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पुरंजय
प्राचीन चरित्रकोश
पुरुकुत्स
६. (भविष्य) मागधवंशीय विश्वस्फूर्ति राजा का | राजा । मत्स्य के अनुसार, यह मदुलक का पुत्र था। इसे नामांतर | पापबुद्धि होकर भी यह अति पराक्रमी था। पुत्रिकरण नामान्तर मी प्राप्त है (पुत्रिकर्षण देखिये)। इसकी राजजधानी पद्मावती नगरी थी। गंगाद्वार से
पुरीमत्-आंध्र. भविष्य.) एक आंध्रवंशीय राजा प्रयाग तक का सारा प्रदेश इसके राज्य में शामिल था।
भागवत के अनुसार, यह गोमतीपुत्र का पुत्र था । इसे इसने 'वर्णाश्रम व्यवस्था' को नष्ट कर, पुलिंद, यदु |
'पुलीमत् ' एवं 'पुलोम' नामांतर भी प्राप्त थे । तथा मद्रक नामक नये वर्ण स्थापित किये (भा. १२.१.
परीषभीरु-(आंध्र. भविष्य.) एक आंध्रवंशीय ३६-४०)। पुराणों में दी गयी वंशावली में इसका नाम अप्राप्त है।
राजा । भागवत के अनुसार, यह तलक का, एवं ब्रह्मांड
के अनुसार, यह पंचपत्तलक का पुत्र था। इसे 'पुत्रिकपुरंदर-वैवस्वत मन्वन्तर के इन्द्र का नामांतर
पेण' नामान्तर भी प्राप्त है (पुत्रिकपेण देखिये )। (इन्द्र देखिये)। मत्स्य पुराण में निर्दिष्ट अठारह वास्तु
परीष्य--पंचचित नामक अग्नि का नामान्तर । यह शासकारों में पुरंदर का निर्देश प्राप्त है (मस्त्य. २५२.
विधाता नामक आठवें आदित्य को क्रिया नामक पत्नी से २-३)। अन्य वास्तुशास्त्रकारों के नाम इस प्रकार है:भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित्,
उत्पन्न हुआ था (भा. ६.१८.४)। विशालाक्ष, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग वासुदेव,
पुरु-एक प्राचीन क्षत्रिय नरेश, जो युधिष्ठर की शुक्र, बृहस्पति, अनिरुद्ध ।
सभा में उपस्थित था (४.२३ पाठ.)। महाभारत के अनुसार, भगवान् शिव ने धर्म, अर्थ, २. भागवत के अनुसार, वसुदेव एवं सहदेवा का पुत्र । एवं काम शास्त्र पर 'वैशालाक्ष' नामक एक ग्रन्थ की रचना | पुरुकुत्स--अंगिराकुल के कुत्स नामक उपगोत्रकार की, जिसकी अध्यायसंख्या कुल दस हज़ार थी। उस के तीन प्रवरों में से एक। एक मंत्रद्रष्टा के रूप में भी वृहद्ग्रन्थ का संक्षिप्तीकरण, आचार्य पुरंदर ने किया। इसका निर्देश प्राप्त है (अंगिरस् देखिये)। इसके इस ग्रन्थ का नाम 'बाहुदंतक' था, जिसमें पुरुकुत्स 'ऐक्ष्वाक'-(सू. इ.) पुरु देश का एक अध्यायों की संख्या पाँच सहस्र थी। संभवतः आचार्य
इक्ष्वाकुवंशीय राजा (श. बा. १३.५.४.५)। पुरंदरं की माता का नाम बहुदंती था। हो सकता है इसी
' सुविख्यात वैदिक राजा सुदास के समकालिन राजा के कारण, इसने अपने इस ग्रन्थ का नाम 'बाहुदंतक' रक्खा नाते से, इसका निर्देश ऋग्वेद में कई बार आया है (ऋ. हो (म. शां. ५९.८९-९०)।
१.६३.७)। संभवतः दाशराज्ञ युद्ध में सुदास राजा ने २. तप अथवा पांचजन्य नामक अग्नि का पुत्र । महान् | इसे पराजित किया था (ऋ. ७.१८ )। इस युद्ध में तपस्या के पश्चात् 'तप' अग्नि को 'तपस्याफल' की यह मारा अथवा पकड़ा गया था, जिसके बाद इसकी प्राप्ति हुयी। उसे प्राप्त करन के लिए, पुरंदर नाम से | पत्नी पुरुकुत्सानी ने 'पुरुओं' के भाग्य को लौटाने के स्वयं इंद्र ने अग्नि के पुत्र के रूप में जन्म लिया था (म. लिये, एक पुत्र की उत्पत्ति थी की। उस पुत्र का नाम व. २११.३)।
त्रसदस्यु था (ऋ. ४.४२.८); एवं उसे 'पौरुकुत्स्य' पुरांधि-वधिमती नामक एक वैदिक स्त्री का नामान्तर । (ऋ. ५.३३.८); तथा 'पौरुकुल्सि' (ऋ.७.१९.३), (ऋ. १.११६.१२)। अश्विनों ने इसे हिरण्यहस्त | नामांतर भी प्राप्त थे। नामक एक पुत्र प्रदान किया था।
दासों पर विजय पानेवाला पुरु राजा के नाम से, परय----एक वैदिक राजा। ऋग्वेद की एक दानस्तुति | पुरुकुत्स का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है (ऋ.६.२०.१०)। में इसका निर्देश प्राप्त है (ऋ. ६.६३.९)। भरद्वाज को | दिव्य अस्त्रों की सहायता से, यह अनेक युद्धों में इस के द्वारा अश्वों की प्राप्ति हुयी थी।
विजित हुआ (ऋ. १.११२.७; १४)। पुराण-काठकसंहिता में निर्दिध एक ऋषि का नाम | | ऋग्वेद में एक स्थान पर पुरुकुत्स को 'दौर्गह' (का. सं. ३९.७)
विशेषण लगाया गया है (ऋ. ४.४२.८)। इससे २. कुशिककुल का मंत्रकार । इसे 'पूरण' नामान्तर | प्रतीत होता है की, यह 'दुर्गह' का पुत्र या वंशज भी प्राप्त था।
था। किंतु 'सीग' के अनुसार, 'दौगह ' किसी अश्व का पद्रिसेन-(आंध्र, भविष्य.) एक आंध्रवंशीय | नाम हो कर, पुरुकुत्स के पुत्रप्राप्ति के लिये आयोजित
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