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पूर्णदं
२. कुबेर के अनुचरों में से एक ( दे. भा. १२.१० ) ३. गंधमादन पर्वत पर रहने वाले रत्नभद्र यक्ष का पुत्र ( स्कंद. ४.१.३२ ) । इसे हरिकेश ( पिंगल )
प्राचीन चरित्रकोश
नामक एक पुत्र था ।
इसका पुत्र हरिकेश शिवभक्त था, अतएव कुबेरभक्त पूर्णभद्र ने उसे घर से निकाल दिया। अन्त में शिव का कृपापात्र होकर हरिकेश, गणेश बन गया ( मत्स्य. १८० ) ।
स्कंदपुराण में, पूर्णभद्र को भी शिवभक्त कहा गया है। ४. मणिवर तथा देवजनी के 'गुह्यक' पुत्रों में से एक ।
पूर्णभद्र वैभांडकि-- एक पौराणिक ऋषि, जिसकी कृपा से चंप नामक राजा को हग नामक पुत्र हुआ था । यह चंप एवं उसके पुत्र हयैंग का आचार्य था। इसी कारण हयेंग के यज्ञ में यह इंद्र का ऐरावत लाया था (ह. वं १.३१.४९-५०; ब्रह्म. १३.४४; मत्स्य. ४८. ९८ ) । पूर्णमास - अगस्त्यकुल का एक गोत्रकार ( अगस्त्य देखिये) ।
२. भागवत के अनुसार, कृष्ण के कालिन्दी से उत्पन्न दस पुत्रों में से एक (भा. १०.६.१ )
३. बारह आदित्यों में से धातृ नामक आदित्य का पुत्र । इसकी माता का नाम अनुभति था (भा ६.१८.३) । ४. मणिवर तथा देवजनी के 'गुह्यक' पुत्रों में से एक । पूर्णमुख – धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था ( म. आ. ५२.१४ ) । पूर्णरसा - कृष्ण की प्राणसखी (पद्म. पा.७४) । पूर्णाश - एक देवगंधर्व, जो कश्यप तथा क्रोधा का
पुत्र था।
पूर्णांगद - धृतराष्ट्र कुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्प-सत्र में दग्ध हुआ था ( म. आ. ५२.१४ ) । पूर्णायु- -- एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं क्रोधा (प्राधा) का पुत्र था (म. आ. ५९.४५ ) ।
पूर्णिमत्-कर्दम प्रजापति की कला नामक कन्या के दो पुत्रों में से कनिष्ठ | वह मरीचि ऋषि का पुत्र था । इसके भाई का नाम 'पूर्णिमा' था । इसके विरंग तथा विश्वग नामक पुत्र, तथा देवकुल्या नामक एक कन्या थी ( भा. ४.१.१४)।
दो
पूषन
पूर्णात्संग -- (आंध्र. भविष्य) एक आन्ध्रवंशीय राजा । विष्णु के अनुसार यह शातकर्णिका, मत्स्य के अनुसार श्रीमल्लकर्णि का, तथा भागवत के अनुसार श्रीशांतकर्ण का' पुत्र था । भागवत में इसका 'पौर्णमास' नामांतर प्राप्त है । इसने अठ्ठारह वर्षों तक राज्य किया था ।
पूर्य -- कश्यपकुल का एक गोत्रकार ।
पूर्वचित्ति-स्वायंभुव मन्वंतर की एक अप्सरा, जिसकी गणना छः सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं में की जाती थी ( म. आ. ११४.५४ ) । अर्जुन के जन्ममहोत्सव में जिन दस अप्सराओं ने भाग लेकर, नृत्य प्रस्तुत किया था,
यह एक थी (म. आ. ११४.५४ ) । यह प्रियव्रतपुत्र अमीत्र राजा की पत्नी थी। इसे ब्रह्मदेव ने उसके पास भेजा था । अग्रीम से इसे कुल नौ पुत्र हुए, जिनके नाम इस प्रकार थे - नाभि, किंपुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्यक, हिरण्यमय, कुरु, भद्राश्वव तथा केतुमाला । इसके बाद यह पुनः ब्रह्मदेव के पास चली गयी ( भा. ५. २. ३-२० ) ।
मलय पर्वत पर शुकदेवजी की श्रेष्ठता को देखकर, यह. आश्चर्यचकित हो उठी थी, एवं श्रद्धावनत होकर इसने आदरभाव व्यक्त किया था ( म. शां. ३१९.२० ) ।
२. एक अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की कन्याओं में से एक थी । यह पूस के महीने में भग नामक सूर्य के साथ घूमती है (भा. १२. '११. ४२ ) । पूर्वपालिन् -- महाभारतकालीन एक राजा, जो भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था (म. उ. ४. १७ ) ।
पूर्वा - सोम की सत्ताइस पत्नियों में से एक । पूर्वा भाद्रपदा - सोम की सत्ता इस पत्नियों में से एक । पूर्वातिथि -- अत्रिकुलोत्पन्न एक प्रवरं एवं मंत्रद्रष्टा । पूर्वेन्द्र - - ' पूर्वकल्प' में पांडवों के रूप में उत्पन्न पाँच इन्द्र ।
पूषणा -- स्कंद की अनुचरी मातृका (म. श. ४५.२० ) । पूषन् ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक देवता, जो संभवतः सूर्यदेवता का नामांतर है । ऋग्वेदान्तर्गत आठ सूक्तों में, इस देवता का वर्णन प्राप्त है । इनमें से एक सूक्त में इन्द्र एवं पूषन् की स्तुति की गयी है, एवं दूसरे एक सूक्त में सोम एवं पूषन् को संयुक्त देवता मानकर उनकी स्तुति की गयी है ।
उत्तरकालीन वैदिककाल में इस देवता का निर्देश अप्राप्य है। इसकी महत्ता का वर्णन जहाँ वेदों में
पूर्णिमागतिक – भृगुकुल का एक गोत्रकार | कई ग्रंथों में, इसके नाम के लिए 'पौर्णिमागतिक ' - पाठभेद प्राप्त है ।
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