________________
पुनर्भव
प्राचीन चरित्रकोश
पुरंजय
प्राप्त हैं।
एक शृंगवंशीय राजा । मात्त्य के अनुसार यह वज्रमित्र | का उपदेश देते थे, एवं विद्वानों की सभाओं में भाग लेते राजा का पुत्र था।
थे। महर्षि भरद्वाज के द्वारा आयोजित एक 'वैद्यक-समा' पुनर्वत्स काप्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८. में यह उपस्थित थे।
शिष्य--आत्रेय के कुल छः शिष्य थे, जिनके नाम पुनर्वसु--(सो. कुकुर.) एक यादव राजा । भागवत | इस प्रकार थे:-अग्निवेश, भेल, जतूकर्ण, पराशर, हारीत के अनुसार यह दरिद्योत का, वायु तथा विष्णु के | तथा क्षीरपाणि (चरक. १.३०,३७)। अनुसार अभिजित का, तथा मत्स्य के मतानुसार नल या | ग्रन्थ--- इसका सुविख्यात ग्रन्थ 'आत्रेयसंहिता' है। नंदनोदरदुंदभि का पुत्र था। इसके आहुक तथा आहुकी | इस ग्रन्थ के अनेक हस्तलेख विभिन्न हस्तलेखसंग्रहों में नामक दो पुत्र थे। २. दक्ष की कन्या, जो सोम की पत्नी थी।
आजकाल प्रकाशित 'हारीतसंहिता' में पाँच विभिन्न पुनर्वसु आत्रेय --- एक प्राचीन आयुर्वेदाचार्य । चरक | 'आत्रेय संहिताओं' के निर्देश प्राप्त हैं, जिनकी श्लोकसंहिता के मूल ग्रंथ 'अग्निवेशतंत्र' के रचयिता अग्निवेश का | संख्या क्रमशः चौबीस हज़ार, बारह हज़ार, छः हजार, तथा उसके सहपाठी भेल आदि का यह गुरु था। तीन हज़ार एवं पंद्रह सौ दी गयी है।
यह ब्रह्मा के मानसपुत्र देवर्षि अत्रि का पुत्र था। आत्रेय के नाम पर लगभग तीस 'आयुर्वेदीय योग । आत्रेय शब्द से 'अत्रिपुत्र' 'अत्रिवंशज' एवं | उपलब्ध हैं । इनमें से 'बल तैल' एवं 'अमृताद्य तेल'.. 'अत्रि-शिष्यपरम्परा' का बोध होता है, किन्तु यहाँ का निर्देश चरक संहिता में प्राप्त है (चरक. चि. २८. 'आत्रेय' शब्द पुत्र-वाचक ही है। क्योंकि, चरकसंहिता | १४८-१५६; १५७-१६४)। में विभिन्न स्थानों पर इसके लिये 'अत्रिसुत', 'अत्रि
पुरंजन--एक प्राचीन राजा । स्वायंभुव मन्वन्तर के . नंदन' आदि का स्पष्ट निर्देश है (चरक. सू. ३.२९; | प्राचीनबर्हि राजा को ब्रह्मज्ञान का उपदेश देते समय, ३०.५०.)।
नारद ने इस राजा का निर्देश किया था (भा. ४.२५-". इसके पिता अत्रि ऋषि स्वयं आयुर्वेदाचार्य थे।| २९)। 'काश्यपसंहिता' के अनुसार, इन्द्र ने कश्यप,
पुरंजय--(सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा । इसे वसिष्ठ, अत्रि एवं भृगु ऋषियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी |
'इंद्रवाह' एवं 'ककुत्स्थ' नामांतर भी प्राप्त थे। थी। अश्वघोष के अनुसार, आयुर्वेद चिकित्सातंत्र का जो
२. (सो. अनु.) एक अनुवंशीय राजा । विष्णु, भाग अत्रि ऋपि पूरा न कर सके, उसे उसके पुत्र पुनर्वसु
मत्स्य, एवं वायु के अनुसार, यह संजय राजा का पुत्र आत्रेय ने पूर्ण किया (अश्वघोष- 'बुद्धचरित' १.
था । मत्स्य के अनुसार, इसे 'वीर' नामांतर भी प्राप्त ४३)।
था। इसकी माता का नाम चन्द्रभागा था, जिस कारण इसे 'चान्द्रभाग' अथवा चान्द्रभागी नामांतर भी
३. (सो. पूरु. भविष्य.) एक पूवंशीय राजा ।
मत्स्य के अनुसार, यह 'मेधावि ' राजा का पुत्र था। प्राप्त है (काश्यप. उपोद्घात पृ. ७७)। कृष्णयजुर्वेदीय होने के कारण इसे 'कृष्णात्रेय' भी कहते हैं (चरक.
४. एक नागवंशीय राजा । विष्णु के अनुसार, यह
किलकिला का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार यह मथुरा का सू. ११.६५)। अपने पिता अत्रि ऋषि तथा भरद्वाज ऋषि से आयुर्वेद
राजा था। इसके पिता का नाम विध्यशक्ति था। का ज्ञान प्राप्त कर, यह आयुर्वेदाचार्य बना। सामान्यतः ५. (सो. मगध. भविष्य.) मगध देश का एक राजा। यह भरद्वाज ऋषि का समकालीन माना जाता है । किन्तु भागवत के अनुसार, यह जरासंध के वंश का अंतिम एक तिब्बतीय कथा के अनुसार, सुप्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु
राजा था । इसके प्रधान का नाम शुनक था, जिसने जीवक की आयुर्वेदीय शिक्षा आचार्य आत्रेय द्वारा इसका वध कर 'प्रद्योत' नामक स्वतंत्र राजवंश की नींव तक्षशिला में हुयी थी।
डाली (भा. १२.१.२)। पुनर्वसु आत्रेय यायावर ऋषि थे, एवं इनके रहने का विष्णु में इसका नाम 'रिपुंजय' दिया गया है . कोई स्थान निश्चित न था। यह पर्यटन करते हुये आयुर्वेद (४. रिपुंजय देखिये)।
४३०