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________________ पाराशर्य प्राचीन चरित्रकोश पार्वती २. युधिष्ठिर की सभा का एक ऋषि (म. स. ४.११) पारुच्छेप--अनानत ऋषि का पैतृक नाम । हस्तिनापुर जाते समय, श्रीकृष्ण से इसकी भेंट हुई थी। पार्णवल्कि--निगद ऋषि का पैतृक नाम । ३. सांकृत्य का शिष्य (बृ. उ. २.५.२०, ४.५.२६ | पार्थ--कुन्ती (पृथा ) के पुत्रों के लिये प्रयुक्त मातृक माध्य.) नाम । महाभारत में यह नाम प्रायः युधिष्ठिर एवं अर्जुन पाराशय कौथम-एक आचार्य । वायु तथा ब्रह्मांड | के लिये ही प्रयुक्त है। किंतु कई जगह कुन्ती के तीनों के अनुसार, यह व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से एक | पुत्रों के लिये. एवं एक पुत्रों के लिये, एवं एक स्थान पर 'कर्ण' के लिये भी था । यह कुथुमिनू का शिष्य रहा होगा । इसका प्रयोग किया गया है (म. उ.)। . पाराशर्यायण-पाराशर्य नामक आचार्य का शिष्य। पार्थव--अभ्यावर्तिन् चायमान देखिये। इसका शिष्य घृतकौशिक (बृ. उ. २.६.३, ४.६.४)। पार्थिव--अंगिराकुल का गोत्रकार गण । पारिकारारिरेव-अंगिराकुल का गोत्रकार। पाथुश्रवस-धृतराष्ट्र नामक आचार्य का पैतृक .पारिक्षित-जनमेजय नामक आचार्य का पैतृक नाम (जै. उ. ब्रा. ४.२६.१५) शांत्युदक के समय नाम । अथर्ववेद के कुछ मंत्रों का नाम 'पारिक्षितिऋचा' कौन सा मंत्र कहना चाहिये इस संबंध में इस आचार्य का दिया गया है (ऐ. ब्रा. ६.३२; सां. ब्रा. ३०.५; गो. | मत दिया गया है (कौ. सू. ९.१०)। मधुपर्क गाय से ब्रा. २.६.१२)। चे मंत्र अथर्ववेद में हैं (१२७.७ | करे ऐसा इसका कथन है (को. सू. १७.२७)। १०) पारिक्षित आगे चल कर नामशेष हो गये होंगे, पार्थ्य--तान्व नामक वैदिक आचार्य का पैतृक क्योंकि पारिक्षित कहाँ होंगे , इसके बारे में आध्यत्मिक | नाम । इसके द्वारा दान माँगने का निर्देश प्राप्त है उपपत्ति जोड़ी गयी है (बृ. उ. ३.३.१)। उससे यह इस (ऋ. १०.९३.१५)। सर्वानुक्रमणी से ऐसा प्रतीत समय भी प्राचीन था। यह शब्द पारिक्षित तथा होता है की 'पार्थ्य' के स्थान पर 'पार्थ ' है जो तान्व पारीक्षित दोनों प्रकार से उपलब्ध है। का पैतृक नाम है। आश्वलायन श्रौतसूत्रों में भी पार्थ का पारिजात-नारद के साथ मय की सभा में आया निर्देश प्राप्त है (१२.१०; तान्व देखिये)। हुआ एक ऋषि (मः स. ५.३)। पार्वणि-कार्षणि देखिये। २. पुलह तथा श्वेता का पुत्र (ब्रह्मांड. ३.७.१८० पाति-दक्ष का पैतृक नाम (श. ब्रा. २.४.४.६; १८१)। कौ. ब्रा. ४.४)। पारिजातक-जितात्मा मुनि, जो युधिष्ठिर की सभा में विराजते थे (म. स. ४.१२)। पार्वती--हिमालय तथा मेना की कन्या एवं शिवजी की पत्नी । नारद के कहने पर हिमालय ने इसे शंकर को पारिप्लव-रैवत मन्वन्तर के भूतरजसों में एक ब्याह दिया। एक समय यह शंकर के साथ क्रीडा कर देवगण । रही थी, तब इसने शंकर के नेत्र बंद कर लिये। शंकर पारिभद्र-(स्वा. प्रिय.) एक राजा । यह प्रियव्रतपुत्र | के नेत्रों में सोम, सूर्य तथा अग्नि का वास होने के कारण यज्ञबाहु के सात पुत्रों में से पाँचवा पुत्र था। | चारों ओर अंधकार फैल गया तथा विनाश (क्षय) आरंभ पारभटक-कौरव पक्ष के योद्धाओं का एक दल, | हो गया। ऋषियों के कहने पर इसने क्रीड़ा रोक दी। बाद जो संभवतः परिभद्र देश का निवासी था (म. भी. ४७. | में शंकर के कथनानसार इसने अरुणाचल पर तपश्चर्या ९)। | की। गौतम ने इसे अरुणाचल का माहात्म्य बताया ३. ऐरावतकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के (स्कन्द. १.३.३-१२)। सर्पसत्र में जलकर मर गया था (म. आ.)। | पहले यह काले रंग की थी परंतु अनरकेश्वर तीर्थ पारियात्र-(सू. इ.) भागवतमत में अनीह का, में स्नान कर वहाँ के लिंग के समक्ष दीपदान करने के वायुमत में अहीनगु का, विष्णुमत में रुरु का तथा कारण यह गौरवर्ण की हो गयी ( स्कंद. ५.१.३०)। इसने भविष्य मत में कुरु का पुत्र। 'गौरीव्रत' का निर्माण किया तथा उसकी महिमा धर्म२. सर्पसत्र में दग्ध हुए ऐरावतकुल का एक सर्प | राज को बतायी (भवि. ब्राह्म, २१)। . (म. आ. ५२.१०)। एक समय कल्पवृक्ष के नीचे बैठ कर इसने सुंदर स्त्री पारिश्रुत-स्कन्द का एक सैनिक (म.श. ४४.५५)।। की इच्छा की, जिससे 'अशोकसुंदरी' एक सुंदर स्त्री ४१५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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