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पार्वती
प्राचीन चरित्रकोश
पावक
उत्पन्न हुई। उसे पार्वती ने अपनी कन्या माना तथा पालक--(प्रद्योत. भविष्य.) एक राजा । यह प्रद्योत उसे वर दिया 'तुम सोमवंश के राजा नहुष की स्त्री होगी' राजा का पुत्र था । मत्स्य के अनुसार, इसने अट्ठाइस (अशोकसुंदरी देखिये)।
वर्षों तक, तथा वायु तथा ब्रह्मांड के अनुसार, चौबीस वर्षों इसके शरीर के मल से गजानन की उत्पत्ति हुयी। तक राज्य किया। शंकर से इसे कार्तिकेय नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। इसके पालकाप्य--एक वैद्यकाचार्य एवं 'हत्यायुर्वेदसंहिता' अतिरिक्त बाण तथा वीरभद्र को इसने अपने पुत्र माने । नामक मविख्यात ग्रन्थ का रचयिता । प्रस्तत ग्रन्थ में. थे । देवताओं की प्राथना पर इसने दुष्टों के संहार के हाथियों के रोग-निदान की विवेचना प्राप्त है। इस ग्रंथ लिये अनेक अवतार लिये। इस कारण इस के अनेक में निम्नलिखित विषयों की व्याख्या की गयी है:-१. नाम हैं (देवी, दुर्गा तथा सती देखिये)। | महारोगस्थान (अध्याय.संख्या १८); २. क्षुद्ररोगस्थान
पार्वतीय-महाभारत काल का एक राजा, जो कुपथ | (अध्याय. ७२); ३. शल्यस्थान (अध्याय. ३४); ४. नामक दानव के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ.६१ | उत्तरस्थान (अध्याय. ३६)। ५५८*)।
पालकाप्य ने अंगदेश के राजा रोमपाद को 'हस्त्यायु२. दुर्योधन के मामा शकुनि का नामांतर। वेंद' सिखाया था। इसका यह ग्रंथ प्रायः श्लोकबद्ध ३. महाभारतकालीन एक लोगसमूह । युधिष्ठिर के है, किन्तु कई अध्यायों की रचना गद्य में भी की गयी . राजसूय यज्ञ के समय, ये लोग उपहार ले कर आये थे है। (म. स. ४८.७) । पांडवों के वनवास काल में जयद्रथ । 'हत्यायुर्वेद के अतिरिक्त पालकाप्य के लिखे अन्य की सेना में शामिल हो कर, इन लोगों ने पांडवों पर ग्रंथ इस प्रकार हैं:-- १. गजायुर्वेद (अमि. २२९.४४); आक्रमण किया था (म. व. २५५.८)।
२. गजचिकित्सा; ३. गजदर्पण; ४. गजपरीक्षा । इन . भारतीययुद्ध में ये लोग कौरवदल में शामिल थे, में से 'गजायुर्वेद' संभवतः हत्यायुर्वेद का ही नामांतर एवं शकुनि तथा उलूक के साथ रहा करते थे (म. क. | होगा । ३१.१३)। पांडव वीरों ने इनका युद्ध में संहार किया | पालंकायन-वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार । मत्स्य । (म. श. १.२६)।
| में इसका नाम 'पादपायन' दिया गया है (मत्स्य. पार्वतेय-एक राजर्षि, जो क्रयनामक दैत्य के अंश २००.१२)। से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१.५५५*)। __पालित-(सो. क्रोष्टु.) एक राजा । विष्णु के अनुसार पार्षत--द्रुपद राजा का नामांतर (म. आ. १२१. यह परावृत राजा का पुत्र था। इसके 'परिघ' एवं
'पुरुजित् ' नामांतर भी प्राप्त हैं । (परिघ १. देखिये)। पार्षद्वाण-एक वैदिक राजा । 'पृषद्वाण' का वंशज पालिता--स्कंद की अनुचरी मातृका (म. श. ४५. होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ। एक आश्चर्यजनक ३)। पाठभेद-(भांडारकर संहिता)- पलिता'। कार्य करनेवाले राजा के रूप में, इसका निर्देश ऋग्वेद में
| पालितक-पूषन् द्वारा खंद को दिये गये पार्षदों में प्राप्त है (ऋ. ८.५१.२) । ऋग्वेद में इसके बारे में जो से एक । दसरे पार्षद का नाम 'कालिक' था (म. श. सूक्त प्राप्त हैं, वह श्रुष्टिगु द्वारा रचित हैं । यह प्रस्कण्व का ४४.३९)। आश्रयदाता था (ऋ ८.५१.२)।
पालिशय--वसिष्ठकुल के गोत्रकार ऋषिगण । पार्ण शैलन--वैदिककालीन एक आचार्य (जैः |
पावक--(स्वा. उत्तान.) एक राजा । यह विजिताश्व उ. ब्रा. २.४.८)।
का पुत्र था। वसिष्ठ के शाप से, इसे मनुष्ययोनि में पाणि--चेकितान राजा का सारथि ।
जन्म लेना पड़ा (भा. ४.२४.४)। पार्णिक्षमन्--एक विश्वेदेव (म. अनु. ९१.३०)। २. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा । यह अग्नि एवं 'स्वाहा'
पाल-वासुकि के कुल में उत्पन्न एक नाग जो जनमे- का पुत्र था (अग्नि एवं अग्नि पावक देखिये)। जय के सर्पसत्र में दग्ध हो गया (म. आ. ५२.५)। ३. 'प्रजापति भरत' नामक अग्नि का पुत्र। इसे . पाठभेद 'पैल'।
| 'महत् ' नामांतर भी प्राप्त है (म. व. २०९.८)।