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पावकाक्ष
प्राचीन चरित्रकोश
पिंगल
पावकाक्ष-राम की सेना का एक वानर (वा. रा. व्याकरण है, किंतु उसमें वैदिक छंदों पर भी प्रकाश यु.७३६४)।
डाला गया है। पावन--भगवान् कृष्ण का मित्रविंदा नामक पत्नी से
| 'ऋक्प्रातिशाख्य' में उपलब्ध छंद विषयक जानकारी उत्पन्न पुत्र (भा. १०.६१.१६)
काफ़ी अधूरी है, इसी कारण पिंगल का 'छंदःशास्त्र' वेदांग । २. दीर्घतपस् ऋषि का कनिष्ठ पुत्र । इसके बड़े भाई |
का सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। का नाम 'पुण्य' था (पुण्य १, देखिये)।
इसमें वैदिक छंदों के साथ लौकिक छंदों पर भी प्रकाश ३. एक विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३०)।
डाला गया है। इस ग्रन्थ में आरंभ से चौथे अध्याय के पावमान्य--एक वैदिक मंत्रसंघ (ऐ. आ. २.२. सातवें सूत्र तक, वैदिक छंदों की जानकारी दी गयी है। २)। आश्वलायन लोगों के तर्पण में, इनका उल्लेख है। शेष अवशिष्ट ग्रन्थ में लौकिक छंदों की चर्चा की गयी
पाशद्युम्न वायत-वैदिककालीन एक राजा । पाश- है। इसी ग्रन्थ का एक संस्करण 'प्राकृतपिंगल' नाम द्युम्न राजा का 'वायत' पैतृक नाम है।
से प्रसिद्ध है, जिसमें प्राकृत के छन्दों की जानकारी दी - इसके द्वारा किये गये यज्ञ में, इन्द्र स्वयं उपस्थित | गयी है। 'प्राकृतपिंगल' का रचनाकाल १४ वीं शती हुआ था । किन्तु वसिष्ठ के कहने पर, इन्द्र इसके यज्ञ | माना जाता है। को त्याग कर, सुदास राज के यज्ञ में चला गया (क्र. ७. | पूर्वाचार्य-छन्दःशास्त्र के प्रवर्तक भगवान् शिव माने ३३.२)।
गये हैं । छन्दःशास्त्र की गुरुपरंपरा इस प्रकार दी पाशिन-(सो. करु.) धृतराष्ट्र के सौ पत्रों में से | गयी है:-शिव--बृहस्पति--दुश्च्यवन--इंदु-मांडव्य एक । भीमसेन ने इसका वध किया था (म. क. -पिगल। ६२.२-३)। . .
पिंगल के 'छन्दःशास्त्र' में निम्नलिखित पूर्वाचार्यों का पाप्यजिति-अंगिराकुल का एक गोत्रकार । निर्देश प्राप्त है :-- अग्निवेश्य, आंगिरस, काश्यप (७. पौषमजिति' इसी का पाठभेद है (पौषा जिति देखिये)।। ९), कौशिक ( ३.६६), क्रौष्टुकि (३.२९), गौतम : पिंग-अंगिराकुल का एक गोत्रकार |
(३.६६'), ताण्डिन् (३.३६), भार्गव (३.६६), .. पिंगल--एक छंदःशास्त्रज्ञ आचार्य एवं छंदःशास्त्र
माण्डव्य (७.३४), यास्क ( ३.३०), रात (७.३४), नामक सुविख्यात ग्रंथ का कर्ता ।
| वसिष्ठ ( ३.६६), सैतव (५.१८)। ___इसे पिंगलाचार्य या पिंगल नाग कहते थे (भट्ट हलायुध
२. कश्यप तथा कद्र से उत्पन्न एक नाग (म. आ. 'टीका)। कई विद्वानों के अनुसार, यह सम्राट अशोक का ' गुरु था। किन्तु 'पाणिनिशिक्षा' की 'शिक्षाप्रकाश' |
३. भृगुकुल का एक ऋषि । यह जनमेजय के सर्पसत्र नामक टीका के अनुसार 'छन्दःशास्त्र' का रचयिता पिंगल, |
में सदस्य था (म. आ. ४८.६ )। इसी नाम के एक और वैयाकरण पाणिनि का अनुज था (शिक्षासंग्रह पृ.
ऋषि का निर्देश महाभारत में अन्यत्र प्राप्त है (म. आ. ३८५) : कात्यायन के सुविख्यात वृत्तिकार षड्गुरुशिष्य
| ४८.७) । पाठभेद-'बोलपिंगल'। का भी यही मत है (वेदार्थदीपिका पृ. ९७ ) । अन्य
। ४. एक यक्षराज, जो भगवान शिव का सखा था। विद्वानों के अनुसार यह पाणिनि का मामा था। यह शिव की रक्षा के लिए श्मशानभूमि में निवास __छन्दःशास्त्र-छन्दःशास्त्र को छ: वेदांगों में से एक | करता था (म. व. २२१.२२)। गिना जाता है । पाणिनि के गणपाठ में छन्दःशास्त्र के ५. सूर्य के 'अठारह विनायक' नामक अनुचरों में छंदोविजिति, छंदोविचिति, छंदोमान तथा छंदोभाषा ये चार | से एक । सूर्य के द्वारा प्राप्त वरदान के बल पर, दैत्यों ने पर्याय प्राप्त हैं (ऋगयनादिगण ४.३.७३)। शेष पाँच | देवों को त्रस्त करना प्रारंभ किया। तब उन दैत्यों का - वेदांग इस प्रकार हैं, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त तथा संहार करने के हेतु, ब्रह्मादि देवों ने 'अठारह विनायक' ज्योतिष।
नामक सशस्त्र अनुचरों का एक दल सूर्य के पास तैनात छन्दःशास्त्रविषयक प्राचीनतम उपलब्ध ग्रन्थ किया। उनमें से पिंगल नामक अग्नि की योजना सूर्य के 'ऋक्यातिशाख्य' है। उस ग्रंथ का मुख्य विषय | दक्षिण दिशा में की गयी। यह अग्नि का वर्ण 'पिंगल' प्रा. च. ५३]
४१७
| ३१.९)।