे आचार्य | (ऋग्वेद ग्लॉसरी. ११५)। ..कहा गया है (कौ. उ. २. २.१)। आपस्तंब श्रौतसूत्र २. एक शुद्र, जिसने वेदों का अधिकार न होने के
में इसका उल्लेख 'पैंगायणी' नाम से किया गया है। कारण, 'ऐंद्राग्न' विधि से मंत्रहीन यज्ञ कर के, उसकी (आ. श्री. ५.१५.८)।
दक्षणा के रूप में एक लाख पूर्णपात्र दान किये थे (म. __शतपथ ब्राह्मण में, इसका नाम मधुक दिया गया है | शां. ६०.३४-३८)। __ एवं पैंग्य इसका पैतृक नाम बताया गया है (श. ब्रा. पैठक-एक असुर, जिसका श्रीकृष्ण ने वध किया
१२.२.२.४; ११.७.२.८)। 'पैंग्य' शब्द से एक | था (म. स. परि. १.२१.१५८२)। व्यक्ति को बोध होता है अथवा अनेक का, यह कहना | पैठीनसि--एक स्मृतिकार एवं 'पैठनसि धर्मसूत्र' असम्भव है।
नामक ग्रंथ का कतो । यद्यपि याज्ञवल्क्य स्मृति में इसका - इसके सिद्धान्त को पेंग्य-मत कहते ह (को. ब्रा ३. १. | उल्लेख प्राप्त नहीं है, फिर भी यह काफी प्राचीनकालीन १९.९)। प्रवर्तन के समान, यह भी प्राण को ब्रह्म | रहा होगा। माननेवाला था। काशिकाकार ने प्राचीन कल्पों की श्रेणी धर्मशास्त्रांतर्गत श्राद्धसंबंधी इसके द्वारा दी बहुत में पैगी तथा अरूणपराजी और नवीन कल्पों की श्रेणी में | सारी विधियाँ अथर्ववेद से मिलती जुलती है। अतः अश्मरथ को उद्धृत किया है। सांख्यायन ब्राह्मण में यह संभवतः अथर्ववेद परंपरा का रहा होगा। अनेक स्थानों पर यज्ञकर्मों में इसके मतों को स्वीकार 'स्मृतिचंद्रिका,' 'अपरार्क,' 'मिताक्षरा,' एवं किया गया है (सां. बा. २६.४)। आश्वलायन गृह्यसूत्र | अन्य कई में ग्रंथों में इसके मतों के उद्धरण प्राप्त है। .
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