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________________ प्राचीन चरित्रकोश पूर्णदंष्ट्र यह अपने पिता के सभी पुत्रों में कनिष्ठ था। किंतु | विभाग में समाविष्ट किये जाते हैं; २. (सो.ऋक्ष) अजमीढ इसने ययाति की जरावस्था लेकर उसे अपना तारुण्य | से लेकर कुरु तक के राजा इस विभाग में समाविष्ट होते प्रदान किया था (म. आ. ७०.४१) इस उदारता एवं | है; ३. (सो. कुरु)-कुरु से ले कर पांडवों तक के राज पितृभक्ति से प्रसन्न होकर, कनिषु होकर भी, ययाति ने | इस विभाग में आते हैं। इसे अपना समस्त राज्य दे दिया, एवं इसे 'सार्वभौम | पूरुवंश के अजमीढ राजा को नील, बृहदिषु एवं राज्याभिषेक' करवाया। इसके राज्याभिषेक के समय, | ऋक्ष नामक तीन पुत्र थे। इनमें से ऋक्ष हस्तिनापुर के सभाजनों ने दृढ़तापूर्वक कहा, 'जो पिता की आज्ञा का | राजगद्दी पर बैठा । नील एवं बृहदिषु ने उत्तर एवं पालन करता है वहीं उसका वास्तविक पुत्र है, एवं उसे ही | दक्षिण पांचाल के स्वतंत्र राज्य स्थापित किये। राज्याधिकार मिलना चाहिये। अन्त में ययाति के | ऋक्ष राजा के वंश में से कुरु राजा ने सुविख्यात कुरु आदेशानुसार, पूरु का राज्याभिषेक किया गया । इसके | वंश की स्थापना की । कुरु राजा को जह्न, परीक्षित् एवं अन्य भाइयों को भी राज्य प्रदान किये गये, पर अपने | सुधन्वन् नामक तीन पुत्र थे। उनमें से जह्न, कुरु राजा पिता का 'सार्वभौमत्त्व' पूरु को ही प्राप्त हुआ (भा. ९. का उत्तराधिकारी बना, एवं उसने हस्तिनापुर का कुरुवंश १९. २३)।सुविख्यात 'पूरुवंश' की स्थापना इसने की। आगे चलाया। सुधन्वन् का वंशज वसु ने चेदि एवं इस कारण इसे 'वंशकर' भी कहा गया है (म. आ. | मगध में स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की। परिक्षित् का ७०.४५)। पुत्र जनमेजय (दूसरा) ने गार्ग्य ऋषि के पुत्र का अपमान कालांतर में, विषयोपभोग से ऊबकर, ययाति ने पूरु किया, जिस कारण गार्ग्य ने उसे शाप दिया। उस शाप के का तारुण्य वापस कर दिया (ह. व. १. ३.३६; मत्स्य. | कारण, उसका एवं उसके श्रुतसेन, उग्रसेन एवं भीमसेन ३२; ब्रह्म. १२, वायु. ९३.७५, विष्णु. ४.१०-१६)। नामक पुत्रों का राज्याधिकार नष्ट हो गया। महाभारत में, पूरु को 'पुण्यश्लोक' राजा कहा गया ___ जह्न राजा का पुत्र सुरथ था सुरथ से ले कर अभिमन्यु है। यह मांसभक्षण का निषेध कर, परावर-तत्त्व का ज्ञान प्राप्त कर चुका था (म. अनु. ११५.५९) । यह तक की वंशावलि पुराणों एवं महाभारत में विस्तार तक यमसभा में रहकर यम की उपासना करता था (म. स.८.८)। से दी गयी है। · पुत्र-पूरु की कौसल्या तथा पौष्टी नामक दो पत्नियाँ २. अर्जुन का सारथि, जिसे राजसूय यज्ञ के लिये थी। कौसल्या से इसे जनमेजय, तथा पौष्टी से प्रवीर, । | अन्नसंग्रह के काम पर जुट जाने का आदेश मिला था (म. स. ३०.३०)। ईश्वर, तथा रौद्राश्व नामक पुत्र हुए। इसके पुत्रों में से जनमेजय वीर एवं प्रतापी था, अतएव वही इसके पश्चात् | ३.(स्वा. उत्तान.) एक राजा। यह चक्षुर्मनु की नड़वला से उत्पन्न पुत्रों में से ज्येष्ठ था। इसे 'पूरुष' राजगद्दी का अधिकारी हुआ (म. आ.९०.११)। । महाभारत में अन्यत्र, 'पौष्टी' कौसल्या काही नामांतर नामांतर भी प्राप्त था (भा. ८.५.७ ) भागवत में इसे माना गया है, एवं जनमेजय तथा प्रवीर एक ही व्यक्ति 'पुरु' भी कहा गया है (भा. ४.१३.१६)। मान कर प्रवीर को 'वंशकर' कहा गया है ( म. आ. ४. (सो. अमा.) एक राजा। भागवत के अनुसार ८९.५)। भागवत में प्रवीर को पूरु का नाती कहा गया यह जह्न का पुत्र था। इसे अज एवं अजमीढ नामांतर है (भा.९.२०.२)। भी प्राप्त थे। इसका पुत्र बलाकाश्व था। पूवंश-पूर ने सुविख्यात पूरुवंश की स्थापना की। पूरु आत्रेय-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ५.१६इसलिये इसके वंशज 'पौरव' कहलाते है, एवं उनकी | १७)। विस्तृत जानकरी आठ पुराणों एवं महाभारत में प्राप्त है। पूर्ण-वासुकि-कुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के (वायु. ९९.१२०; ब्रह्म. १३.२-८; ह. वं.१.२०.३१-३२, सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.५)। मत्स्य.४९.१; विष्णु. ४.१९; भा.९.२०-२१, अग्नि.२७८. २. एक देवगंधर्व, जो कश्यप द्वारा प्राधा (क्रोधा) १; गरुढ़.१.१३९; म. आ.८९-९०)। से उत्पन्न पुत्र था (म. आ. ५९.४५)। पूरुवंश के तीन प्रमुख विभाग माने जाते है :- १ पूर्णदंष्ट्र-एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रू का पुत्र (सो. पूर)-पूरु से लेकर अजमीढ तक के राजा इस | था (म. आ. ३१.१२)
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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