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________________ पूतना प्राचीन चरित्रकोश किन्तु वहाँ पुरुकुत्सकश्रवण २. स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श. ४५.१६)। था, एवं काले रंग के अनेक 'दास' लोगों पर उसने अन्य मातृकाओं के समान यह भी बालकों द्वारा पूजित है | विजय प्राप्त किया था (ऋ. ७. ५. ३)। काले रंग के (म. व. २१९.२६)। दासों से लड़नेवाला पुरुकुत्स राजा स्वयं गौर- . पूतिमाष-अंगिराकुल में उत्पन्न एक ऋषि । वर्णीय होगा। कई विद्वानों के अनुसार ऋग्वेद में प्राप्त पूरण वैश्वामित्र--विश्वामित्रकुल का एक गोत्रकार, | कृष्णवर्णीय दासों का यह वर्णन, भारतवर्ष के आदिसूक्तकार तथा प्रवर (ऋ. १०.१६०)। इसे 'पुराण' वासियों को लक्षित करता है । किन्तु इस संबंध में नामान्तर भी प्राप्त था। निश्चित रूप से कहना कठिन है । ऋग्वेद के अनुसार, महाभारत में एक ऋषि के रूप में इसका निर्देश प्राप्त पुरूकल्स के पुत्र त्रसदस्यु का जन्म अत्यंत दुरवस्थ काल है (म. शां. ४७.६६, पंक्ति ११*) । किन्तु वहाँ इसके में हुआ था (ऋ. ४. ४२. ८-९)। दाशराज्ञ युद्ध में नाम का निर्देश 'पूरण' नाम से तो किया गया है, पर पुरुकुत्स राजा की मृत्यु हो गयी थी। वहाँ इसकी 'वैश्वामित्र' उपाधि का कोई भी उल्लेख प्राप्त पूरुवंश के 'कुरूश्रवण त्रासदस्यव ' नामक एक राजा नहीं है। का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. १०. ३३. ४)। दाशराज्ञ युद्ध के पश्चात् , तृत्सु, भरत एवं पूरु जातियों पूरु-ऋग्वेदकालीन एक जातिसमूह । अनु, द्रुहथु, में मित्रता स्थापित हुयी, एवं इन तीन जातियों को मिला . तुर्वसु, एवं यदु लोगों के साथ, इनका निर्देश ऋग्वेद में कर 'कुरु जाति' की स्थापना की गयी । कुरु जाति का . प्राप्त है (ऋ. १.१०८.८)। प्रत्यक्ष निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त नहीं है, किंतु कुरुश्रवण । ' दाशराज्ञ युद्ध में, सुदास राजा के हाथों पूरु लोगों को त्रासदस्यव राजा के निर्देश से इस मित्रता का अप्रत्यक्ष पराजित होना पड़ा (ऋ. ७. ८. ४)। ऋग्वेद के एक प्रमाण मिलता हैं । सुदास, पौरुकुत्सि, त्रसदस्यु, एवं पूरु । सूक्त में, पूरु लोगों के एक राजा का, एवं सुदास की पराजय इन सभी राजाओं का इंद्रद्वारा रक्षण किया जाने का । के लिए असफल रूप में प्रार्थना करनेवाले राजपुरोहित निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ. ७. १९. ३)। विश्वामित्र का निर्देश प्राप्त है (ऋ. ७. १८.३)। . वैदिक ग्रंथो में इसके नाम के लिए, सर्वत्र 'पूरु' यद्यपि दाशराज्ञ युद्ध में पूरुओं का पराजय हुआ, फिर भी ऋग्वेदकाल में ये लोग काफी सामर्थ्यशाली पाठ उपलब्ध है। केवल शतपथ ब्राह्मण में 'पुरु' पाठ प्रतीत होते हैं । इन लोगों ने अनेक आदिवासी लोगों पर प्राप्त है, एवं वहाँ पुरु की 'असुर रक्षस्' हा गया है विजय प्राप्त किया था (ऋ. १. ५९. ६; १३१. ४, ४. (श. ब्रा. ६. ८. १. १४)। पौराणिक ग्रंथों में से, २१. १०) तृत्सु एवं भरत जातियों से इन लोगों का केवल वायुपुराण में 'पुरु ' पाठ उपलब्ध है। अत्यंत घनिष्ठ संबंध था, एवं उन जातियों के साथ, पूरु | | २. 'पौरववंश' की स्थापना करनेवाला सुविख्यात लोग भी सरस्वती नदी के किनारे रहते थे (ऋ. ७. राजा, जो महाभारत के अनुसार, ययाति राजा के पाँच ९६.२)। पुत्रों में से एक था । ययाति राजा के शेष चार पुत्रों के नाम कई विद्वानों के अनुसार, पूरु लोग सर्वप्रथम | इसप्रकार थः- अनु, द्रुहयु, यदु एव तुवशु (म. आ. दिवोदास राजा के साथ सिन्धु नदी के पश्चिम में रहते १. १७२)। ययाति राजा' एवं उनके पाँच पुत्रों थे, और बाद को ये सरस्वती नदी के किनारे रहने लगे।| का निर्देश ऋग्वेद में भी प्राप्त है, किन्तु वहाँ ययाति सिकंदर को एक पौरव राजा 'उस हयदस्पीस' नामक एक ऋषि एवं सूक्तद्रष्टा बताया गया है, एवं अनु, ह्या स्थान के समीप मिला था (अरियन-इंडिका ८. ४)।। यदु, तुर्वशु तथा पूरु का निर्देश स्वतंत्र जातियों के नाते यह स्थान सरस्वती नदी एवं पश्चिम प्रदेश के बीच में से किया गया है। 'वैदिक इंडेक्स' के अनुसार, कहीं स्थित था। ऋग्वेद की जानकारी अधिक ऐतिहासिक है, एवं महाभारत पुरु लोगों के अनेक राजाओं का निर्देश ऋग्वेद में | तथा पुराणों में दी गयी जानकारी गलत है (वै. इ. प्राप्त है, जिससे इन लोगों का महत्व प्रस्थापित होता | २. १८७ )। है । ऋग्वेद में प्राप्त पूरु राजाओं की वंशावलि इस प्रकार | महाभारत के अनुसार, यह ययाति राजा को शर्मिष्ठ है :-दुर्गह- गिरिक्षित- पुरुकुत्स- त्रसदस्यु । इन में | के गर्भ से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ७०.३१)। इसकी से पुरुकुत्स, तृत्सु लोगों का राजा सुदास का समकालीन | राजधानी प्रतिष्ठान नगर में थी।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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