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________________ प्राचीन चरित्रकोश पुण्य | पुण्य ( इ. ) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा स, भागवत एवं वायु के अनुसार, यह हिरण्यनाथ राजा का पुत्र था। वायु एवं विष्णु में इसे 'पुष्प' कहा गया है। इसके पुत्र का नाम था (वे. मा. २०१४ ) । पुष्यश्रवस् -- एक विष्णुभक्त ऋषि । विष्णुभक्ति के कारण, कृष्णावतार में इसने नंद के भाई के यहाँ ' लवंगा ' नामक कन्या के रूप में जन्म लिया था ( पद्म. पा. ७२)। पूजनी - कांपिल्य नगर के ब्रह्मदत्त राजा के भवन में निवास करनेवाली एक चिड़िया (म. शां. १३७.५) यह समस्त प्राणियों की बोली समझती थी, तथा सर्वज्ञ और सम्पूर्ण तच्चों को जाननेवाली थी। राजकुमार सर्वसेन ने इसके बच्चे मार डाले थे, अतएव इसने भी उसकी आँखें फोड़ दी थीं (म. शां. १३७.१७ ) । पश्चात् इसने राजभवन छोड़ना चाहा। राजा ब्रह्मदत्त ने इससे रहने के लिए आग्रह किया, किन्तु इसने राजा की प्रार्थना अस्वीकार कर दी। राजभवन छोड़ते समय इसका एवं ब्रह्मदत्त का तत्वज्ञान सम्बन्धी संवाद हुआ था (म. शां. १३७.२१-१०९; ब्रह्मदत्त देखिये ) । पूतक्रता--ऋग्वेद के 'बासिस्य सूक्त में निर्देशित • एक स्त्री, जो संभवतः पूत राजा की पत्नी थी (ऋ. १. ५६.४) । पाणिनि के व्याकरण के अनुसार, इस शब्दका रूप 'पूतक्रतायी था (पा. ४.१.३६ ) पूतक्रतु - एक वैदिक राजा, जो अश्वमेध राजा का पुत्र था (ऋ. ८.६८.१७ ) | कई विद्वानों के अनुसार, अतिथिग्य इंद्रोत, अश्वमेध तथा पूतक्रतु सम्भवतः एक ही व्यक्ति के नाम थे। सायण के अनुसार, पूतक्रतु किसी स्वतंत्र व्यक्ति का नाम नहीं था। इसके पुत्र का नाम दस्यवृकथा (ऋ. ८.५६.२)T पूतना दूध के साथ इसके प्राणों को भी चूसना शुरू कर दिया। पूतना वेदना में व्याकुल होकर तड़पने लगी, और प्राण त्याग दिये ( म. स. परि. १ क्र. २१. पंक्ति ७५९; भा. १०.६ पद्म.. १३ विष्णु. ५.५. महावे. ४.१० ) । हरिवंश के अनुसार, यह कंस की दाई थी। इसने पक्षिणी का रूप धारण कर, गोकुल में प्रवेश किया था। दिनभर आराम कर, रात में सब के सो जाने पर, कृष्ण के मुख में दूध पिला कर मारने के हेतु से, इसने अपना स्तन दिया। कृष्ण ने दूध के साथ, इसके प्राणों का शोषण कर, इसका वध किया (ह. व. २.६ ) आदिपुराण के अनुसार, यह कैतवी नामक राक्षस की कन्या, एवं स राजा की पत्नी की सखी थी। इसकी चहन का नाम वृकोदरी था । कंस के आदेशानुसार गोकुल में जाकर, दस बारह दिन के आयुवाले बच्चो को कालकूटयुक्त स्तन के दूध को पिला कर इसने उनका नाश किया। बाद में जब कृष्ण को मारने की इच्छा से यह उनके पर गयी, तो कृष्ण ने इसका वध किया (आदि. १८) । पूर्वजन्म में यह बलि राजा की कन्या थी, और इसका नाम रत्नमाला था । बलि के यज्ञ के समय, वामन भगवान् को देखकर इसकी इच्छा हुयी थी कि, सामन मेरा पुत्र हो, और इसे मैं अपना स्तनपान करावें। इसकी यह इच्छा जान कर, वामन ने कृष्णावतार में कृष्ण के रूप में इसका स्तनपान कर, इसे मुक्ति प्रदान किया था ( ब्रह्मवै. ४.१० ) । इसे राक्षसयोनि क्यों प्राप्त हुयी इसकी कथा आदि पुराण में इस प्रकार दी गयी है। एक बार कालभीरु ऋषि अपनी कन्या चारुमती के साथ कहीं जा रहे थे कि, उन दोनों ने सरस्वती के तट पर तपस्या करते हुये कक्षीवान् ऋषि को देखा । कक्षीवान के स्वरूप को देखकर, एवं उसे योग्य वर समझकर, कालभीरू अपनी पुत्री चारुमती को शास्त्रोक्त विधि से उसे अर्पित की। बाद में, कक्षीवान् तथा चारुमती दोनों मुखपूर्वक रहने लगे। एकवार कक्षीवान् तीर्थयात्रा को गया था। इसी बीच एक शूद्र ने चारुमती को अपने वंश में कर लिया । आते ही कक्षीवान् को अपनी पत्नी का दुराचरण ज्ञात हुआ, तथा उन्होंने उसे राक्षसी बनने का शाप दिया । चास्मती के अत्यधिक अनुनयविनय करने पर पक्षीवान् ने कहा, 'जाओ, कृष्ण के द्वारा ही तुम्हें मुक्तिं प्राप्त होगी । पूतदक्ष आंगिरस - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८. ९४ ) । पूतना एक राक्षसी, जो कंस की बहन, एवं घटोदर राक्षस की पत्नी थी । कंस ने इसे श्रीकृष्ण का वध करने के लिये गोकुल भेजा था । गोकुल में यह नवतरुणी स्त्री का रूप धारण कर, अपने स्तनों में विष लगाकर, वहाँ के बच्चों को अपने स्तन से दूध पिलाकर उनका वध करने लगी। इस प्रकार गोकुल्याम के न जाने कितने बालकों की जान लेकर, श्रीकृष्ण की भी इसी भाँति मारने की इच्छा से, एक दिन यह नंद के घर गयी। इसने अपने स्तनों में श्रीकृष्ण को लगाया ही था, कि बालक कृष्ण ने । ४४३ कक्षीवान् ऋषि के उपर्युक्त शाप के कारण, चारुमती को पूतना राक्षसी का जन्म प्राप्त हुआ (आदि. १८ ) ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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